Edition 37
  • October 11, 2025
  • आब-ओ-हवा
  • 0
Edition 37

आब-ओ-हवा – अंक - 37

भाषाओं के साथ ही साहित्य, कला और परिवेश के बीच पुल बनाने की इस कड़ी में नोबेल पुरस्कारों के संबंध में चर्चा, क्या शांति के नोबेल को कठघरे में खड़ा करना उचित है! दीवाली के त्योहार पर विशेष सामग्री में उत्पादों को लेकर जागरूकता के लिए विशेषज्ञ का नज़रिया और साथ ही ‘चराग़’ रोशन करती शायरी। साहित्य, कला, शिक्षा आदि से संबद्ध नियमित ब्लॉग्स अपने तेवर और मिज़ाज के साथ हैं ही। संध्या शांताराम, अदम गौंडवी, मजाज़ जैसे पुरखों की याद। ग़ज़ल की क्लास भी, किताबों की चर्चाएं भी, कुछ फ़िल्मी यादें और कुछ और भी…

प्रसंगवश

मुआयना

ब्लॉग : हम बोलेंगे (संपादकीय)
नोबेल पुरस्कार: शांति की खोज या ईजाद? : भवेश दिलशाद

ब्लॉग : तख़्ती
काश! हम वैसे ही होते : आलोक कुमार मिश्रा

गुनगुनाहट

ब्लॉग : पोइट्री थेरेपी
युद्ध और आपदा में संजीवनी पोएट्री : रति सक्सेना

ब्लॉग : समकाल का गीत विमर्श
गीत विमर्श की इस यात्रा का नया मोड़ : राजा अवस्थी

ब्लॉग : गूंजती आवाज़ें
फ़ासला, भाषा, उद्देश्य और अदम गौंडवी : सलीम सरमद

ब्लॉग : तरक़्क़ीपसंद तहरीक की कहकशां
मजाज़: शमशीर, जाम और साज़ का इम्तिज़ाज : जाहिद ख़ान

ग़ज़ल रंग

ब्लॉग : शेरगोई
क़ाफ़िया कैसे बांधें : भाग-2 : विजय स्वर्णकार

ब्लॉग : ग़ज़ल: लौ और धुआं
शेर और शाइरी के बीच की जगह : आशीष दशोत्तर

किताब कौतुक

ब्लॉग : क़िस्सागोई
तीसरा किरदार: कबीर और ग़ालिब के बहाने : नमिता सिंह

ब्लॉग : उर्दू के शाहकार
बानो की जादूगरी, जादुई यथार्थवाद का मशहूर उपन्यास : डॉ. आज़म

सदरंग

ब्लॉग : उड़ जाएगा हंस अकेला
संध्या शांताराम का वह अनूठा सर्प नृत्य : विवेक सावरीकर ‘मृदुल’

ब्लॉग : पक्का चिट्ठा
व्यंग्य शीर्षक: ऐसा हो, ऐसा-वैसा नहीं : अरुण अर्णव खरे

ब्लॉग : कला चर्चा
कला में आस्था व उत्साह यानी भावना सोनावणे : प्रीति निगोसकर

ब्लॉग : कुछ फ़िल्म कुछ इल्म
कौन था हिन्दी सिनेमा का पहला ‘जुबली कुमार’ : मिथलेश रॉय

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *