सृजनात्मक पत्रकारिता जब आज संकट की ज़द में है, तब आब-ओ-हवा का एक साल का सफ़र उपलब्धि से कम नहीं। संसाधनों के अभाव में पत्रिका की आब और ताब क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। आपने इसका एक मेयार बनाया है और दोआब की परम्परा को मज़बूत किया है। साधुवाद और शुभकामना। 
 -लीलाधर मंडलोई
(वरिष्ठ साहित्यविद/चित्रकार)
आब-ओ-हवा के कुछ अंक देखे, जी ख़ुश हुआ। सोशल मीडिया के आज के हदबंदी भरे समय में आपकी पत्रिका एक बड़ी राहत की तरह है। इसके आलेख, स्तंभ और इंटरव्यूज़ एक सुरुचिपूर्ण चयन और संयोजन का परिणाम नज़र आते हैं। आब-ओ-हवा को पहली वर्षगांठ की बधाई और भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं।
-राजेश रेड्डी
(मशहूर शायर/संगीतविद)
आब-ओ-हवा ने साहित्य के क्षेत्र में क़दम रखते ही अपनी बेहतरीन पहचान बनायी है। संपादक के रुप में भवेश दिलशाद की अपनी कल्पनाशीलता भी दिखायी देती है। विभिन्न साहित्यिक आयोजनों के माध्यम से भवेश व्यापक साहित्य समाज से वास्ता रखते हैं। बधाई और शुभकामनाएं कि यह पत्रिका निरंतर रचनात्मक यात्रा में अपना योगदान देती रहे।
-उर्मिला शिरीष
(वरिष्ठ लेखक/हिन्दीसेवी)

'आब-ओ-हवा' का एक वर्ष सफल होने पर पूरी टीम को बधाइयां, पत्रिका निकालना वर्तमान में आसान भी है, कठिन भी। ख़ासकर साहित्यिक पत्रिका तो बहुत ही घाटे का सौदा है। उससे भी अधिक जिगर का काम है पत्रिका को सौहार्द्रपूर्ण या हिन्दी-उर्दू की संयुक्त पत्रिका के तौर पर निकालना। भोपाल से यह काम कर रहे भवेश दिलशाद जी को शुभकामनाएं, पिताजी के इस शेर के साथ-

बला से शजर हों न हों रस्ते में

नहीं बाज़ आते सफ़र करने वाले

-फ़िरोज़ मुज़फ़्फ़र
(लेखक/समाजसेवी)
सार्थक यात्रा के लिए बधाई। आपका संपादकीय ज्वलंत सवालों को सामने लाता है। मैं आब-ओ-हवा के ब्लॉग नियमित पढ़ता हूँ। आपकी रचनात्मक यात्रा जारी रहे...
- स्वप्निल श्रीवास्तव
(कवि-समालोचक)
आब-ओ-हवा साहित्यिक पत्रकारिता में एक रोशनदान है।
-ब्रज श्रीवास्तव
(कवि, संपादक)

'आब-ओ-हवा' अपनी आब और ताब के साथ बेहतर से बेहतरीन की राह पर अग्रसर है। संपादक भवेश दिलशाद की मेहनत, लगन और समर्पण की झलक हर अंक में दिखलायी देती है। एक ऐसी लघु साहित्यिक पत्रिका जो अपने नाम के अनुरूप साहित्य, कला, परिवेश की संतुष्टिदायक सामग्री पाठकों तक पहुंचाती है।

संपादकीय 'हम बोलेंगे' हक़ और इंसाफ़ की बात करते हुए नागरिक चेतना जागृत करने हेतु प्रतिबद्ध दिखता है। मुआयना, सरोकार, ग़ज़ल रंग, गुनगुनाहट, फ़न की बात, किताब-कौतुक, सदरंग में संगीत, चित्रकला से जुड़े विषयों पर लेख, विमर्श, चर्चा ध्यान खींचते हैं। सबसे बड़ी बात इसकी तरतीब, इसका व्यवस्थित आकल्पन है। यह निशानदेही भी कि साहित्य के सरोकार व्यापक हैं जिसमें संसार के हर सुख-दुख, उतार-चढ़ाव और धूप-छांव के विविध रंग समाहित हैं।
-ख़ुदेजा ख़ान
(कवि/समीक्षक)
बहुत सादगी और बिना शोर-शराबे के बड़े काम किये जा सकते हैं, ‘आब-ओ-हवा’ इसका पर्याय है। छोटे-से कलेवर में कला-संस्कृति के नये-पुराने सारे ट्रेंड समेटना, समाज व राजनीति पर भी बारीक़ नज़र रखना, यह कमाल कर दिखाया है इसने, वह भी छोटे-से वक़्फ़े में। आब-ओ-हवा को पहले जन्मदिन की हार्दिक बधाई। इतनी उम्मीदें जगा दी हैं, तो आप नई चुनौतियों से भी रूबरू होंगे, उनसे निपटने के लिए अनंत शुभकामनाएं
-आलोक त्यागी
(कवि/साहित्यविद)
आब-ओ-हवा का पहले साल का सफ़र शानदार और यादगार रहा, उम्मीद है यह ऊर्जा और आगे बढ़ेगी। नये साथियों के जुड़ने से और समृद्ध होंगे। जोड़ने की अद्भुत क्षमता वाले, नये विचार पालने-पोसने और हर संभव सामने लाने के लिए भाई भवेश को बहुत शुभकामनाएं।
-चित्रा चौधरी
(महिलाओं के न्यायिक कार्य से संबद्ध)
साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अवदान पर केंद्रित प्रतिष्ठित पत्रिका 'आब-ओ-हवा' का प्रकाशन एक महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय प्रयास है, जो न केवल हमारी महान साहित्यिक परम्पराओं के प्रति विनम्र कृतज्ञता-ज्ञापन है बल्कि देश की श्रेष्ठ वैचारिकी को आम पाठकों तक पहुॅंचाने का प्रशंसनीय प्रयत्न है ताकि उनके बौद्धिक विकास को साहित्यिक पत्रकारिता के माध्यम से पुष्पित और पल्लवित किया जा सके। पत्रिका अपने असरकारी विचारों की निरन्तरता को क़ायम रखते हुए सदा सक्षमता और सार्थकता के साथ सफल हो, आगे अपनी महती भूमिका को सन्नद्धता के साथ निबाहने के लिए तत्पर रहे, इस हेतु उसके उज्जवल और उन्नत भविष्य के लिए हार्दिक स्वस्ति-कामनाएँ। उम्मीद करता हूॅं पत्रिका युवा प्रतिभा और मेधा को विकसित करने के अभियान में निरन्तर उद्यमशील रहकर प्रगति पथ पर अग्रसर रहेगी।
-मुकेश वर्मा
(वरिष्ठ लेखक/संपादक: वनमाली कथा)
   

   आब-ओ-हवा के लगभग सभी अंक निरंतर और समयबद्ध प्रकाशित हुए और समय पर पाठकों तक पहुंचे भी...इसके लिए नि:सन्देह आप प्रशंसा के पात्र हैं भवेश भाई। प्रिंट मीडिया से प्रकाशित समाचार पत्र हो या सामयिक पत्रिका या मनोरंजन की कोई मैगज़ीन ही हो, मालिक और प्रकाशक तथा उसमें नियमित स्तम्भ देने वाले रचनाकारों/लेखकों का अर्थ हित तो रहता ही है। मुझे नहीं लगता आपकी टीम में कोई ऐसा मेम्बर है, जो आपसे इस अपेक्षा से जुड़ा है। सभी के विचार, लेखन और चिन्तन हाशिये पर खड़े या अंतिम पंक्ति के भी अंतिम व्यक्ति के दर्द और उसकी आवश्यकता से जुड़े हुए हैं।

       

आपने आधुनिकता और प्रगतिशीलता के साथ सोशल मीडिया को माध्यम बनाकर अपनी बात आरम्भ की है। मुझे लगता है अब तक तो आब-ओ-हवा ने अपनी निष्पक्षता से एक बहुत बड़ा लोकतांत्रिक और प्रगतिशील पाठक वर्ग तैयार कर लिया होगा। सभी अंकों में सभी स्तम्भ सार्थक, पठनीय, अनूठे और संग्रह योग्य हैं। आपके सभी साथी कड़ी मेहनत से नि:स्वार्थ लेखन कर रहें हैं। आपकी संपादकीय टिप्पणियां तो अत्यन्त विचारणीय और उद्वेलित करने वाली होती हैं.. वाह-वाह! शुभकामनाएं। 

-नून जीम
(साहित्यप्रेमी)
      मैं आब-ओ-हवा के एक वर्ष होने के उपलक्ष्य में लिख रहा हूं कि आपके लेखन सहित प्रकाशन से जुड़े सभी लोगों को बधाई दे सकूं। बिना सकारात्मक कार्य के भी अनावश्यक व्यस्त लोगों की भीड़ एक मेरा नाम भी है। वैसे तो पढ़ने में मेरी प्रवृत्ति ही बहुत कम है, अतः लेखन के मर्म में जाने का पूरा समय नहीं मिल पाता, किन्तु जितना भी पढ़ा है उसमें लेखकों के अलावा आपका साहित्य के लिए जो समर्पण भाव व्यक्त होता है, मैंने वर्तमान में अन्यत्र नहीं देखा। मेरे विचार में अब भी साहित्य में उत्कृष्ट लिखा जा रहा है, किन्तु उन्हें सही स्थान नहीं मिल पा रहा है। क्योंकि हमेशा की तरह ही लेखन दरबारों की छत्र-छाया में पल रहा है। जो काग़ज़ दरबार की स्तुति में न हो, उसमें उनका ध्यान अनावश्यक है, ऐसा ही माना जाता है। किंतु त्याग की नियति होती है हर स्थिति में प्रस्फुटित होने की, तो यह भी तय है कि वो होकर रहेगी।
-डॉ आलोक त्रिपाठी
(प्राचार्य-डिग्री कॉलेज, फ़तेहपुर)
  

     आब-ओ-हवा के सभी अंक हमेशा अत्यंत समृद्ध, पठनीय और संग्रहणीय सामग्री से भरे-पूरे दिखे। नहीं पढ़ने, कम पढ़ने और कम पढ़कर भी लम्बी हाँकने के इस दौर में आब-ओ-हवा ताज़ा हवा का अहसास है। इस समय जब प्रतिरोध के स्वर गूँगे हो चले हैं, सच को सच कहने के ख़तरे बढ़े हुए हैं तब तीखे सम्पादकीय और संतुलित आलेखों के साथ  आब-ओ-हवा सन्नाटों के बीच उभरती, नन्ही ही सही, प्रतिरोध की बहुत महत्वपूर्ण आवाज़ है। हस्तक्षेप सराहनीय है। विभिन्न ललित कलाओं से जुड़ी उत्कृष्ट साहित्यिक सामग्री सम्पादकीय टीम के परिश्रम, कौशल और समाज के प्रति पक्षधरता को सहज ही प्रकट करते हैं। इस के विभिन्न स्तम्भों का तो कोई जवाब ही नहीं।   

     सारी सामग्री बहुत ही मनोयोग से चयनित और प्रकाशित होती है और यह बहुत स्वाभाविक भी है क्योंकि आब-ओ-हवा का सम्पादन स्वयं एक मंझे हुए और स्थापित साहित्यकार/शायर आदरणीय भवेश दिलशाद जी के हाथ में है। छोटे से कलेवर में इतनी साहित्यिक समृद्धि आनंदित भी करती है और चमत्कृत भी। प्रसन्नता का विषय है कि आब-ओ-हवा को एक वर्ष पूर्ण हो रहा है। इतनी अल्पावधि में इतनी बड़ी साहित्यिक पहचान सम्पादकीय टीम की योग्यता और निष्ठा, प्रकाशन की निरंतरता और निरंतर श्रेष्ठ पठनीय सामग्री के प्रकाशन से ही संभव है।

-अशोक शर्मा
(शायर)
  

    अदब की ज़मीन को शादाब करना, अपनी रवायत को एक आश्वासन देना आने वाली नस्लों के हाथों में उम्मीद की एक किरण देने के समान है। आब-ओ-हवा ने अपने अंकों के ज़रिये अदब के पिछले वक्तों, मौजूदा समय और आने वाले वक़्त के बीच एक पुल बनाने का काम किया है। ताज़ातरीन मसअलों को अदब के ज़ाविये से उठाकर उस पर बहस-मुबाहिसा किया, तरक़्क़क़ीपसंद तहरीक़ की ज़मीन को पुख़्ता किया। बीते हुए कल के उन अदीबों को याद किया जिन्होंने अपनी क़लम से ख़ूबसूरत इतिहास लिखा। आने वाले कल की उम्मीदें लिये महत्वपूर्ण रचनाकारों को स्थान देकर अपने भविष्य को सुदृढ़ करने की कोशिश भी की है।  

     दरअसल यह कल्चरल मैगज़ीन है, जिसने अपने कल्चर को बचाने के लिए तो काविशें की ही, अपने बीच उठ रहे उन तमाम सवालों से दो-चार होने की कोशिश भी की है जिनसे भिड़ना आज की ज़रूरत है। युवा शाइर भाई भवेश दिलशाद ने बहुत मन से इस एक वर्ष के सफ़र में आब-ओ-हवा को आगे ले जाने की कोशिश की है। उनका यह सफ़र ऐसे ही जारी रहे और अगले बरसों के अंकों में और नयापन हम सभी महसूस करें, यही तमन्ना है। भाई भवेश दिलशाद को दिली मुबारकबाद।

-आशीष दशोत्तर
(शायर/लेखक)
बधाई इसलिए भी कि जिस तरह साहित्यिक पत्रकारिता का स्तर आब-ओ-हवा ने रचा है, वह आज कुछ दुर्लभ-सा है। 
-राजा अवस्थी
(कवि-समालोचक)
साल भर में आब-ओ-हवा का प्रत्येक अंक नवीन जानकारी और कलात्मकता से सम्पन्न रहा। जिज्ञासु पाठक की साहित्यिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक जिज्ञासा को शांत करने मे अग्रणी।
-अर्चना श्रीवास्तव
(साहित्य व कलाप्रेमी)
विगत कुछ माहों से मेरा स्तंभ "उड़ जाएगा हंस अकेला" आब-ओ-हवा के ज़रिये मक़बूलियत पा रहा है, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। भवेश ऐसे संपादक हैं, जो पत्थर से भी पानी निचोड़ लेते हैं।
-विवेक सावरीकर मृदुल
(रंग-कलाकार/कवि)
आब-ओ-हवा की हर एक रचना प्रभावित करती है, बिना लाग लपेट के हर अंक का संपादन सोच-समझकर किया जाता है। चहुंओर फ़िज़ा में आब-ओ-हवा है। स्तरीय और महत्वपूर्ण संपादन हेतु हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। पुनश्च: वेब पत्रिकाओं में आब-ओ-हवा सबसे बेहतर है।
- डॉ. मांघीलाल यादव
(शिक्षक-साहित्यविद)