kamini kaushal, कामिनी कौशल
पाक्षिक ब्लॉग विवेक सावरीकर मृदुल की कलम से....

लता और गीता दत्त के पहले गाने और कामिनी कौशल

           अपने ज़माने की मशहूर नायिका और चरित्र अभिनेत्री कामिनी कौशल का विगत दिनों निधन हुआ। कामिनी कौशल के अभिनय में शोख़ी और संजीदगी का अद्भुत सामंजस्य था। पहली फिल्म “नीचा नगर” से लेकर “कबीर सिंह” और “लाल सिंह चड्ढा” तक उनके अभिनय ने भारतीय दर्शकों को सुंदरता और सौम्यता की बानगी दी है। उन पर फ़िल्माये गये अनेक सुमधुर गाने हैं, जिनमें से कुछ की आज हम यहां चर्चा करेंगे। फ़िल्म “बिराज बहू” का एक गीत याद आता है। बिराज (कामिनी कौशल) को अपनी आर्थिक तंगहाली से जूझते हुए कोठे का रुख़ करना पड़ता है। यहां वो धनिकों को अपने लावण्य और मधुर गायन से मोह रही है। गाना शमशाद बेगम की आवाज़ में है जिसके बोल हैं- ‘ना जाने रे ना जाने, ना जाने रे’। सलिल चौधरी ने इसे राग खमाज में संगीतबद्ध किया है, जो सीधे-सीधे खमाज के लक्षण गीत ‘न मानूंगी, न मानूंगी न मानूंगी’ का ही रूप परिवर्तन है। शमशादजी ने इस बंदिश को अपनी खुले गले वाली पंजाबी लोकशैली से हटकर बहुत नपे-तुले अंदाज़ में गाया है। शास्त्रीय संगीत की मिठास के बावजूद इसे कम सुना गया है।

इसी तरह कामिनी कौशल के बारे में यह तथ्य भी उतना चर्चा में नहीं आया कि उन पर जिन दो महान गायिकाओं के गाने फ़िल्माये गये, वे उन गायिकाओं के लिए भी किसी हीरोइन के लिए गाये गये पहले गीत थे। मसलन स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर फ़िल्म “महल”(1949) में खेमचंद प्रकाश के संगीत में “आयेगा आनेवाला” से स्पॉट लाइट में ज़रूर आयीं लेकिन उन्होंने इससे पहले ही फ़िल्म “ज़िद्दी” (1948) में इसी संगीतकार के निर्देशन में एक लाजवाब गीत गा दिया था, जिसे फ़िल्म की नायिका कामिनी कौशल पर फ़िल्माया गया था। गाने के बोल थे- “चंदा रे जा रे जा रे, पिया से संदेसा मोरा कहियो जा”। इसी गाने की पैरोडी का इस्तेमाल फ़िल्म “पड़ोसन” के ‘एक चतुर नार करके सिंगार’ गाने में हुआ है, जो पंचम और किशोर कुमार के हास्यबोध और कल्पनाशील स्वभाव का चरमोत्कर्ष साबित हुआ।

kamini kaushal, कामिनी कौशल

बहरहाल पर्दे पर कहानी की नायिका आशा के रूप में कामिनी कौशल ने इस गाने में बहुत मोहक अभिनय किया है। गाने की शुरूआत में खेमचंद प्रकाश ने लता से जो विलंबित प्रिलूड गवाया है, उसमें लता जब “जाssरे” पर पहुंचती हैं, तो “महल” के प्रिलूड “इक आस के सहारे” की याद भी चली आती है। ये गाना लोकप्रिय तो हुआ पर मधुबाला के सौंदर्य, महल के सस्पेंस और इस कठिन गाने में लता की उत्कृष्ट गायकी के चलते “आएगा आने वाला” से कुछ पिछड़ अवश्य गया। मज़े की बात यह कि फ़िल्म ‘ज़िद्दी’ के ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड पर गायिका के तौर पर लता मंगेशकर नहीं, बल्कि आशा का नाम अंकित हुआ, जो दरअसल कामिनी कौशल के किरदार का नाम था।

कामिनी कौशल की एक और फ़िल्म “दो भाई” में गीता दत्त को पहली बार सचिन देव बर्मन ने नायिका के लिए गीत गाने का मौक़ा दिया। बोल थे- ‘मेरा सुंदर सपना बीत गया, मैं प्रेम में सब कुछ हार गयी, बेदर्द ज़माना जीत गया’। यह गाना तो संगीत प्रेमियों द्वारा आज भी बेहद पसंद किया जाता है। मोटे तौर पर राग बिलावल पर आधारित इस गाने में गीताजी की आवाज़ के दर्द से पहली बार हिंदी संगीत प्रेमी रूबरू हुए। गीता जी के गले में ये दर्द इनबिल्ट था इसलिए उन्हें किसी नाटकीयता का सहारा नहीं लेना पड़ता था। यूं तो इस फ़िल्म में उन्होंने चार सोलो गाये हैं, जिनमें से एक और गाना “याद करोगे, याद करोगे, इक दिन हमको याद करोगे”, भी काफ़ी चला मगर ‘मेरा सुंदर सपना’ गीता दत्त की विशिष्ट शैली की बेमिसाल बानगी बना। गीता जैसी शैली अपनाने का प्रयास तो अनेक गायिकाओं ने किया मगर गीता के क़रीब भी कोई नहीं पहुंच पाया।

इस तरह कामिनी कौशलजी को हिंदी फ़िल्म जगत की दो मशहूर गायिकाओं की आवाज़ में पर्दे पर पहली बार अभिनय करने का श्रेय भी जाता है। चलते-चलते यह भी बता दें कि फिल्म “ज़िद्दी” में कामिनी कौशल के नायक थे देवानंद और उनके लिए ही किशोर कुमार ने पहली बार फ़िल्म में सोलो गीत- “मरने की दुआएं क्यों मांगूं, जीने की तमन्ना कौन करे” गाया था। इस तरह खेमचंद प्रकाशजी लता और किशोर दोनों के लिए गुरू का दर्जा रखते थे। अफ़सोस कि इन गायकों की सिद्धि और उनकी धुनों को मिली प्रसिद्धि देखने से पहले ही वे इस दुनिया से कूच कर गये।

विवेक सावरीकर मृदुल

सांस्कृतिक और कला पत्रकारिता से अपने कैरियर का आगाज़ करने वाले विवेक मृदुल यूं तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्ववियालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं,पर दिल से एक ऐसे सृजनधर्मी हैं, जिनका मन अभिनय, लेखन, कविता, गीत, संगीत और एंकरिंग में बसता है। दो कविता संग्रह सृजनपथ और समकालीन सप्तक में इनकी कविता के ताप को महसूसा जा सकता है।मराठी में लयवलये काव्य संग्रह में कुछ अन्य कवियों के साथ इन्हें भी स्थान मिला है। दर्जनों नाटकों में अभिनय और निर्देशन के लिए सराहना मिली तो कुछ के लिए पुरस्कृत भी हुए। प्रमुख नाटक पुरूष, तिकड़म तिकड़म धा, सूखे दरख्त, सविता दामोदर परांजपे, डॉ आप भी! आदि। अनेक फिल्मों, वेबसीरीज, दूरदर्शन के नाटकों में काम। लापता लेडीज़ में स्टेशन मास्टर के अपने किरदार के लिए काफी सराहे गये।

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