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ग़ज़ल अब

तू जो चाहे तो मैं रफ़्तार बदल सकती हूं
आगे पीछे नहीं मैं साथ भी चल सकती हूं

उसकी बातों पे न हंस दूँ तो करूँ क्या आख़िर
उसको लगता है मैं बातों से बहल सकती हूं

आबदीदा हूं मगर साफ़ है रस्ता मुझ पर
पांव भी शल हैं मेरे फिर भी संभल सकती हूं

शौक़ ए दिल तुझ पे अयां है तो भरम रख इसका
वरना वो ज़ब्त है मैं ख़ुद में भी जल सकती हूं

इस उदासी से रिहाई नहीं मुमकिन मेरी
हाँ बदन छोड़ के निकलूँ तो निकल सकती हूं

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माधवी शंकर

कानपुर यूनिवर्सिटी से माइक्रो बायोलॉजी में मास्टर्स और उर्दू के प्रति अपने रुजहान के चलते साहित्य अध्ययन में रत माधवी एक स्थापित शायर हैं। पिछले क़रीब एक दशक से मंचों पर काव्यपाठ और आकशवाणी से प्रसारित माधवी ने कई राष्ट्रीय स्तर के मंचों पर उपस्थिति दर्ज करवायी है। एक ग़ज़ल संग्रह "बाक़ी इश्क़ में सब अच्छा है" मंज़र ए आम पर आ चुका है।

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