
- May 2, 2025
- आब-ओ-हवा
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ग़ज़ल अब
अशोक मिज़ाज बद्र
पतंग उड़ा के मैं पीछे तो हट नहीं सकता
तुम्हारी सद्दी से माझा तो कट नहीं सकता
अब एक मुश्त चुकाना पड़ेगा दुश्मन को
ये क़र्ज़ वो है जो किश्तों में बट नहीं सकता
मुझे उलाँघ के निकलो या काटकर निकलो
पहाड़ हूँ मैं तो रस्ते से हट नहीं सकता
मोहब्बतों से ही मुमकिन है बात बन जाये
लड़ाइयों से कोई काम सट नहीं सकता
सुलगती भीड़ बग़ावत पे जब उतर आये
तो कौन कहता है तख़्ता पलट नहीं सकता
मेरे दिमाग़ में बस चंद लोग रहते हैं
सभी का नाम मैं तोतों सा रट नहीं सकता
सुनो ओ चाँद सितारो सुनो मैं सूरज हूँ
मैं छुप तो सकता हूँ बदली में घट नहीं सकता

अशोक मिज़ाज बद्र
23 जनवरी 1957 को सागर में जन्मे अशोक मिज़ाज हिंदी और उर्दू ग़ज़ल के क्षेत्र में प्रतिष्ठित नाम हैं। चार ग़ज़ल संग्रह उर्दू लिपि में और आठ देवनागरी में वाणी और ज्ञानपीठ प्रकाशनों से प्रकाशित हैं। हिंदी और उर्दू के अनेक पुरस्कार से भी नवाज़े जा चुके हैं।
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