gunahon ka devta, गुनाहों का देवता
(विधाओं, विषयों व भाषाओं की सीमा से परे.. मानवता के संसार की अनमोल किताब -धरोहर- को हस्तांतरित करने की पहल। जीवन को नये अर्थ, नयी दिशा, नयी सोच देने वाली किताबों के लिए कृतज्ञता का एक भाव। इस सिलसिले में लगातार साथी जुड़ रहे हैं। साप्ताहिक पेशकश के रूप में हर सोमवार आब-ओ-हवा पर अमूल्य पुस्तक का साथ यानी 'शुक्रिया किताब'.. इस बार कई लेखक रचने वाले एक बहुचर्चित उपन्यास को आभार -संपादक)
पाठकीय नोट अनिता रश्मि की कलम से....

गुनाहों का देवता.. मुझे लेखक बनाने वाली किताब

               एक वक़्त था, पत्र-पत्रिकाओं के साथ पुस्तकों से बच्चों की मित्रता करायी जाती थी। घर के बड़े बुज़ुर्ग ही पुस्तकें उपलब्ध कराते थे। प्रत्येक घर में मासिक पाठकीय ख़ुराक की व्यवस्था थी। पर जैसे खेल, गुड़िया, रिश्तेदारी और खेल के मैदान बच्चों की पहुँच से आजकल बाहर हो गये, वैसे ही जीवन को जीवन बनाने वाली किताबें भी कैसे धीरे-धीरे खिसक लीं, पता भी नहीं चला।

बस, कैरियर की कवायद, अथाह पैसे धुनने की तैयारी तक बच्चों को समेटकर पुस्तकों की ज्ञानवर्धक, रोचक, मित्र दुनिया से अलग कर दिया अभिभावकों ने। उसका दुष्परिणाम हताशा, निराशा, अवसाद, आत्महंता प्रवृत्ति के रूप में सामने आया है। ऐसे में पुस्तकों की और उनके प्रभाव की बात होती रहनी चाहिए। अपने बचपन-कैशौर्य के पुस्तक-मित्र और उसके प्रभाव के दिनों की चहल-क़दमी सुखदायी है।

मुझे किताबों ने ही लेखन का शऊर सिखाया है, लेखक बनाया है। कई प्रसिद्ध लेखक-लेखिकाओं के उपन्यास, कहानी संग्रह, काव्य संग्रह आदि कैशार्य में ही पढ़ ली थीं। यथा- आचार्य चतुरसेन, शिव प्रसाद, अमृता प्रीतम, शिवानी, मंजुल भगत, मन्नू भंडारी, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, मालती जोशी आदि की कृतियाँ। मूर्धन्य लेखक, संपादक धर्मवीर भारती के उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ को लंबे समय तक असर रहा। बी.एस.सी में पढ़ाई कर रही थी। भैया की मेहरबानी से किताब मिली थी। पूरा चट कर चुकी थी।

gunahon ka devta, गुनाहों का देवता

चेतन-अवचेतन में उसकी नायिका सुधा, नायक चंदर और विनती छायी रही। छात्र जीवन में उस गहन, निश्छल प्रेम और उसके दुःखद परिणाम का ऐसा असर कि लीज़र पीरियड में, कैंटीन में चर्चा करतीं हम छात्राएँ। हम ही क्यों, बहुचर्चित “गुनाहों का देवता” का असर हर युवा पाठक के मन-मस्तिष्क पर बहुत गहरा था।

प्रेम की गहराई सुधा-चंदर के प्रेमिल व्यवहार, चंदर की बौद्धिकता, बौद्धिक बहसें, सुधा की मासूमियत, प्रेम में फ़ना हो जाने का जज़्बा, विनती के मौन प्रेम ने सभी को उद्वेलित कर दिया था। बेहद सहज-सरल अभिव्यक्ति। उपन्यास की सहजता, पात्रों के चरित्र चित्रण, कथानक में बहुत विशेष नहीं लेकिन शायद यही सरलता ही विशेषता में ढल गयी।

हाँ, सुधा के विवाह का प्रसंग बड़ा अपना-अपना सा लगने वाला। उन दिनों के प्रेम की परिणति नायिका का विवाह ही थी। अंत बहुत मार्मिक, अप्रत्याशित है।

तब पाठकों में एक फैंटैसी-सी प्रवेश कर गयी। मिडिल क्लास के प्रेम की परकाष्ठा, त्याग से मिडिल क्लास का युवा वर्ग आकर्षित हो चुका था। सब ख़ुद को चंदर या सुधा समझने लगे थे। मिडिल क्लास के सपनों को पर लग गये थे। धर्मवीर भारती घर-घर छा गये थे। हम तब की प्रसिद्ध, पसंदीदा नायिका जया को सुधा के रूप में और अमिताभ को चंदर के रूप में कल्पना करने लगे थे।

दोनों को लेकर एक फ़िल्म बने, ऐसी कल्पना कर डाली थी। दिल से चाहा, फ़िल्मकार मासूम सुधा और बुद्धिदीप्त व्यक्तित्व वाले अमिताभ को चित्रपट पर एक साथ लाने की सोचें। ऐसा हुआ भी… ‘एक थी सुधा, एक था चंदर’ नामक फ़िल्म बनने लगी। सारे अब्दुल्ले बेगानी शादी में दीवाने। फिर फ़िल्म बीच में ही डब्बाबंद। पाठकों के मन में अब तक कसक है।

मेरा पाठक ‘गुनाहों का देवता’ की पठनीयता के कारण पुस्तकों के प्रति बढ़ गये अत्यधिक लगाव के लिए ही नहीं बल्कि पहले उपन्यास ‘गुलमोहर के नीचे’ के सृजन की प्रेरणा के लिए भी ऋणी है। ‘गुनाहों का देवता’ नहीं पढ़ा होता, सच में कमी रह जाती शायद। मेरा लघु उपन्यास “गुलमोहर के नीचे” की सुगबुगाहट तभी से शुरू हुई। अपना पहला, पुरस्कृत लघु उपन्यास मैंने इसी उपन्यास की प्रेरणा से युवावस्था में लिख डाला था।

और कहानी “अंतिम पृष्ठ” (राष्ट्रीय सहारा में चार अंकों में धारावाहिक छपी थी यह) भी शायद उस अंत के साथ नहीं आती। “अंतिम पृष्ठ” के अंत की भी प्रेरणा इसी उपन्यास से मिली होगी। सुधा की अस्थियाँ नदी में प्रवाहित करने का दृश्य अवचेतन में चहलक़दमी कर रहा होगा कि स्वतः अनायास मेरी कहानी के अंत में डायरी को नदी में प्रवाहित करवा दिया मेरे कमसिन लेखक ने। न जाने कितने नवजात लेखकों की प्रेरणा हो यह उपन्यास।

सुखद संयोग

वर्षों सहेजकर रखे गये “गुनाहों का देवता” उपन्यास के पीले पन्ने लगभग फटने को हो गये थे। फिर भी दिल से लगाकर रखा था सबने। सब में हम भी आते हैं। कालांतर में प्रभात ख़बर ने पुरस्कारस्वरूप “गुनाहों का देवता” का नया संस्करण भेंट किया। मन बल्लियों उछल गया। पहले वाली जीर्ण-शीर्ण प्रति को देशनिकाला मिला। लेकिन नये संस्करण संग वे मासूम दिन अभी भी जवाँ हैं।

‘गुनाहों का देवता’ आज भी चुका नहीं है। नया पाठक या अपाठक अब भी इस अद्भुत उपन्यास का दीवाना है। जिसने एक बार उठायी किताब, उसका बन बैठा। यह किताब के चुंबकत्व की ताक़त है, लेखकीय क्षमता की भी। पाठकों को पुकारने, आकर्षित किये रहने और सर्वकालिक स्वीकार्यता के लिए ऐसे ही चमत्कारिक लेखन की आवश्यकता है आज।

(क्या ज़रूरी कि साहित्यकार हों, आप जो भी हैं, बस अगर किसी किताब ने आपको संवारा है तो उसे एक आभार देने का यह मंच आपके ही लिए है। टिप्पणी/समीक्षा/नोट/चिट्ठी.. जब भाषा की सीमा नहीं है तो किताब पर अपने विचार/भाव बयां करने के फ़ॉर्म की भी नहीं है। edit.aabohawa@gmail.com पर लिख भेजिए हमें अपने दिल के क़रीब रही किताब पर अपने महत्वपूर्ण विचार/भाव – संपादक)

अनिता रश्मि, anita rashmi

अनिता रश्मि

कई विधाओं में लेखन, प्रकाशन। कई पुस्तकें प्रकाशित। प्रथम उपन्यास 19-20 की उम्र में। छात्र जीवन से ही पुरस्कार। अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार-सम्मान। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में विविधवर्णी रचनाएँ प्रकाशित। अनेक शोध में पुस्तकें शामिल। विभिन्न रचनाओं का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद और प्रकाशन। कुछ एक संग्रहों/संकलनों का संपादन भी।

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