
‘हृदय दीप’ को बुकर पुरस्कार, बानू और दीपा को बधाई
हार्ट लैम्प, हिंदी अनुवाद ‘हृदय दीप’, हिंदोस्तानी अनुवाद किया जाये तो ‘दिल का दीया’ या उर्दू अनुवाद करें तो ‘चिराग़-ए-दिल’… यह किताब मूलत: कन्नड़ में लिखी गयी और इसके अंग्रेज़ी अनुवाद को 2025 का अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्राप्त हुआ है। इस घोषणा के बाद से ही 12 कहानियों के इस संग्रह की लेखिका बानू मुश्ताक़ और अनुवादक दीपा भास्ती को हर तरफ़ से बधाइयां मिल रही हैं। ग़ौरतलब है इससे पहले 2022 में गीतांजलि श्री को ‘रेत समाधि’ के लिए बुकर पुरस्कार मिला था।
इस संग्रह में जो कहानियां हैं, बानू ने उन्हें 1990 से लेकर 2023 के बीच के समय में लिखा है। इनमें मुस्लिम समाज में स्त्रियों की दशा, उनके मुद्दे मुख्य रूप से हैं और मुखरता के साथ आते हैं। यह भी उल्लेख किया जा रहा है कि जिस समय में भारत में मुस्लिमों समुदाय के ख़िलाफ़ एक सियासी और सामाजिक माहौल की ख़बरें आम हो चली हैं, तब एक मुस्लिम लेखक, ख़ासकर मुस्लिम महिला का प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार विजेता बनना विशेष मायने रखता है।
बानू मुश्ताक़ को इस उपलब्धि के लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बधाई देते हुए कहा है, “यह कन्नड़, कन्नडिगा और कर्नाटक के लिए गौरव और हर्ष का समाचार है। बानू ने सद्भाव, सेक्युलरिज़्म और भाईचारे के सच्चे मूल्यों को अभिव्यक्त किया। मैं दीपा भास्थी को भी दिल से मुबारकबाद देता हूं जिन्होंने ‘हृदय दीप’ को अंग्रेज़ी में अनुवाद के ज़रिये विश्व स्तर तक पहुंचाया।”
केंद्रीय मंत्री एच.डी. कुमारास्वामी ने भी बानू को बधाई देते हुए कहा, “बानू के नाम ऐसी और उपलब्धियां जुड़ें, शुभकामना। कन्नड़ साहित्य उनके योगदान से और समृद्ध हो और यह कन्नड़ की यह ख़ुशबू दुनिया भर में फैले।” हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृहमंत्री अमित शाह की ओर से बानू के लिए बधाई मिलने की कोई सूचना यह ख़बर लिखे जाने तक नहीं थी।
हिन्दी पट्टी से भी मिली बधाइयां
यही नहीं, हिन्दी साहित्य जगत में भी इस समाचार का स्वागत किया गया और बानू व दीपा को बधाइयों का तांता लगा हुआ है। कुमार अंबुज, प्रभात रंजन जैसे कवियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से बानू को बधाइयां दी हैं। इनके अलावा, सोशल मीडिया से कुछ और महत्वपूर्ण शब्द यहां देखिए :
कन्नड़ लेखक बानु मुश्ताक के कहानी संग्रह “हर्ट लैंप” अनुवादक दीपा भास्थी को 2025 का बुकर अवार्ड मिला है. अरूंधति रॉय, किरण देसाई और गीतांजलि श्री के बाद बानू मुश्ताक़ बुकर पाने वाली चौथी भारतीय स्त्री हैं। अजीब संयोग ही कहेंगे कि गीतांजलि श्री की बुकर अवार्ड विनर पुस्तक “रेत समाधि” की तरह बानू की “हार्ट लैंप” को भी पाठक/आलोचक नीरस या रोचकता के अभाव वाली पुस्तक बताते रहे हैं। हालाँकि “हार्ट लैंप” की कहानी “रेड लुँगी” काफ़ी पॉपुलर कहानी रही है। कन्नड़ साहित्य में बानू मुश्ताक़ हाशिये की मुस्लिम महिलाओं का स्वर मानी जाती रही हैं। “हार्ट लैंप” की सभी कहानियां मूलत: पितृसत्ता से संघर्ष करने वाली महिलाओं की कहानियाँ हैं। बानू की छवि भी अरुंधति रॉय की तरह एक एक्टिविस्ट की छवि है और वह अपने इस व्यक्तित्व के कारण भी कर्नाटक में जानी जाती हैं।
— वीणा वत्सल सिंह
पितृसत्ता की ज़ंजीरों को तोड़ते हुए, पश्चगामी सोच की हवा के ख़िलाफ़ दिल और दिमाग़ के लैम्प को रोशन रखना आसान नहीं है। सच कहा था बानू मुश्ताक़ ने कि कोई कहानी छोटी नहीं होती, देखिए आज छोटी कहानियों ने किस तरह इतिहास बना दिया!
— सरला माहेश्वरी
और अंतरराष्ट्रीय बुकर प्राइज़ 2025 के जूरी प्रमुख मैक्स पोर्टर के शब्दों में, ‘हार्ट लैंप में अंग्रेज़ी के पाठकों के लिए बहुत कुछ नयापन है। यह अनुवाद न सिर्फ़ भाषा के स्तर पर रेडिकल है बल्कि अंग्रेज़ी के स्तर पर भी नये टेक्स्चर जोड़ पाता है। यह किताब अनुवाद के मानकों को लेकर हमारी समझ को विस्तार दे पाती है। इस पुस्तक की तमाम कहानियां स्त्री विमर्श के मुद्दों से तो जुड़ी ही हैं, आस्था, जाति, शक्ति, उत्पीड़न को लेकर भी मुखरता दर्शाती हैं।
आब-ओ-हवा के सोशल मीडिया पेज पर भी बानू मुश्ताक़ को बधाई का सिलसिला जारी है। उनके बारे में और जानने के लिए आप इंटरनेट पर तमाम सामग्रियां पढ़ सकते हैं। आब-ओ-हवा के अंक 28 में बानू मुश्ताक़ के बारे में विशेष सामग्री हिंदी के पाठकों के लिए होगी। चलते चलते आपको यह भी बता दें कि बानू मुश्ताक़ से पहले अब तक वी.एस. नायपॉल, सलमान रश्दी, अरुंधति रॉय, किरण देसाई, अरविंद अडिगा, गीतांजलि श्री जैसे भारतीयों या भारतीय मूल के व्यक्तित्वों को लेखन के लिए बुकर पुरस्कार मिल चुका है।
— आब-ओ-हवा डेस्क