paintings, preeti tamot, प्रीति तामोट
पाक्षिक ब्लॉग प्रीति निगोसकर की कलम से....

कौतूहल, रहस्य और एकांत रचने वाली प्रीति तामोट

             सभी को पैदा होते ही एक माहौल मिलता है, जो कुछ दिखाता, सुनाता और महसूस करवाता है। वो सारे पल हमारी स्मृति बन साथ हो लेते हैं और आगे चल कर अनजाने ही हमारे चित्रों की नींव बन जाते हैं। उम्र के साथ सदा हमारा हिस्सा बनी रही ये स्मृतियां हमारी मार्गदर्शक बन जाती हैं। प्रीति कहती हैं, आज जिसे वो कागज़ पर उतारती हैं वो महज़ चित्र नहीं, उनके बचपन से आज तक का सफ़र है। विद्वान पिता की बेटी होना, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के परिसर में रहना, जहां घर-बाहर विद्वानों का आना-जाना लगा रहता हो, जहां शहर की सांस्कृतिक गतिविधियों में बालमन उंगली थामे घूमता रहा।

उज्जैन शहर की सभ्यता का गहरा कोना है, कालिदास वांग्मय। शहर में अखिल भारतीय कालिदास चित्र एवम् मूर्तिकला प्रतियोगिता और आठ दिवसीय कालिदास ग्रंथों पर नाटक शृंखला देखते बड़ी हो रही प्रीति ने अब राष्ट्रीय स्तर पर ग्राफ़िक्स में शुरूआती दौर के महिला कलाकारों में अपना नाम दर्ज कर लिया है।

हम बात कर रहे हैं प्रीति तामोट की। बचपन से कलाक्षेत्र को कौतुहल से देखती प्रीति अपने घर में इंजिनियरिंग की पढ़ाई करते हुए भाई को देख रही थीं, जो विषयानुसार और पर्सपेक्टिव के अलग-अलग एंगल से चित्र बनाते। वे सीधी-खड़ी-टेढ़ी लकीरें उन्हें आकर्षित करने लगीं। आगे कलाक्षेत्र के अभ्यास दौरान प्रीति ने पर्सपेक्टिव की पढ़ाई की। इनके चित्रों में आज दिखायी देता रेखाओं का जाल उत्सुकता और रहस्य पैदा करता है। इनके चित्रों में एकांत गुंथा हुआ दिखायी पड़ता है।

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एरियल पर्सपेक्टिव इनके चित्रों की दूसरी विशेषता है, जिसकी प्रेरणा प्रीति कालिदास के ग्रंथ मेघदूतम को मानती हैं, जहां से वो काव्यात्मक दृष्टि मिली। साहित्य ने, शब्दों ने ऐसे बिंब दिखाये कि मेघ नीचे उतरकर दृश्य देख रहे हैं, जहां वे उज्जैन नगरी के महलों पर बैठे कबूतर भी देख पा रहे हैं। शाम को आरती के लिए निकली महिलाएं भी दिख रही हैं। विरहिणी तक वो ऊपर से देख पा रहे हैं। उज्जैन शहर में कालिदास के ग्रंथों पर आधारित नाटक, नृत्य और अखिल भारतीय चित्र एवं मूर्तिकला प्रदर्शनियां वर्षों से आयोजित हो रही है। यहां कालिदास प्रदर्शनी की शुरूआत करने वाले स्व. पद्मश्री डॉ. वि.श्री. वाकणकर जी की कक्षा भारती कला भवन में प्रीती की चित्रकला की शिक्षा हुई। रंगों से खेलते हुए पारंपरिक और आधुनिक कला को सीखने-समझने का मौक़ा यहां मिला।

कलात्कमता की दिलचस्प यात्रा

प्रीति के चित्रों में अक्सर नज़र आता एरियल व्यू बहुत आकर्षित करता है। ऊंची-ऊंची पहाड़ियों पर बने जैन मंदिर से दिखने वाले दृश्य नज़रों में लिए प्रीति ने भारत भवन में धीरे-धीरे अलग-अलग माध्यमों में प्रयोग कर अपनी सफल पहचान बनायी। वे कहती हैं भोपाल में भारत भवन के ग्राफ़िक्स स्टूडियो में लीथोग्राफी, एचिंग विधा में काम किया। ज़िंक प्लेट्स में बारीक-बारीक रेखाएं जब सफलता से उकेर पायीं, तब खोज पूरी हो गयी। अपनी कल्पना को उचित आकारने का सही माध्यम मिला। काम करने की स्वतंत्रता होने से तरह-तरह के प्रयोग किये और महीन रेखाओं से सृजन शुरू किया। प्रीति के चित्रों में महलों के परिसर जो बीच में टूटे-फूटे हैं, ऊबड़-खाबड़ ज़मीन, लताएं और वृक्ष, दीवारों पर उगते पौधे, कहीं दरकती दीवारों पर खिले फूलों के गुच्छे हैं तो कहीं दूर तक फैली लताओं का जाल। उन्होंने हरे, लाल, नीले जैसे मुख्य रंगों का उपयोग भी सौम्य रूप से किया है।

प्रीति के चित्रों की शृंखला अब गैलरी, प्रतियोगिताओ में दिखायी देने लगी। प्रीति आगे बताती हैं, पर्सपेक्टिव मेरे चित्रों का आधार बना। इस कारण चित्रों में बर्ड आय व्यू का प्रयोग कर अनूठापन क्रिएट कर लेती हूं। हुआ यूं कि जब इस तरह के मेरे चित्रों की प्रदर्शनी लगी तो एक टीचर ने आर्किटेक्ट काॅलेज के सारे विद्यार्थियों को ये चित्र देखने भेजा। यह मेरे लिए मज़ेदार घटना तो थी ही, तब मुझे सुखद आश्चर्य हुआ जब मेरे चित्र और मेरा नाम उन महिला कलाकारों की सूची में शामिल किया गया, जिन्होंने ग्राफ़िक्स के क्षेत्र में नया कुछ जोड़ा है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि रही।

इन दिनों क्या कर रही हैं? बातचीत के दौरान प्रीति ने बताया, कुछ दिनों की बीमारी के बाद, तरह-तरह के प्रयोगात्मक टेक्स्चर बना, मैंने कैनवास पर काम शुरू किया। यहां भी मुझे धूसर प्रायमरी कलर्स का उपयोग करना ही अच्छा लगता है। रंगों को मिक्स करते कभी कोई रंग आकर्षित करता है, तब उसके साथ मैं रहस्यात्मक जाल-सा बुनती हूं। ऐसा करने से प्रायमरी रंग बैलेंस हो जाता है और एक आश्चर्य-सा रूप कागज़ पर उतर जाता है। टेक्स्चर बनाने के लिए मैं तरह-तरह के माध्यम अपनाती हूं। जैसे कपड़ों के टुकड़े, सूखे फूल, पत्ती, रूई, कागज़ की गेंदें बनाकर रंग में डुबोकर कागज़ पर छापना।

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कुल जमा प्रीति को अपने चित्र छापा माध्यम से प्रयोगात्मक बनाना अच्छा लगता है। वैसे इन दिनों रंग तूलिका का उपयोग करते हुए भी उन्होंने काफ़ी चित्रण किया है। विशेष, बहुचर्चित प्रदर्शनी ‘थूक लगाना मना है’, जिसमें देशभर के नामी कलाकारों से डाक टिकट आकार के चित्र बनवाये गये थे। उसमें हमारी आज की कलाकार भी शामिल थी। आप कैनवास पर वाॅटर कलर्स और एक्रेलिक रंगों का इस्तेमाल करती हैं।

उप​लब्धियों का संसार

अंतरराष्ट्रीय जहांगीर गैलरी में तीन एकल, झेन गैलरी, बैंगलोर और देहली की एटिलियर गैलरी में एकल प्रदर्शनियां अपने नाम कर चुकीं प्रीति तामोट मानती हैं नमः स्पर्शम्-इंडियन वूमन प्रिंटमेकर्स प्रदर्शनी में चित्र शामिल होना बहुत सम्मानजनक है। फर्स्ट ईस्टर्न प्रिंट बिनाल, भारत भवन में, कालिदास प्रदर्शनी उज्जैन, आयफेक्स दिल्ली आदि महत्वपूर्ण जगहों पर समूह प्रदर्शनी में आपके चित्र प्रदर्शित होते रहे हैं। मध्यप्रदेश स्टेट अवार्ड भी आप अपने नाम कर चुकी हैं। जैन समाज का दिगंबर सुंदरी अवार्ड भी आपके खाते में है। उपलब्धियों की लंबी सूची है।

सामाजिक कार्यों की बात करें तो आपने फण्डरेजिंग के लिए चित्र दान किये। खैरागढ़ विश्वविद्यालय, ललित कला अकादमी, दिल्ली के चित्रकला कैम्प्स् में शिरकत कर मनोयोग का कला में महत्व जैसे विषयों पर व्याख्यान दिये। योग आधारित थीम पर संस्कृति विभाग द्वारा ग्वालियर फाईन आर्ट्स कॉलेज में डिमोन्स्ट्रेशन देने भी आपको भेजा गया था। उनके कलात्मक व्यक्तित्व में सामाजिक सरोकार हमेशा जुड़े रहे हैं। कलाकार प्रीति को भविष्य में प्रयोगात्मक सृजन के लिए शुभकामना।

प्रीति निगोसकर, preeti nigoskar

प्रीति निगोसकर

पिछले चार दशक से अधिक समय से प्रोफ़ेशनल चित्रकार। आपकी एकल प्रदर्शनियां दिल्ली, भोपाल, इंदौर, उज्जैन, पुणे, बेंगलुरु आदि शहरों में लग चुकी हैं और लंदन के अलावा भारत में अनेक स्थानों पर साझा प्रदर्शनियों में आपकी कला प्रदर्शित हुई है। लैंडस्केप से एब्स्ट्रैक्शन तक की यात्रा आपकी चित्रकारी में रही है। प्रख्यात कलागुरु वि.श्री. वाकणकर की शिष्या के रूप में उनके जीवन पर आधारित एक पुस्तक का संपादन, प्रकाशन भी आपने किया है। इन दिनों कला आधारित लेखन में भी आप मुब्तिला हैं।

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