
अरुंधति रॉय
बुकर एवं कई सम्मानों से सम्मानित अरुंधति रॉय की 'आज़ादी' उन किताबों की फ़ेहरिस्त में शामिल है, जिन पर प्रतिबंध लगाया गया है। एक और किताब प्रतिबंधित हुई है, कश्मीर: द केस फ़ॉर फ्रीडम, इसके लेखकों में भी अरुंधति शुमार हैं। इसके अन्य लेखक तारिक़ अली, हिलाल बट्ट, अनंग पी. चटर्जी, पंकज मिश्रा हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारतीय कश्मीर में अरुंधति की क़रीब दर्जन भर किताबें प्रतिबंधित हैं।

hafsa kanjwal
हफ़सा कंजवाल की किताब Colonizing Kashmir: State-Building under Indian occupation कश्मीर के ज्वलंत मुद्दे उठाती है। एक रिपोर्ट में उनके शब्द इस प्रकार हैं: इस प्रतिबंध से चौंकना नहीं चाहिए क्योंकि कश्मीर में 2019 के बाद से सेंसरशिप और चौकसी अजीबो-ग़रीब ढंग से चरम पर पहुंची है।

essar batool
ईसार बतूल की चर्चित किताब 'डू यू रिमेम्बर कुनान पोशपोरा?' प्रतिबंध की सूची में है। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचान रखने वाली ईसार पोशपोरा के कुख्यात मास रेप कांड की दोबारा जांच की मांग करने वालों में भी शामिल रही हैं।

seema kazi
सीमा काज़ी लिखित पुस्तक Between Democracy & Nation: Gender and Militarisation in Kashmir को भी कश्मीर प्रशासन ने आपत्तिजनक माना है। जैसा कि शीर्षक से साफ़ है, सीमा लैंगिक मुद्दों, मानवाधिकारों आदि क्षेत्रों में काम करती हैं और देश विदेश में शोध, अध्ययन आदि कर चुकी हैं।

anuradha bhasin
अनुराधा भसीन की किताब A Dismantled State: The Untold Story of Kashmir after Article 370 के शीर्षक से ही साफ़ है कि इससे प्रशासन को आपत्ति हो सकती है। कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक रह चुकीं अनुराधा जम्मू में पत्रकारिता का एक चर्चित चेहरा हैं।

radhika gupta
Freedom in Captivity: Negotiations of belonging along Kashmiri Frontier की लेखक राधिका गुप्ता नीदरलैंड्स में प्रोफ़ेसर हैं। उन्होंने धार्मिक विशेषकर इस्लाम के अध्ययनों, उत्तर उपनिवेशवादी राजनीति जैसे क्षेत्रों में अपना शोध कार्य किया है।

ather zia
कश्मीर में अचानक ग़ायब होने वाले लोगों के परिवारों के साथ मिलकर कुछ लोग एक लड़ाई लड़ते हैं। इन ग़ायब लोगों के अभिभावकों की एक एसोसिएशन है एपीडीपी। एपीडीपी के साथ महिला एक्टिविस्टों के अनुभवों को दर्ज करती किताब है, अतहर ज़िया लिखित Resisting Disappearance: Military Occupation & Women’s Activism in Kashmir, जिस पर प्रतिबंध लगा है।

arundhati roy books
कश्मीर में लेफ़्टिनेंट गर्वनर मनोज सिन्हा प्रशासन ने हाल ही 25 किताबों को ज़ब्त व प्रतिबंधित किया, कि ये ग़लत नैरैटिव देती हैं, युवाओं को उकसाती हैं जैसे तर्क देकर... नैशनल कॉन्फ्रेंस ने कहा कि बैन के पीछे उमर अब्दुल्ला सरकार नहीं है। लेखकों ने इसे दमन बताया। लेखों में इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला, कश्मीर की स्मृतियों को मिटाने, सांस्कृतिक संहार की कोशिश और असुरक्षित सत्ता का डर कहा गया है। एक वर्ग कह रहा है किताबें प्रतिबंधित करने जैसे क़दमों से कश्मीरियों की यादें नहीं मिट जाएंगी। जो बैन की गयी हैं, उनमें कई किताबें महिला लेखकों की हैं और इतिहास, दस्तावेज़ व ज्वलंत मुद्दों के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण हैं। आब-ओ-हवा की दस्तावेज़ी पेशकश...

ayesha jalal
पाकिस्तानी व अमरीकी नागरिक और इतिहासकार आएशा जलाल की किताब Kashmir & the future of South Asia के साथ ही विक्टोरिया शफ़ील्ड, एग्नीस्का (Agnieszka Kuszewska) और डॉ. शमशाद शान जैसी महिलाओं के काम भी प्रतिबंधित किताबों में शामिल हैं। इनके अलावा, सुगत बोस, ए.जी. नूरानी, सुमंत्र बोस, मो. यूसुफ़ सराफ़, डॉ. अब्दुल जब्बार, क्रिस्टोफर स्नेडेन, Prof. Piotr Balcerowicz और डेविड देवदास जैसे लेखकों/इतिहासकारों/आलोचकों की किताबों को बैन किया गया है।