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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर विशेष तौर से ​पढ़िए भारतीय शिक्षा व्यवस्था में अबुल कलाम आज़ाद का योगदान
प्रमोद दीक्षित मलय की कलम से....

मौलाना आज़ाद: आईआईटी, आईआईएम, अकादमियों के जनक

            शिक्षा न केवल किसी व्यक्ति के विकास में सहायक सिद्ध होती है बल्कि समाज के विकास एवं संरचना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन् करती है। शिक्षा व्यक्ति को संस्कारित करती है, अवगुणों एवं विकारों को दूर कर उसमें अन्तर्निहित सद्गुणों को पल्लवित-पुष्पित कर जीवन सुवासित करती है। शिक्षा ही व्यक्ति को मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत कर उसे समाज जीवन हेतु कला कौशल सम्पन्न कर गढ़ती है, रचती है। यह शिक्षा उसे परिवार, समाज और विद्यालयों से प्राप्त होती है। श्रेष्ठ विद्यालय, तकनीकी संस्थान और साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाएं किसी देश की समृद्धि की आधारभूमि होती है। आज़ादी के बाद शैक्षिक संस्थानों को स्थापित कर विकसित करने में जिस महनीय कृतित्व का विराट व्यक्तित्व हमारे मानस पटल पर उभरता है, वह देश के प्रथम शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद हैं। जिनका जन्मदिवस राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता है।

मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा के समर्थक अबुल कलाम 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा के प्रखर पैरोकार थे। मौलाना अबुल कलाम का जन्म एक मौलाना सैयद मोहम्मद ख़ैरूद्दीन के परिवार में 11 नवंबर, 1888 को मक्का, सउदी अरब में हुआ था। माता शेख आलिया मुस्लिम परंपराओं और मान्यताओं से समृद्ध महिला थीं। मौलाना अबुल कलाम का बचपन का नाम अबुल कलाम गुलाम मोहिउद्दीन था। इनके पिता ख़ैरूद्दीन इस्लामी धार्मिक शिक्षा के श्रेष्ठ विद्वान थे और मौलाना के रूप में उनकी ख्याति थी। वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय वह देश छोड़कर मक्का चले गये और वहीं एक अरबी युवती आलिया से निकाह किया। 1890 में भारत वापस आकर कोलकाता में बस गये।

पिता ख़ैरूद्दीन अबुल कलाम को भी इस्लामी संस्कृति एवं धर्म ग्रंथों का अध्ययन करा कर मौलाना बनाना चाहते थे। तदनुरूप इस्लामी शिक्षा घर पर ही वालिद द्वारा शुरू हुई। तत्पश्चात् घर पर ही शिक्षक रखकर ज्यामिति, बीजगणित, दर्शनशास्त्र, उर्दू, बंगाली आदि का अध्ययन किया। अबुल कलाम ने स्वाध्याय से अंग्रेज़ी और विश्व इतिहास का भी अध्ययन किया। अबुल कलाम अभी 13 वर्ष के ही थे कि ज़ुलेख़ा बेगम से उनकी शादी हो गयी। अबुल कलाम के शुरूआती जीवन में एक रूढ़िवादी मुस्लिम युवक की छवि दिखायी देती है लेकिन जब वह तुर्की, अफगानिस्तान, मिस्र, इरान, ईराक आदि देशों की यात्राओं पर गये और वहां तमाम मुस्लिम विद्वानों एवं क्रांतिकारियों से परिचय एवं संवाद हुआ तो विचार परिवर्तन हुआ और लौटकर अबुल कलाम बंगाल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी अरविंद घोष से मिलकर क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न हुए।

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पत्रकारिता और स्वाधीनता संग्राम

अबुल कलाम मुस्लिम समाज में व्याप्त जड़ता को समाप्त करना चाहते थे। और राष्ट्रीय आंदोलन में मुस्लिम युवकों की अधिकाधिक भागीदारी बढ़ाने के आकांक्षी थे और यह काम केवल जागरूकता से ही संभव था। इसलिए 1912 में एक साप्ताहिक अख़बार ‘अल हिलाल’ निकाला। ‘अल हिलाल’ के माध्यम से अबुल कलाम ने न केवल तमाम शैक्षिक और सामाजिक पक्षों पर कलम चलायी बल्कि अंग्रेज़ी शासन के अत्याचार, शोषण एवं उत्पीड़न के विरुद्ध भी मुखर आवाज़ बनकर उभरे। ‘अल हिलाल’ साप्ताहिक उस समय उर्दू में पढ़ा जाने वाला एक बड़ा अखबार बन चुका था, जो एक बहुत बड़े समाज को न केवल देश और समाज के लिए कुछ नया रचनात्मक करने को प्रेरित कर रहा था बल्कि अंग्रेज़ी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए अनुप्राणित भी कर रहा था। स्वाभाविक रूप से अंग्रेज़ इस साप्ताहिक के विचारों से ख़ासे नाराज़ थे। फलतः 1914 में इसका प्रकाशन प्रतिबंधित कर दिया गया। लेकिन जीवटता के धनी अबुल कलाम कहां रुकने वाले थे। उन्होंने दूसरा अखबार ‘अल बलाग’ नाम से निकालना शुरू किया। लेकिन अंग्रेज़ी सत्ता को यह नागवार गुज़रा, क्योंकि इसके तेवर तो और भी तल्ख़ थे। परिणामस्वरूप सन् 1916 में इस अख़बार को भी बंद करवा कर अबुल कलाम को बंगाल से बाहर जाने का हुक्म दिया और रांची, बिहार में नज़रबंद कर दिया गया। वर्ष 1920 में जब अबुल कलाम 4 वर्ष की नज़रबंदी क़ैद से मुक्त होकर आम जनता के बीच पहुंचे तो एक नवीन राजनैतिक फलक उनके स्वागत में विद्यमान था और वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अग्रणी नेताओं में सर्व स्वीकृत कर लिये गये। इसी दरमियान गांधी जी के असहयोग आंदोलन एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय सहभागिता कर महात्मा गांधी के सिद्धांतों को आमजन तक पहुंचाने में संलग्न हुए। सन् 1923 में दिल्ली में संपन्न भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता कर सबसे युवा अध्यक्ष बनने का गौरव हासिल किया।

मौलाना अबुल कलाम गांधी जी के सत्य, प्रेम एवं अहिंसा के सिद्धांतों से प्रेरित एवं सहमत थे। उनके जीवन में गांधी जी के विचारों का प्रभाव दिखायी पड़ता है। ख़ासतौर से देश के विकास के लिए हिंदू मुस्लिम एकता, प्रौढ़ शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा को आवश्यक समझते थे। गांधी जी के अनुयायी थे और उनके आंदोलनों में प्रथम पंक्ति में काम करने वाले सच्चे सिपाही भी। 1930 में दांडी यात्रा के माध्यम से जब महात्मा गांधी ने अंग्रेज़ों के काले नमक कानून को चुनौती दी तो अबुल कलाम गिरफ़्तार होने वाले अग्रिम पंक्ति के नेताओं में शुमार थे। 1942 में ‘अंग्रेज़ो, भारत छोड़ो’ आंदोलन में आपने सक्रिय भूमिका निभायी और गिरफ्तार किये गये। 1946 में रिहाई के बाद आपने भारत के संविधान निर्माण के प्रयासों को बल दिया।

दूरदृष्टि और विरासत

जवाहरलाल नेहरू आपकी क़ाबिलियत, दूरदृष्टि, शैक्षिक समझ और देश-समुदाय के लिए काम करने के जज़्बे से परिचित थे। इसीलिए देश की आज़ादी के बाद बनी पहली सरकार में आपको महत्वपूर्ण मंत्रालय सौपकर शिक्षा मंत्री का दायित्व दिया गया। यह कलाम की शैक्षिक दूरदृष्टि का ही परिणाम है कि आज जो तकनीकी और प्रबंधन संस्थान, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाएं अपने कार्यों से देश के विकास में योगदान दे रही हैं, उन सबकी स्थापना उन्होंने की:

  • 1950 में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की स्थापना कर देश की संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन करने की पहल की।
  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना करके भारत के विकास का राजपथ तैयार किया।
  • एक अच्छे लेखक, पत्रकार, संपादक और कवि के रूप में भी वह लोक समादृत रहे। उन्हें कला की समझ थी और साहित्य के माध्यम से सामाजिक बदलाव को स्वीकार करते थे। इसलिए 1953 में संगीत नाटक अकादमी, 1954 में साहित्य अकादमी तथा ललित कला अकादमी की स्थापना की। उनके साहित्यिक अवदान से समाज को दिशा मिली।

अबुल कलाम ने कुल 12 कृतियां लोक के हाथों में समर्पित की, जिनमें इंडिया विन्स फ्रीडम, ग़ुबार-ए-ख़ातिर, तर्जुमा-ए-कुरान और हमारी आज़ादी का उल्लेख करना प्रासंगिक लगता है। देश की विकास धारा को समृद्ध करने वाला यह महामानव 22 जनवरी, 1958 को अपनी वैचारिक पोथी हमें सौपकर हमसे दूर चला गया। भारत सरकार ने 1988 में उनकी जन्म शताब्दी के अवसर पर एक डाक टिकट जारी कर श्रद्धांजलि अर्पित की और 1992 में देश का सर्वोच्च पुरस्कार ‘भारत रत्न’ देकर उनके योगदान को रेखांकित किया। व्यक्ति के विकास में शिक्षा को महत्वपूर्ण मानने वाले अबुल कलाम के जन्म दिवस को 2008 से ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ के रूप में मनाना आरंभ हुआ। शिक्षा दिवस मनाते हुए उनके विचारों को हम आत्मसात् कर राष्ट्र निर्माण यज्ञ में अपनी वैचारिक आहुति दें, यही संकल्प सामयिक है और ज़रूरी भी।

प्रमोद दीक्षित मलय

प्रमोद दीक्षित मलय

प्रमोद दीक्षित मलय की दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं जबकि वह क़रीब एक दर्जन पुस्तकों का संपादन कर चुके हैं। इनमें प्रमुख रूप से अनुभूति के स्वर, पहला दिन, महकते गीत, हाशिए पर धूप, कोरोना काल में कविता, विद्यालय में एक दिन, यात्री हुए हम आदि शामिल हैं। कविता, गीत, कहानी, लेख, संस्मरण, समीक्षा और यात्रावृत्त लिखते रहे मलय ने रचनाधर्मी शिक्षकों के स्वैच्छिक मैत्री समूह 'शैक्षिक संवाद मंच' स्थापना भी 2012 में की।

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