
- September 4, 2025
- आब-ओ-हवा
- 2
हास्य रंग आदित्य की कलम से....
डिग्री-डिग्री.. देश की परंपरा का तो लिहाज़ करो निकम्मो!
मेरे बेटे ने आये-दिन टीवी और मोबाइल पर चल रहे फ़र्ज़ी डिग्री मामले पर डिबेट सुनकर सहज ही पूछ लिया- “पापा ये डिग्री क्या होती है?” मैंने भी बच्चे की उत्सुकता देख एक अच्छे पिता का फ़र्ज़ निभाते हुए सरलतम रूप में समझाने की कोशिश करते हुए उसकी नर्सरी से लेकर ग्रेड-2 की मार्कशीट/रिपोर्ट कार्ड दिखाते हुए कहा, जिस तरह इन कक्षाओं में पढ़ने पर तुम्हें ये प्रमाण-पत्र दिये गये हैं, वैसे ही बड़ी कक्षाओं में पढ़ाई पूरी होने पर डिग्री दी जाती है। बेटे ने स्वाभाविक रूप से एक गम्भीर प्रश्न पूछ लिया- “तो आपकी डिग्री कहाँ है? मुझे दिखाओ”। मैंने बात को टालने की गरज़ से कह दिया, “पता नहीं कहाँ रखी है, बहुत सालों से कोई काम नहीं पड़ा, ढूंढना पड़ेगा।” वो दिन था और आज का दिन है हर दो-चार दिन में वह मुझसे डिग्री मांगता है। इतिहास विषय में प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर और एम.फिल. की डिग्री होने के बावजूद इसे दिखाने में मुझे शर्म आती है क्योंकि मेरे विशेष काम ये न आ सकीं। आज मैं जो काम कर रहा हूँ, इन डिग्रियों के बिना भी कर सकता था और शायद ज़्यादा बेहतर तरीक़े से। हो सकता है देश के प्रधान की मनःस्थिति भी मेरे जैसी ही हो, लेकिन मेरा बेटा विपक्षी पार्टी के नेताओं की तरह “डिग्री दिखाओ” पर अड़ा हुआ है। कभी-कभी तो अपनी मार्कशीट दिखाकर चिढ़ाते हुए कहता है, “डिग्री दिखाओ”। देश के प्रधान की डिग्री को लेकर जिस तरह का शोर मचा हुआ है, उसने बच्चों के मन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला है। बहुत से भले माता-पिता बच्चों से नज़रे चुराये घूम रहे हैं और बच्चे उन्हें संदिग्ध नज़रों से देख रहे हैं।
इस देश में ज्ञान को लेकर कभी इस तरह से प्रश्नचिह्न नहीं लगाये गये। वाल्मीकि, वेदव्यास, कबीर, सूरदास, तुलसी आदि संतों और महात्माओं से डिग्री मांगने की धृष्टता नहीं की गयी। महान शासकों अशोक, चन्द्रगुप्त, कनिष्क यहाँ तक कि अकबर, जिसे निरक्षर माना जाता है, जैसे शासको से भी डिग्री माँगने की अशिष्टता नहीं दिखायी गयी। अफ़सोस कि आज कुछ लोग अपनी गौरवशाली परम्पराओं को भूलकर साहब से डिग्री दिखाने की मांग कर रहे हैं। इस देश में डिग्रीधारियों की कमी नहीं है। पाई के पच्चीस चप्पलें चटकातें रोज़गार की आस में बेरोज़गार घूम रहे हैं। उनकी सुध लेने के बजाय लोग साहब के पीछे पड़े हैं, जो डिग्री दिखाकर रोज़गार नहीं मांग रहे बल्कि चाय, पकौड़े, नाले की गैस और ना जाने किन-किन नवोन्मेषी उपायों से देश में रोज़गार पैदा कर रहे हैं।
साहब द्वारा डिग्री न दिखाये जाने के निर्णय से देश का एक बड़ा अल्पशिक्षित तबक़ा प्रसन्न है और साहब को साधुवाद दे रहा है। शिक्षित होने की स्वघोषणा अब संस्थागत प्रमाणों पर आश्रित नहीं रही। वैसे भी जिन डिग्रियों को लेकर इतना विवाद खड़ा किया जा रहा है, देश में उसकी भरमार है और उपयोगिता निम्नतम स्तर पर है। हालत यह है कि इन डिग्रियों के बल पर तो विवाह प्रस्ताव भी बमुश्किल मिल पा रहे हैं, नौकरियों की तो बात ही छोड़िए। फिर भी इस अदना-सी बात को लेकर लोग वबाल काटने पर उतारू हैं। सभी जानते है साहब के ज्ञान पर संदेह नहीं किया जा सकता, समाज ने जिसे “विश्वगुरु” के रूप में स्वीकार किया हो, उन पर डिग्री दिखाने की बाध्यता थोपना न केवल ज़्यादती है, बल्कि भारत की महान परंपराओं का अनादर है।

आदित्य
प्राचीन भारतीय इतिहास में एम. फिल. की डिग्री रखने वाले आदित्य शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न एनजीओ के साथ विगत 15 वर्षों से जुड़े रहे हैं। स्वभाव से कलाप्रेमी हैं।
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बहुत खूब
बहुत बढ़िया। शानदार।