
- May 15, 2025
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कथारस के साथ काव्य की संवेदना
‘पीले फूल कनेर के’ शशि खरे का बेहद आश्वस्त करने वाला और शिल्पायन प्रकाशन से छपा पहला कहानी-संग्रह है। मैं उनकी कहानियों की पाठक रही हूँ और उनकी कहानियों ने हमेशा मुझे प्रभावित किया है। ‘वर्तमान साहित्य’ पत्रिका के संपादन के दौरान वर्ष 2007 से हमने ‘वर्तमान साहित्य-कमलेश्वर कहानी प्रतियोगिता’ का आयोजन शुरू किया। शशि खरे की कहानियां हमें प्रतिवर्ष प्राप्त होतीं और पसंद की जातीं। उनकी कहानी हमेशा अंतिम चरण में चयनित पांच-छः कहानियों में होती और 2014 में उनकी कहानी ‘स्त्री-विमर्श (कोसी के घाट पर)’ को ‘वर्तमान साहित्य-कमलेश्वर कहानी पुरस्कार’ मिला और वे सम्मानित हुईं।
शशि खरे के लेखन की सबसे बड़ी विशेषता है उनका अंदाज़े-बयाँ। प्रकृति जो धीरे-धीरे न सिर्फ हमारे चारों ओर के पर्यावरण से बल्कि विशेष रूप से कथा साहित्य से ग़ायब हो रही है, इनकी अनेक कहानियों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। शुद्ध प्रकृति वर्णन है इनकी कहानी ‘चल गोरी घर आपने’। बिना किसी मुख्य चरित्र और पात्रों के कहानी में शरद ऋतु का आसमान, सफ़ेद बादल, चिड़ियों के झुंड और उनकी हलचल के ढेर सारे चित्र, गौरेयों की चहल-पहल, कीचड़ में फंसे पिल्लों के साथ कुत्तों के संवाद, ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के दृश्य, नीचे रंग-बिरंगे फूलों की क्यारी… इन सबके बीच लोगों की आवाजाही और परिवारीजन के संवाद, अद्भुत दृश्य संरचना निर्मित करते हैं।
स्त्री-केंद्रित कहानियों में सबसे अधिक प्रभावित करती है ‘स्त्री-विमर्श (कोसी के घाट पर)’। नाम से लगता है यह एक फार्मूला कहानी होगी, लेकिन कहानी की विषय- वस्तु के साथ सामंती परिवेश, हवेलीनुमा घर और उसके भीतर-बाहर के चित्र बेहद सटीक और जीवंत हैं। ‘कभी तो ये मन के अंधेरे’ घरेलू हिंसा से पीड़ित स्त्री की कहानी है, जो अंततः जीत हासिल करती है। कहानी की ख़ूबसूरती यह है कि इस बदलाव में मुख्य पात्र का पूरे फ़साने में ज़िक्र ही नहीं होता और अंत में कहानी एक संकेत भर देती है।
एक अन्य कहानी ‘बीती रात’ में देर से सही, यामिनी अपने कंधों से ग़ुलामी का जुआ उतार कर मज़बूत कदमों से जीवन की नयी राह चुनने में सफल होती है। स्मृतियों की कंदरा से निकली ‘द-मोह’ भी संवेदना के धागों से कुशलता से बुनी गयी कहानी है। लोक-कथा के रचाव में सामंती समाज के रस्मो रिवाज और इन्सानी रिश्तों के बीच सामाजिक अन्याय की प्रतिध्वनियाँ – ये चित्र ‘सागर’ को संवेदनायुक्त आख्यान का स्वरूप देते हैं। ‘तोता-मैना तथा ‘जादू’ सहज प्रेम और सौंदर्य की परिभाषा के साथ ज़िन्दगी की कहानियाँ हैं। ‘दाँझणा’, ‘सीधी राह’, ‘उसका कोई नाम नहीं’ के अलावा डायरी के रूप में लिखी गयी ‘ज़िन्दगी के सफ़हे पर’ विभिन्न परिस्थितियों से जूझते पात्रों की कहानियाँ हैं। ‘झाबुआ’ संस्मरण भी कथारस से भरपूर एक कहानी है।
शशि खरे के पास बेहतरीन भाषा है, शिल्पगत कौशल है। उनसे उम्मीद है कि विस्तारित दृष्टिकोण के साथ विविध वैचारिक प्रश्नों को अपने सोच का हिस्सा बनाकर सामाजिक अंतरंगता से निर्मित अंतर्दृष्टि के साथ निरंतर अपनी रचनाओं से हिन्दी कथा साहित्य को समृद्ध करती रहेंगी। उनके गद्य में कथारस के साथ ही काव्य की संवेदना और ललित, सरस भाषा का प्रवाह है जो उनके लेखन को विशिष्ट बनाता है।

नमिता सिंह
लखनऊ में पली बढ़ी।साहित्य, समाज और राजनीति की सोच यहीं से शुरू हुई तो विस्तार मिला अलीगढ़ जो जीवन की कर्मभूमि बनी।पी एच डी की थीसिस रसायन शास्त्र को समर्पित हुई तो आठ कहानी संग्रह ,दो उपन्यास के अलावा एक समीक्षा-आलोचना,एक साक्षात्कार संग्रह और एक स्त्री विमर्श की पुस्तक 'स्त्री-प्रश्न '।तीन संपादित पुस्तकें।पिछले वर्ष संस्मरणों की पुस्तक 'समय शिला पर'।कुछ हिन्दी साहित्य के शोध कर्ताओं को मेरे कथा साहित्य में कुछ ठीक लगा तो तीन पुस्तकें रचनाकर्म पर भीहैं।'फ़सादात की लायानियत -नमिता सिंह की कहानियाँ'-उर्दू में अनुवादित संग्रह। अंग्रेज़ी सहित अनेक भारतीय भाषाओं में कहानियों के अनुवाद। 'कर्फ्यू 'कहानी पर दूरदर्शन द्वारा टेलीफिल्म।
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