राजेंद्र कृष्ण का कारनामा—13 मिनिट में गांधी का ज़िन्दगी—नामा
पाक्षिक ब्लॉग ज़ाहिद ख़ान की कलम से....

राजेंद्र कृष्ण का कारनामा—13 मिनिट में गांधी का ज़िन्दगी—नामा

फ़िल्मी दुनिया में राजेन्द्र कृष्ण वह गीतकार हैं, जिन्होंने हिन्दी फ़िल्मों की कहानी, स्क्रिप्ट और सम्वाद भी लिखे। हर मैदान में वे कामयाब रहे। लेकिन उनकी पहचान गीतकार की ही है। साल 1948 में राजेन्द्र कृष्ण ने एक ऐसा गीत लिखा, जिससे वे फ़िल्मी दुनिया में हमेशा के लिए अमर हो गए। 30 जनवरी, 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या हुई। बापू की इस शहादत से पूरा देश ग़मगीन हो गया। राजेन्द्र कृष्ण भी उनमें से एक थे। बापू के जानिब अपने जज़्बात को उन्होंने एक जज़्बाती गीत ‘सुनो सुनो ऐ दुनिया वालो बापू की ये अमर कहानी’ में ढाला। तक़रीबन तेरह मिनिट के इस लम्बे गीत में महात्मा गांधी का पूरा ज़िन्दगी—नामा है। मोहम्मद रफ़ी की दर्द भरी आवाज़ ने इस गाने को नई ऊॅंचाईयां पहुॅंचा दी। आज भी ये गीत जब कहीं बजता है, तो देशवासियों की आंखें नम हो जाती हैं। इस गीत को सुनकर, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी अपने आॅंसू नहीं रोक पाए थे। उन्होंने मो. रफ़ी को अपने घर बुलाया और उनसे वही गीत की फ़रमाइश की। पं. नेहरू उनके इस गाने से इतना मुतास्सिर हुए कि स्वतन्त्रता दिवस की पहली वर्षगॉंठ पर उन्होंने मोहम्मद रफ़ी को एक सिल्वर मेडल देकर सम्मानित किया। मो.रफ़ी को अपनी पूरी ज़िन्दगानी में कई सम्मान-पुरस्कार मिले। दुनिया भर में फैले उनके प्रशंसकों ने उन्हें ढेर सारा प्यार दिया। लेकिन पं.नेहरू द्वारा दिए गए, इस सम्मान को वे अपने लिए सबसे बड़ा सम्मान मानते थे।

राजेंद्र कृष्ण का कारनामा—13 मिनिट में गांधी का ज़िन्दगी—नामा 

राजेन्द्र कृष्ण का पूरा नाम राजेन्द्र कृष्ण दुग्गल था। उन्हें बचपन से ही शेर-ओ-शायरी का जु़नूनी शौक़ था। अपना शौक़ पूरा करने के लिए वे स्कूल की किताबों में अदबी रिसालों को छिपाकर पढ़ते। यह शौक़ कुछ यूॅं परवान चढ़ा कि आगे चलकर ख़ुद लिखने भी लगे। पन्द्रह साल की उम्र तक आते-आते उन्होंने मुशायरों में शिरकत करना शुरू कर दिया। जहॉं उनकी शायरी ख़ूब पसन्द भी की गई। शायरी का शौक़ अपनी जगह और ग़म-ए-रोज़गार का मसला अलग। लिहाज़ा साल 1942 में शिमला की म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में क्लर्क की छोटी—सी नौकरी कर ली। लेकिन उनका दिल इस नौकरी में बिल्कुल भी नहीं रमता था। नौकरी के साथ-साथ उनका लिखना-पढ़ना और मुशायरों में शिरकत करना जारी रहा। यह वह दौर था, जब सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर मुशायरों-कवि सम्मेलनों की बड़ी धूम थी। इन मुशायरों की मक़बूलियत का आलम यह था कि हज़ारों लोग इनमें अपने मनपसन्द शायरों को सुनने के लिए दूर-दूर से आते थे। शिमला में भी उस वक़्त हर साल एक अज़ीमुश्शान ऑल इंडिया मुशायरा होता था, जिसमें मुल्क भर के नामचीन शायर अपना कलाम पढ़ने आया करते थे। साल 1945 का वाक़िआ है, मुशायरे में दीगर शोअरा हज़रात के साथ नौजवान राजेन्द्र कृष्ण भी शामिल थे। जब उनके पढ़ने की बारी आई, तो उन्होंने अपनी ग़ज़ल का मतला पढ़ा, ‘‘कुछ इस तरह वो मेरे पास आए बैठे हैं/जैसे आग से दामन बचाए बैठे हैं’’। ग़ज़ल के इस शे’र को ख़ूब वाह-वाही मिली। दाद देने वालों में जनता के साथ-साथ जिगर मुरादाबादी की भी आवाज़ मिली। शायर-ए-आज़म जिगर मुरादाबादी की तारीफ़ से राजेन्द्र कृष्ण को अपनी शायरी पर एतिमाद पैदा हुआ और उन्होंने शायरी और लेखन को ही अपना पेशा बनाने का फ़ैसला कर लिया। एक बुलन्द इरादे के साथ वे शिमला छोड़, मायानगरी मुम्बई में अपनी किस्मत आज़माने जा पहुॅंचे।

राजेन्द्र कृष्ण को पहचान मिली फ़िल्म ‘प्यार की जीत’ से। साल 1948 में आई इस फ़िल्म में संगीतकार हुस्नलाल भगतराम का संगीत निर्देशन में उन्होंने चार गीत लिखे। फ़िल्म के सारे गाने ही सुपर हिट हुए। ख़ास तौर पर अदाकारा सुरैया की सुरीली आवाज़ से राजेन्द्र कृष्ण के गाने ‘तेरे नैनों ने चोरी किया मेरा छोटा सा ज़िया परदेसिया’ में जादू जगा दिया। गाना पूरे देश में ख़ूब मक़बूल हुआ। साल 1953 में फ़िल्म ‘अनारकली’ और साल 1954 में आई ‘नागिन’ में उनके लिखे सभी गाने सुपर हिट साबित हुए। इन गानों की कामयाबी ने राजेन्द्र कृष्ण के नाम को देश के घर-घर तक पहुॅंचा दिया। फ़िल्म ‘अनारकली’ में यूॅं तो उनके अलावा तीन और गीतकारों जॉं निसार अख़्तर, हसरत जयपुरी, शैलेन्द्र ने गीत लिखे थे, लेकिन राजेन्द्र कृष्ण के लिखे सभी गीत बेहद पसन्द किए गए। ‘ज़िन्दगी प्यार की दो-चार घड़ी होती है..’, ‘जाग दर्द-ए—इश्क जाग’, ‘ये ज़िन्दगी उसी की है’ और ‘मोहब्बत में ऐसे क़दम डगमगाए’ उनके लिखे गीतों को हेमन्त कुमार और लता मंगेशकर की जादुई आवाज़ ने नई बुलन्दियों पर पहुॅंचा दिया। इसी फ़िल्म से उनकी जोड़ी संगीतकार सी. रामचन्द्र के साथ बनी। इस जोड़ी ने आगे चलकर कई सुपर हिट फ़िल्में ‘पतंगा’, ‘अलबेला’, ‘पहली झलक’, ‘आज़ाद’ आदि दीं। इन फ़िल्मों में लता मंगेशकर द्वारा गाये गए गीत ख़ूब लोकप्रिय हुए।

सरल, सहज ज़बान में लिखे राजेन्द्र कृष्ण के गीत लोगों के दिलों में बहुत ज़ल्द ही अन्दर तक उतर जाते थे। जहॉं उन्हें मौक़ा मिलता, उम्दा शायरी भी करते। संगीतकार मदन मोहन के लिए उन्होंने जो गाने लिखे, वह अलग ही नज़र आते हैं। मिसाल के तौर पर फ़िल्म ‘अदालत’ में राजेन्द्र कृष्ण ने एक से बढ़कर एक बेमिसाल ग़ज़लें ‘उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते’, ‘जाना था हमसे दूर बहाने बना लिये’ और ‘यूॅं हसरतों के दाग़ मुहब्बत में धो लिये’ लिखीं। अपनी मख़मली आवाज़ से पहचाने जाने वाले सिंगर तलत महमूद के जो सुपर हिट गीत हैं, उनमें से ज़्यादातर राजेन्द्र कृष्ण के लिखे हुए हैं। यक़ीन न हो तो ख़ुद ही देखिए ‘ये हवा ये रात ये चॉंदनी तेरी इक अदा पे निसार है’ (फ़िल्म-संगदिल), ‘हमसे आया न गया, तुमसे बुलाया न गया’ (फ़िल्म-देख कबीरा रोया), ‘आंसू समझ के क्यूॅं मुझे आँख से तुमने गिरा दिया’ (फ़िल्म-छाया), ‘फिर वही शाम वही ग़म वही तनहाई है’, ‘मैं तेरी नज़र का सुरूर हूॅं, तुझे याद हो के न याद हो’ (फ़िल्म-जहाँआरा)।

जाहिद ख़ान

जाहिद ख़ान

इक्कीसवीं सदी के पहले दशक से लेखन की शुरुआत। देश के अहम अख़बार और समाचार एवं साहित्य की तमाम मशहूर मैगज़ीनों में समसामयिक विषयों, हिंदी-उर्दू साहित्य, कला, सिनेमा एवं संगीत की बेमिसाल शख़्सियतों पर हज़ार से ज़्यादा लेख, रिपोर्ट, निबंध,आलोचना और समीक्षा आदि प्रकाशित। यह सिलसिला मुसलसल जारी है। अभी तलक अलग-अलग मौज़ूअ पर पन्द्रह किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘तरक़्क़ीपसंद तहरीक के हमसफ़र’ के लिए उन्हें ‘मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन’ का प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘वागीश्वरी पुरस्कार’ मिला है। यही नहीं इस किताब का मराठी और उर्दू ज़बान में अनुवाद भी हुआ है।

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