dr Radhakrishnan, apj addul kalam
वैचारिकी राजा अवस्थी की कलम से....

शिक्षक दिवस पर विचारें विद्यार्थी दिवस की अवधारणा

               शिक्षक दिवस! हम भारत में प्रत्येक पाँच सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाते हैं। शिक्षक दिवस प्राय: हर देश में मनाया जाता है। प्रत्येक देश इसे अलग-अलग तिथियों में मनाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाता है। दरअसल भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को ही हम भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पहले 1952 में उपराष्ट्रपति बने फिर 13 में 1962 को भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने, किंतु इससे पूर्व वे एक महान शिक्षक के रूप में संसार में प्रख्यात् हो चुके थे। उन्होंने अपने भाषणों और लेखों के द्वारा भारत के बाहर, संपूर्ण संसार को भारतीय दर्शन से परिचित कराया। विश्व को बहुत सुबोध और सुगम में शैली में उन्होंने भारतीय दर्शन का अध्ययन सुलभ कराया। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे। महान दार्शनिक थे।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपने विद्यार्थियों के द्वारा उनका जन्मदिन मनाने की इच्छा को उसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाने को कहकर एक बड़ा काम किया। इस बहाने हम अपने शिक्षकों को याद कर लेते हैं। एक शानदार परम्परा का आरंभ शिक्षक की प्रतिष्ठा के मार्ग पर उल्लेखनीय विचार था। किंतु यह प्रश्न फिर भी अनुत्तरित ही रह जाता है, कि यह सब क्यों? यदि यह डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती मात्र है, तो फिर ठीक है। किंतु, यदि यह शिक्षक दिवस भी है, जो कि है ही। तो, फिर इस सवाल की और इसके उत्तर की तह तक पहुंँचे बिना हमारा शिक्षक दिवस मनाना सार्थक नहीं हो पाएगा।

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जब भी हम किसी के लिए किसी एक दिन को बहुत महत्वपूर्ण बना देते हैं, तो वर्ष के शेष 364 दिनों में उसके महत्व को कमतर कर देते हैं। या फिर ऐसा भी कह सकते हैं कि, जिसे महत्वपूर्ण मानते ही नहीं, जबकि हमारे जीवन के निर्माण में वह महत्वपूर्ण होता है, तो समझदार लोगों ने एक दिन उसके महत्व की याद दिलाने के लिए समर्पित कर दिया। शिक्षक दिवस ही क्यों! मातृ दिवस! पितृ दिवस! मित्र दिवस! और न जाने कितने दिवस हैं। शहर, समाज, राष्ट्र और विश्व की अर्थव्यवस्था, बाज़ार और रोजगार के लिए भी यह दिवस बहुत अर्थवान है। किंतु, फिर भी यह प्रश्न तो बना ही है कि हमारे जीवन को गढ़ने में महत्वपूर्ण व्यक्तियों, परम्पराओं और तत्वों को एक दिन समर्पित करके क्या हमने उसे शेष 364 दिनों तक भूले रहने या उपेक्षित किए रहने का बहाना तो नहीं गढ़ लिया। या फिर हमने उसे इस कदर उपेक्षित कर रखा है, कि इस कृतघ्नता के कलंक से निवृत्ति के लिए एक दिन उसे देकर, एक दिन उसके नाम करके अपराध बोध से भी मुक्त रहना चाहते हैं। ये बातें ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है। और ज़रूरी इसलिए है, ताकि हम अपना जीवन गढ़ने वालों के प्रति न सिर्फ़ कृतज्ञ रहें बल्कि सदैव कृतज्ञ भाव से उनसे मार्गदर्शन भी प्राप्त करते रह सकें। हमारा यह भाव प्रकृति, पर्यावरण, माता-पिता, शिक्षक, मित्र आदि सभी के प्रति रहना चाहिए।

शिक्षक शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षक पढ़ाता नहीं, बल्कि सिखाता है। हम जो कुछ भी सीखते हैं, वह हमारा जीवन-कौशल बन जाता है। इस तरह शिक्षक हमें जीना सिखाता है। हमारे जीवन को गढ़ता है। उसका निर्माण करता है। वैसे हमारे देश में पहले ही गुरु पूर्णिमा बहुत जोर-शोर से मनाई जाती है। पहले जिन गुरुओं के लिए यह मनायी जाती थी, वे सचमुच अपने विद्यार्थियों को जीना सिखाते थे। जीवन कौशल सिखाते थे। उनके जीवन को गढ़ते थे। गुरु सांदीपनि, वशिष्ठ, विश्वामित्र और आचार्य विष्णुगुप्त (चाणक्य) ऐसे ही नाम है। किन्तु पिछले कुछ वर्षों में गुरु पूर्णिमा पर्व पांँव पखारने या पांँव पखरवाने का ही पर्व रह गया है। कथा सुनाकर अपनी सम्पत्ति को बढ़ाने वाले कथित गुरुओं ने इस महत्वपूर्ण पर्व की भावना को अतिक्रमित कर लिया है। वे फूले नहीं समा रहे। पाँव पखरवाये चले जा रहे हैं। बड़े-बड़े पंडाल बनाकर प्रभुता का प्रदर्शन कर बेचारे शिष्य को सम्मोहित किये जा रहे हैं। शिष्य हक्का-बक्का-सा उनकी भौतिक समृद्धि के आगे नतमस्तक है। हमारा दायित्व है, कि हम शिक्षक दिवस को इस दशा में न जाने दें। क्योंकि ख़तरा यहांँ भी है। जिस तरह करोड़पति शिक्षकों की संख्या बढ़ रही है, तो इस तरह के प्रायोजित आयोजनों की शुरूआत की संभावना से इनकार नहीं कर सकते।

विद्यार्थी बने रहना बहुत ज़रूरी

एक दूसरी बात, जो ज़रूरी बात है। वह यह है, कि शिक्षक दिवस के साथ हमें विद्यार्थी दिवस मनाना चाहिए। ऐसा इसलिए कि सफलता उसी की चेरी बनती है, जो जीवन भर लगातार सीखता रहता है। जिसे आप अपडेट रहना कहते हैं, तो जो हर पल अपडेट रहता है, सीखता रहता है, वह न सिर्फ चुनौतियों का सामना कर पाता है, बल्कि उनके पार जाकर सफलता के शिखर पर आसीन होता है। इसलिए विद्यार्थी बने रहना बहुत ज़रूरी है। विद्यार्थी बने रहने के लिए सदैव एक शिक्षक की जरूरत होगी और फिर शिक्षक की उपेक्षा नहीं हो पाएगी। वह सदैव महत्वपूर्ण रहेगा। दरअसल व्यक्ति के रूप में शिक्षक उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना विद्यार्थी। यदि शिक्षक सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता, तो द्रोणाचार्य के सभी शिष्य अर्जुन की तरह ही श्रेष्ठ होते। परशुराम अपने शिष्य देवव्रत भीष्म से पराजित नहीं होते। सांदीपनि के शिष्यों में कृष्ण, सुदामा और बलराम के अतिरिक्त और भी शिष्यों की महानता के किस्से होते। किन्तु ऐसा नहीं है। ऐसा इसलिए नहीं है, क्योंकि विद्यार्थी ऐसी मिट्टी है, जो स्वयं से स्वयं को गढ़ता है। गुरु तो एक बाड़ की तरह काम करता है। उसके निर्माण पर अनुशासन और नियंत्रण का बंधन लगाये रहता है। यदि व्यक्ति के रूप में ही गुरु सिखा रहा होता, तो एकलव्य की धनुर्विद्या में प्रवीणता देखकर द्रोणाचार्य सशंकित नहीं हुए होते। हाँ! गुरु का अनुशासन नहीं होने से एकलव्य अवश्य इस तरह अनियंत्रित हो जाता है कि एक कुत्ते का भौंकना भी बर्दाश्त नहीं कर पाता इसलिए अनुशासन बहुत ज़रूरी है। अनुशासन के लिए व्यक्ति के रूप में गुरु की महत्ता है। कृष्ण भी गुरु के रूप में अर्जुन को उपदेश करते हैं, किन्तु केवल अर्जुन को! शेष पांडवों को नहीं क्योंकि उन्हें मालूम है कि यह सामर्थ्य केवल अर्जुन में है कि वह उनके उपदेश के मर्म तक पहुंँच सके।

दरअसल प्रत्येक शिक्षक को एक सुयोग्य विद्यार्थी की तलाश होती है। बहुत भाग्यशाली होता है वह शिक्षक, जिसे एक योग्य विद्यार्थी मिल जाता है। एक अकेला कृष्ण, एक भीष्म, एक कर्ण, एक चन्द्रगुप्त या एक अब्दुल कलाम भी किसी सांदीपनि, किसी परशुराम, किसी चाणक्य, किसी सुब्रमण्यम अय्यर को अमर कर देता है। इसलिए विद्यार्थी ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। विद्यार्थी बने रहकर ही शिक्षक के महत्ता को बनाये रखा जा सकता है। एक शिक्षक भी तब ही सुयोग्य, सफल, श्रेष्ठ नागरिक का निर्माण करके एक उन्नत राष्ट्र का निर्माण करने में अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकता है, जब वह निरन्तर विद्यार्थी बना रहता है। विद्यार्थी बने रहकर ही ज्ञान की साधना की जा सकती है।

यद्यपि यह अब्दुल कलाम का जन्मदिन नहीं है, किन्तु जब महान शिक्षकों की बात हो, तो अब्दुल कलाम की बात किये बिना बात पूरी नहीं हो सकती। डॉ. राधाकृष्णन तो पेशे से भी शिक्षक थे, इसलिए भी शिक्षक थे, किन्तु डॉ. कलाम पेशे से शिक्षक नहीं होने के बावजूद अपनी अंतिम साँस तक शिक्षक बने रहे। वे विद्यार्थियों के बीच जाकर उन्हें सिखाते रहे, पढ़ाते रहे। ऐसे महान शिक्षक को प्रणाम किये बिना शिक्षक दिवस सम्पन्न नहीं माना जा सकता, क्योंकि शिक्षक दिवस डाॅ. राधाकृष्णन के जन्मदिवस से बहुत ऊपर की चीज़ है। इसे उनके जन्मदिवस तक सीमित नहीं करना चाहिए।

राजा अवस्थी

राजा अवस्थी

सीएम राइज़ माॅडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कटनी (म.प्र.) में अध्यापन के साथ कविता की विभिन्न विधाओं जैसे नवगीत, दोहा आदि के साथ कहानी, निबंध, आलोचना लेखन में सक्रिय। अब तक नवगीत कविता के दो संग्रह प्रकाशित। साहित्य अकादमी के द्वारा प्रकाशित 'समकालीन नवगीत संचयन' के साथ सभी महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय समवेत नवगीत संकलनों में नवगीत संकलित। पत्र-पत्रिकाओं में गीत-नवगीत, दोहे, कहानी, समीक्षा प्रकाशित। आकाशवाणी केंद्र जबलपुर और दूरदर्शन केन्द्र भोपाल से कविताओं का प्रसारण।

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