
- October 25, 2025
- आब-ओ-हवा
- 0
विज्ञापन जगत के नामी हस्ताक्षर पीयूष पांडेय के दुखद निधन पर श्रद्धांजलि, उस अमर कलात्मक रचना की याद के माध्यम से, वह जिसकी निर्माण टीम का हिस्सा रहे।
आब-ओ-हवा की प्रस्तुति...
मिले सुर मेरा तुम्हारा... ऐसे बना था एक देश का एक सुर
1987 का साल था जब राजीव गांधी ने कठिन सियासी माहौल में प्रधानमंत्री का पद संभाला था। युवाओं की आकांक्षाओं और तरक़्क़ीपसंदी को जैसे एक चेहरा मिला था। राजीव चाहते थे कि एक तस्वीर ऐसी बने, जो भारतीय राष्ट्रीयता को रग-रग में प्रवाहित कर सके। दूरदर्शन के प्रमुख भास्कर घोष से जब उन्होंने यह विचार साझा किया, तब विचार-विमर्श और मेहनत के बाद एक वीडियो सामने आया ‘आज़ादी की मशाल’। वही वीडियो (आसानी से उपलब्ध) जिसमें उस वक़्त के तमाम नामी खिलाड़ी एक मशाल लेकर दौड़ते दिखे थे। इस वीडियो ने इस तरह की लघु फ़िल्मों के लिए एक बड़ा दरवाज़ा खोल दिया था। और एक साल के भीतर ही तक़रीबन इसी टीम ने वह तस्वीर दूरदर्शन के परदे पर साकार कर दिखायी, जो आज भी भारत की अखंडता, अनेकता में एकता और सहजीविता के आदर्श का चमत्कारिक प्रतिरूप बनी हुई है।
आम प्रोडक्शन कंपनियों की चलताउ फ़िल्मों से तंग आकर, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने तय किया था कि उन्हें कुछ आधुनिक और दिल को छू लेने वाली फिल्म चाहिए, और टॉर्च ऑफ़ फ़्रीडम का जन्म हुआ। जब ‘आज़ादी की मशाल’ को पहली बार 15 अगस्त, 1987 को प्रसारित किया गया तो पूरे देश में तहलका सा हो गया। अचानक भारतीय होना ‘कूल’ हो गया। राजीव गांधी सरकार ठीक यही करने की कोशिश कर रही थी।
‘आज़ादी की मशाल’ या टॉर्च सॉंग या फ़्रीडम रन जैसे नामों से मशहूर हुए इस गीत के निर्माण के लिए ओगिल्वी एंड मेथर कंपनी की ओर से सुरेश मलिक ने ज़िम्मा लिया, कैलाश सुरेंद्रनाथ ने निर्देशन संभाला और लुई बैंक्स ने राष्ट्रगान पर आधारित एक संगीत रचना तैयार की। 1988 में इसी टीम ने एक और परिकल्पना को साकार किया, जो अमर हो गयी ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के नाम से।
‘मिले सुर’ के लिए मिलते गये सुर
इन दोनों फ़िल्मों के निर्माण में दक्षिण भारतीय हस्तियों को फ़्लोर पर लाने का ज़िम्मा उठाने वाली गीता जॉन के लेखों के अनुसार एक बार फिर, राष्ट्रगान के आख़िरी सुरों के साथ ख़त्म होने वाले म्यूज़िक ट्रैक के विनिंग फ़ॉर्मूले को फ़ॉलो करने का फ़ैसला किया गया। लेकिन इस बार, इंडियन क्लासिकल तरीक़ा चुना क्योंकि मशाल गीत का स्कोर हालांकि राजीव गांधी ने पसंद किया था और उसे हरी झंडी दे दी थी, लेकिन वह पश्चिमी शैली की कंपोज़िशन ही थी।

‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के लिए शास्त्रीय संगीत के दिग्गजों का रुख़ किया गया। इससे पहले, कॉंसेप्ट के लिए शब्दरचना विनोद शर्मा और पीयूष पांडे (अब दोनों ही स्वर्गीय) ने मिलकर की थी। आसान भी, हर ज़ुबान पर चढ़ने वाली भी और एक भारत के आह्वान के लिए दिल से निकलने वाली आवाज़ भी। कम से कम दो पीढ़ियां दूरदर्शन पर इस सुरसरिता को देख और सुनकर जवान हुईं…
‘मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो सुर बने हमारा
सुर की नदियां हर दिशा से बहके सागर में मिलें
बादलों का रूप लेके बरसें हल्के-हल्के’
आपको जानकर शायद सुखद आश्चर्य हो कि इस फ़िल्म के लिए कोई स्क्रिप्ट नहीं थी। कॉंसेप्ट बस यह था कि सुर और बोल होंगे.. जिन्हें मशहूर हस्तियां अपने राज्य की भाषा में लिप-सिंक करेंगी। इस फ़ैक्ट से ‘जाने भी दो यारो’ फ़िल्म के सबसे लोकप्रिय हास्य दृश्य, जो महाभारत के नाटक के मंच पर खेला गया था, की याद आती है क्योंकि वह भी स्क्रिप्टेड नहीं था, बस बनते-बनते बन गया।
तो पहले साउंडट्रैक रिकॉर्ड हुआ। पंडित भीमसेन जोशी को लगभग दो मिनट गाना था, लेकिन वह 40 मिनट तक गाते रहे। कैलाश और साउंड रिकॉर्डिस्ट ने इसे 50 सेकंड तक संपादित किया। इस फ़ाइनल एडिट के आधार पर बाक़ी ट्रैक बना। इसे एम. बालामुरलीकृष्णा, लुइस बैंक्स और पीपी वैद्यनाथन को भेजा गया। लुइस और वैद्यनाथन ने बाक़ी ट्रैक अलग-अलग भारतीय भाषाओं में और ट्रांज़िशन बनाने का ज़िम्मा लिया। गीता जॉन लिखती हैं, कविता कृष्णमूर्ति ने गाइड ट्रैक पर गाया, और बाद में लता मंगेशकर ने उस पर अपना हिस्सा गाया। कुछ अभिनेताओं के लिए कविता की आवाज़ रखी गयी, और पूर्णिमा श्रेष्ठ ने भी कुछ हिस्से रिकॉर्ड किये।
गीता जॉन फ़ोन के ज़रिये सुरेश मलिक के साथ लगातार संपर्क में थीं और सिर्फ़ 10 दिन में दक्षिणी गायकों व हस्तियों जैसे के.आर. विजया, रेवती, रामनाथन कृष्णन, ए.वी. रामनन, क्रिकेटर वेंकटराघवन, प्रताप पोथेन और कुछ और लोगों को एक मंच पर लाने में कामयाब रहीं। बालामुरलीकृष्णा ने भी इस वीडियो के लिए अपना हिस्सा कन्फ़र्म किया। अब इस वीडियो में कमल हासन का चेहरा चाहिए था।
कमल हासन पिछले साल ही अवॉर्ड विनिंग नायकन से न सिर्फ़ दक्षिण बल्कि देश भर के सिने प्रेमियों के चहेते बन चुके थे। कमल के इस वीडियो के लिए शूट करने का क़िस्सा गीता ने बड़े चाव से लिखा है: बालामुरलीकृष्णा का शॉट सूर्योदय के समय था। वह सुबह 3.30 बजे तैयार थे! दोपहर में, बाक़ी सितारे लोकेशन पर पहुँच गये। कमल सबसे आख़िर में आये और प्यार से अपनी बारी का इंतज़ार किया। उन्होंने कैलाश की सफ़ेद टी-शर्ट पहनने के लिए अपनी काली टी-शर्ट उतारी, तो एक अनप्लान्ड एंटरटेनमेंट हुआ। लेकिन, आख़िरी शॉट के लिए उन्होंने अपनी टी-शर्ट पहनी।
इस तरह इस वीडियो निर्माण के लिए मद्रास के हिस्से का ज़िम्मा ख़त्म हुआ, पर इस वीडियो की कहानी अभी और भी है। ‘टॉर्च’ फ़िल्म की तरह, छायाकार आरएम राव ही थे। पहला शॉट पंडित भीमसेन जोशी का खंडाला में एक झरने के पास शूट हुआ था। बोलों के हिसाब से, कई सीन— मल्लिका साराभाई, तनुजा, वहीदा रहमान, शर्मिला टैगोर, मारियो मिरांडा.. बीच या नदी के किनारे शूट किये गये। सुरेश मलिक ने एयर फ़ोर्स में अपने कनेक्शन का इस्तेमाल करके ताजमहल की शूटिंग के लिए एक हेलीकॉप्टर किराये पर लिया क्योंकि उस समय ड्रोन नहीं होते थे! और ऐसे कुछ शानदार एरियल शॉट शूट हुए।
इस वीडियो में राजस्थान में एक कुएं के पास ऊंटों का जो शॉट दिखायी देता है, उसे शूट करवाने में भी पीयूष पांडे ने मदद की थी। मुंबई में विक्की बंगेरा वह व्यक्ति थे, जो हिंदी फ़िल्मी सितारों को इस वीडियो में लेकर आये थे। मिथुन चक्रवर्ती, अमिताभ बच्चन, जीतेंद्र, शबाना आज़मी, हेमा मालिनी, लता मंगेशकर और तमस के कास्ट मेंबर्स की शूटिंग फ़िल्मसिटी में हुई थी।
और वो यादगार लमहे
याद आता है अन्नू कपूर का एक साक्षात्कार में यह कहना कि ‘मंडी’ वह फ़िल्म थी, जिसमें उस दौर के हिंदी सिनेमा के तमाम क़ाबिल अभिनेता नज़र आये थे। इसी तर्ज़ पर कहा जाये तो ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ वह वीडियो था, जिसमें देश के सबसे प्रतिष्ठित चेहरों व आवाज़ों में से कई एक साथ दिखे।

सबसे ख़ास बात: मेन क्रू, संगीतकार, सेलिब्रिटी, सभी ने ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के लिए फ़्री में हिस्सा लिया। हालांकि, टेक्निकल असिस्टेंट, स्टूडियो, यात्राओं और निर्माण का ख़र्च सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने उठाया था।
यह ‘सुर’ पहली बार दूरदर्शन पर 15 अगस्त 1988 को प्रसारित हुआ और ‘मशाल’ वाले वीडियो से जो प्रतिसाद, जो ख़ुशी मिली थी, इस फ़िल्म ने चार चांद लगा दिये। न केवल इससे जुड़ा हर शख़्स यादगार हो गया बल्कि पूरा देश इस तरह कनेक्ट हो गया, जैसे इसी फ़िल्म का इंतज़ार बरसों से रहा था। दशकों बाद भी, यह वीडियो आज भी हर गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस या अन्य दिनों में भी किसी न किसी चैनल पर, रेडियो पर आता है। और अब तो इंटरनेट का दौर है, तो यह हमेशा आसानी से उपलब्ध है।
(पहली तस्वीर में अमूल एवं कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य द्वारा पीयूष पांडेय को दी गयी श्रद्धांजलि और दूसरी तस्वीर में मिले सुर मेरा तुम्हारा वीडियो के स्क्रीनशॉट्स)
Share this:
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Reddit (Opens in new window) Reddit
- Click to share on Pinterest (Opens in new window) Pinterest
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Bluesky (Opens in new window) Bluesky
