
- October 15, 2025
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नियमित ब्लॉग विवेक सावरीकर 'मृदुल' की कलम से....
संध्या शांताराम का वह अनूठा सर्प नृत्य
अपने समय की मशहूर और मारूफ़ अभिनेत्री और नर्तकी संध्या शांताराम का पिछले दिनों 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे लंबे समय से फ़िल्मी चकाचौंध से दूर ख़ामोश ज़िंदगी जी रही थीं। देखा जाये तो संध्या कोई महान अभिनेत्री नहीं थीं। न ही उनका वाचिक अभिनय बहुत प्रभावी था। आंगिक अभिनय की बात करें तो पूरे फ़िल्मी जीवन में उन्होंने शायद ही बिना गर्दन हिलाये, शरीर को स्थिर रखकर कोई संवाद बोला हो। लेकिन उनके अंदर कमाल की लय थी और आंखों में गहरा भाव। उनकी इस लयदक्षता और आंखों की भावप्रवणता को ही पकड़कर व्ही. शांताराम ने हिंदी और मराठी में एक से बढ़कर एक यादगार फ़िल्में रच डालीं। ख़ासकर उनकी फ़िल्मों के नृत्य गीतों में संध्या राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स में दर्शित नायिका जैसी लगती रहीं, जो सामान्य होकर भी असामान्य थीं।
इस सिरे से संध्या को याद करें और याद करें “झनक झनक पायल बाजे” के ‘मेरे ऐ दिल बता, प्यार तूने किया, पायी मैंने सज़ा’ का संध्या का वस्त्र विन्यास और विभिन्न वाद्ययंत्रों के साथ उनकी आंगिक मुद्राएं।इसके साथ फ़िल्म ‘नवरंग’ के अनेक नृत्य गीतों की मिसालें दी जा सकती हैं। वह नौ मटकियां सर पर थामे बिना किसी गिमिक्स के ‘आधा है चंद्रमा रात आधी’ का नृत्य कोई कैसे भूलेगा। यहां तक कि “श्यामल श्यामल नयन” के अतिशयोक्ति अलंकार से भरे गीत में भी मोहिनी संध्या की चूल्हे की आग को फूंकनी से तेज़ करने, थिरकते हुए सूपड़े से अनाज साफ़ करने की अदाएं भुलाये नहीं भूलतीं। सी. रामचंद्र और आशा भोसले की गायकी के साथ यह पर्दे पर संध्या का तिलिस्म ही तो था, जो आज इतने दशक बीतने के बावजूद हर होली पर “अरे जा रे हट नटखट” का नृत्य बजाना, सुनना और मंच पर अपनी शैली में प्रस्तुत करना हमारी युवा पीढ़ी को आवश्यक लगता है। कितने ताज्जुब की बात है कि जिस संध्या ने कैरियर की शुरूआत में नृत्य की कोई विधिवत तालीम नहीं ली, उसी ने कठोर रियाज़ कर और लय-ताल साधकर फ़िल्म “झनक झनक पायल बाजे” में ऐसे सुंदर नृत्य प्रस्तुत किये कि वे अपने नायक और महान नृत्य साधक पंडित गोपीकृष्ण से कहीं कमतर नहीं दिखीं।

यूं तो उनके अनेक लाजवाब नृत्य गीत हैं पर आज हम 1971 की फ़िल्म “जल बिन मछली, नृत्य बिन बिजली” के उस अनूठे नृत्य गीत की चर्चा करेंगे, जो मजरूह सुल्तानपुरी के बेहतरीन बोल, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के मधुर संगीत, स्वर साम्राज्ञी की स्वर्गिक आवाज़, व्ही. शांताराम के कल्पनाशील निर्देशन और संध्या की विलक्षण देह गति के कारण आज भी देखने वालों को सरापा रोमांचित कर जाता है। यह गीत सर्प नृत्य है- “कजरा लगा के, रे बिंदिया सजा के, हो आई मैं तो आई रे आई मोहे लाई मिलन धुन पिया की।”
किसी क़बीले में समूह नृत्य आयोजन है। एक बड़े से डग्गे या ताल वाद्य को मंच की तरह प्रयोग में लाया गया है। एक नर्तक सर्प बनकर आता है और उसके पीछे अनेक मयूर दल उसका शिकार करने आते हैं। इनका नेतृत्व एक सफेद रंग का मयूर कर रहा है। बैले नर्तकों का यह दल अद्भुत नर्तन करते हुए उस नर सर्प को मार डालता है। पर इतने में अभिसार को उद्यत नागिन के वेश में संध्या आती है। उन्होंने हरे रंग की चमकीली केंचुली की तरह तंग परिधान पहना है और बालों पर हरे रंग का विग है। हाथों पर सर्प के फन का मास्क है और वो इतना अच्छा बना है कि एकदम असली सर्प का ही आभास कराता है। यह नागिन अपने प्रेमी से मिलन का गीत गाते हुए नाचती है। इस बात से अनजान है कि जिस सर्प प्रियतम से वो- “ए जी, अब तो बोल दो, बलम अंखियां खोल दो” कहते हुए थिरक रही है, वो प्रेमी अब कभी आंख नहीं खोल सकता। संगीतकार एलपी ने सर्प की फुफकार को हर पंक्ति में इस ख़ूबी से डाला है कि नृत्य का रोमांच और बढ़ जाता है।
वैसे तो पूरा नृत्य प्रदर्शनकारी कला का उत्कृष्ट नमूना है। पर नृत्य के अंत में जब नागिन को अहसास होता है कि उसके प्रेमी की हत्या हुई है, वह जिस क़ातिलाना अंदाज़ में मयूर दल पर आक्रमण करती है, वह हिस्सा तो बारंबार देखने लायक़ है। एक नागिन के तड़प-तड़प कर मरने को संध्या ने जिस चपलता से उभारा है, वो देखकर संध्या को नमन करने को जी करता है। वास्तविकता का ऐसा कलात्मक प्रस्तुतिकरण करने वाले उस सुनहरे दौर का हरेक कलाकार साधुवाद का पात्र है। और बिना ग्राफ़िक्स, एनिमेशन और वीएफ़एक्स के भी कल्पना को मूर्त रूप दिया जा सकता है, इस बात का संध्या मूर्तिमंत उदाहरण हैं।
(इस गीत का पूरा वीडियो यूट्यूब पर आसानी से उपलब्ध है)

विवेक सावरीकर मृदुल
सांस्कृतिक और कला पत्रकारिता से अपने कैरियर का आगाज़ करने वाले विवेक मृदुल यूं तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्ववियालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं,पर दिल से एक ऐसे सृजनधर्मी हैं, जिनका मन अभिनय, लेखन, कविता, गीत, संगीत और एंकरिंग में बसता है। दो कविता संग्रह सृजनपथ और समकालीन सप्तक में इनकी कविता के ताप को महसूसा जा सकता है।मराठी में लयवलये काव्य संग्रह में कुछ अन्य कवियों के साथ इन्हें भी स्थान मिला है। दर्जनों नाटकों में अभिनय और निर्देशन के लिए सराहना मिली तो कुछ के लिए पुरस्कृत भी हुए। प्रमुख नाटक पुरूष, तिकड़म तिकड़म धा, सूखे दरख्त, सविता दामोदर परांजपे, डॉ आप भी! आदि। अनेक फिल्मों, वेबसीरीज, दूरदर्शन के नाटकों में काम। लापता लेडीज़ में स्टेशन मास्टर के अपने किरदार के लिए काफी सराहे गये।
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