
हिन्दी और भाषा संबंधी तीन अहम ख़बरें
नयी शिक्षा नीति के तहत केंद्र सरकार ने पूरे देश में जिस त्रिभाषा पद्धति को अनिवार्य करने का क़दम उठाया है, उसे लेकर लगातार रोष संबंधी समाचार आ रहे हैं। ख़ासकर दक्षिण भारत में विरोध है कि हिंदी को शिक्षा में अनिवार्य न किया जाये। इस विरोध में अब महाराष्ट्र का नाम भी सामने आ रहा है। इधर, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का एक भाषण और तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन का एक अभिमत भी भाषा के संदर्भ में पढ़े जाने योग्य है।
सबसे पहले बात अमित शाह के वक्तव्य को लेकर। देश में राजभाषा विभाग के स्वर्ण जयंती समारोह में उन्होंने कहा, “मुझे सच में लगता है कि हिंदी का किसी भी भारतीय भाषा से विरोध नहीं हो सकता। यह सभी भारतीय भाषाओं की दोस्त है… किसी भी भाषा से कोई दिक़्क़त नहीं है। होनी भी नहीं चाहिए। किसी विदेशी भाषा से भी नहीं। लेकिन ज़रूरत यह है कि निज भाषा को गौरवान्वित किया जाये, अपनी भाषा में बोलना और सोचना समय की मांग है… सभी भारतीय भाषाओं को ज़िंदा रखना और उन्हें समृद्ध करना महत्वपूर्ण काम है और आने वाले समय में हम देश की सभी भाषाओं विशेषकर, राजभाषा के लिए महत्वपूर्ण क़दम उठाने जा रहे हैं।”
इस बयान के आख़िरी हिस्से से त्रिभाषा नीति के क्रियान्वयन को लेकर संकेत निकाले जा रहे हैं। इस त्रिभाषा नीति में स्थानीय भाषा के साथ हिंदी को भी शुरूआती कक्षाओं में अनिवार्य किये जाने की बात कही जा रही है। इसी को लेकर कुछ राज्यों में विरोध मुखर हो रहा है। दक्षिण भारत के बाद अब महाराष्ट्र में दो विरोधी राजनीतिक पार्टियां एकजुट होती दिख रही हैं।
महाराष्ट्र में हिंदी विरोध
“हम किसी भाषा के ख़िलाफ़ नहीं हैं। हमेशा हिंदी का सम्मान किया है। हमारी पार्टी हिंदी का कई तरह से प्रयोग भी करती है। लेकिन त्रिभाषा नीति के तहत कक्षा 4 तक की शिक्षा में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किये जाने के हालिया फ़ैसले से विद्यार्थियों पर एक अतिरिक्त बोझ की आशंका है। यह अकादमिक और भाषाई दोनों स्तरों पर मुद्दा है।” यह बात शिवसेना के सांसद संजय राउत के हवाले से ख़बरों में है। यही नहीं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने सोशल मीडिया पर लिखा:
“शुरू से ही हिंदी को थोपे जाने से हम सहमत नहीं हैं और इसके ख़िलाफ़ हम 6 जुलाई को एक विरोध प्रदर्शन करने जा रहे हैं। इस मार्च में कोई झंडे नहीं लहराये जाएंगे, यह बस मराठियों को लेकर किया जाएगा। मराठी एजेंडा ही फ़ोकस है और इस मार्च का नेतृत्व मराठी नेता ही करेंगे।”
राउत के अनुसार इस मामले में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की पार्टियां जो मार्च अलग अलग तारीख़ों पर करने वाली थीं अब एक साथ एक ही दिन करेंगी। वहीं अन्य मराठी नेताओं जैसे शरद पंवार ने भी इस नीति से असहमति व्यक्त की है और कहा है कि कक्षा 5 के बाद अन्य भाषाएं सिखायी जा सकती हैं लेकिन इससे पहले बच्चों पर अतिरिक्त भाषाओं का बोझ डालना उचित नहीं प्रतीत होता।
बहुभाषीयता का पक्ष
त्रिभाषा नीति में ग़ैर हिन्दीभाषी राज्यों जैसे महाराष्ट्र में हिंदी तीसरी भाषा के रूप में प्रस्तावित की गयी है। बाक़ी दो माध्यम भाषाएं मराठी और अंग्रेज़ी हैं। इसी तरह अन्य राज्यों में स्थानीय भाषा के साथ अंग्रेज़ी को हिंदी से पहले रखा गया है। टीएमसी सांसद ब्रायन ने अंग्रेज़ी में शिक्षा को समुचित बताया।
“भारत जैसे एक विस्तृत और विविधतापूर्ण देश में अंग्रेज़ी, सिर्फ़ एक भाषा नहीं बल्कि एक धागा है जो देश को जोड़ता है। हाशिये पर जीने को मजबूर कर दिये गये लाखों भारतीयों के लिए अंग्रेज़ी एक औज़ार की तरह है, वह औज़ार जो जीवन में आगे बढ़ने का भरोसा दिलाता है… भारत की ज़रूरत अंग्रेज़ी को कम करने की नहीं बल्कि बहुभाषावाद है। हमें बहुत सी भाषाओं तक पहुंच और बहुत सी भाषाओं को बग़ैर शर्म, बग़ैर डर या हिचक के, पूरे विश्वास के साथ बोलने की योग्यता विकसित करना चाहिए।”
—आब-ओ-हवा डेस्क