अज्ञेय की "दूर्वादल " प्रयाग शुक्ल की आवाज़ में

कला साहित्य जगत के वरिष्ठ एवं प्रसिद्ध हस्ताक्षर प्रयाग शुक्ल ने बातचीत के दौरान प्रसंगवश हिंदी कवि अज्ञेय की एक कविता का अपने अंदाज़ में पाठ भी किया। पाठ करते हुए वह भाव विभोर हो उठे… प्रयाग शुक्ल के साथ लंबी बातचीत “फ़न की बात” खंड में।

भारत-पाकिस्तान सरहद पर संघर्ष

क्या न्यूज़रूम में निज़ाम की दख़लंदाज़ी/हुक्मरानी स्वीकारना पत्रकारिता है? क्या पत्रकारिता यह है कि यह देखकर अभिव्यक्ति की आज़ादी तय की जाये कि ज़बान है किसकी? पत्रकारिता शून्यता के बाद अब हम सूचना शून्यता की तरफ़…

"आइए, खोजें कोई हलगाम"

“जन्नत कहा जाता है कश्मीर को। बनाया जाता है जहन्नुम। दूर की बांसुरी सुनायी ही नहीं देती। शेष भारत कितना जानता है कश्मीर, कश्मीरियत! कुछ काले अक्षर, कुछ रंगीन तस्वीरें देखकर क्या सब कुछ समझा जा सकता है?”

"लुत्फ़ अब हादसे में ही"

“नदियों का आपस में जुड़ना कल्याणकारी होता तो प्रकृति ख़ुद ऐसी व्यवस्था करके देती..” ​नदी जोड़ो परियोजना के मूलभूत प्रश्नों और दो दशक में योजना को अमली जामा पहनाये जाने के पीछे क्या कुछ छुपा हुआ है?”