कक्षा में क्या करें शिक्षक?

कक्षा में क्या करें शिक्षक?

           किसी कक्षा में एक शिक्षक क्या करे और क्या न करे? इस विषय पर काफ़ी कुछ कहा और लिखा जा चुका है। कई बार तो इन मुद्दों पर सीख देने वालों में वे लोग भी शामिल होते हैं जिनका इस क्षेत्र से कोई लेना-देना ही नहीं। स्कूलों में होने वाले निरीक्षणों का तो जैसे यह अनिवार्य और प्रिय मुद्दा हो। कोई शिक्षक थोड़ी भी अनचाही स्थिति में मिला नहीं कि शिक्षा अधिकारी उस पर पूरे रोब से टूट पड़ते हैं। उसे दी जाने वाली सीख अक्सर इस बात पर होती है कि जो कर रहे थे वह ग़लत है, पर सही तरीक़ा क्या है? और कैसे संभव है? इस मसले पर ज़्यादातर कुछ नहीं कहा जाता। एक शिक्षक कक्षा में जो कार्य व्यवहार करता है, उसे तीन श्रेणियों में रखा जा सकता है। पहला है, कक्षा कक्ष प्रबंधन, दूसरा नियोजन के अनुरूप पाठ कार्यान्वयन और तीसरा आंकलन व्यवहार। इन तीनों कार्यों में परस्पर निर्भरता है और कई बार तो इन्हें अलग करके देखा भी नहीं जा सकता। अब प्रश्न उठता है कि इन कामों को शिक्षक द्वारा किस तरह किया जाये, जो अधिगम प्रक्रिया को बेहतर बनाये?

      कक्षा-कक्ष प्रबन्धन में बहुत-सी बातें शामिल की जाती हैं: इसमें कक्षा में बच्चों के बैठने का तरीक़ा जो आपसी अंतःक्रिया को बढ़ावा दे, शिक्षक की हर बच्चे तक पहुँच, संसाधनों के भरपूर प्रयोग की परिस्थितियां, समूह में कार्य कर पाने व स्वयं को अभिव्यक्त कर पाने के अवसरों आदि। वैसे तो अमूमन हमारे स्कूलों में कक्षा का सिटिंग अरेंजमेंट पूर्व निर्धारित होता है और इस मामले में शिक्षक के हाथ में ज़्यादा कुछ होता नहीं, फिर भी उपलब्ध परिस्थितियों में शिक्षक द्वारा इस दिशा में किये जाने वाले प्रयास मायने रखते हैं। शिक्षक को कक्षा में अपेक्षित व्यवहारों से संबंधित न केवल नियम बनाने चाहिए बल्कि सत्र के प्रारंभ में ही उसे कुछ दिन प्राथमिकता के साथ दुहराते हुए बच्चों के मानस व व्यवहार में स्थापित किया जाना चाहिए।

         नियोजन के अनुरूप पाठ के क्रियान्वयन के अगले चरण की सफलता बहुत हद तक पाठ-योजना की सटीकता पर निर्भर है। इसमें विषयवस्तु स्पष्टता, रुचिकर गतिविधियों का समावेश, पूर्व अनुभवों से जुड़ाव, छात्रों को स्वयं करके सीखने के अवसर जैसे पक्ष होने चाहिए। कक्षा में विद्यार्थियों के अधिगम स्तर के अनुरूप और उनके अनुभवों को समाहित करते हुए पाठ्यवस्तु का सजीव चित्रण अथवा प्रदर्शन किया जाना बहुत ज़रूरी है। ऐसा करते हुए बच्चों को अपने अपने अनुसार रिफ्लेकशन या विचार करने का अवसर भी मिलना चाहिए जिससे वे चल रही प्रक्रिया से जुड़ सकें और शिक्षक भी उसमें ज़रूरी मदद कर सकें।

          कक्षाई प्रक्रिया में ही आंकलन का पक्ष भी पिरोया हुआ होना चाहिए जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। आंकलन सिर्फ इसका नहीं कि बच्चे क्या जान या सीख पाये बल्कि इसलिए भी कि वे सीखने की ओर प्रेरित हो सकें। इसके लिए बच्चों को स्वयं की अभिव्यक्ति के वृहत, समान और सम्मानपूर्ण अवसर दिये जाने चाहिए। बाल केन्द्रित शिक्षा और सीखने की प्रक्रिया में छात्रों को शामिल करने के नज़रिये से भी कक्षा में बच्चों को अभिव्यक्ति के अवसर देना ज़रूरी है। बच्चे स्वयं को कई तरीक़ों से भागीदारी द्वारा अभिव्यक्त कर सकते हैं जैसे- पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देकर, प्रश्न पूछकर, चल रही बात से संबंधित अपने अनुभव सुनाकर, प्रासंगिक उदाहरण देकर, कन्टेन्ट से जुड़े अन्य आयामों को उभारकर आदि। कुल मिलाकर ये बातें कक्षा के माहौल को भी अभिव्यक्त करती हैं।

alok mishra

आलोक कुमार मिश्रा

पेशे से शिक्षक। कविता, कहानी और समसामयिक मुद्दों पर लेखन। शिक्षा और उसकी दुनिया में विशेष रुचि। अब तक चार पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। जिनमें एक बाल कविता संग्रह, एक शैक्षिक मुद्दों से जुड़ी कविताओं का संग्रह, एक शैक्षिक लेखों का संग्रह और एक कहानी संग्रह शामिल है। लेखन के माध्यम से दुनिया में सकारात्मक बदलाव का सपना देखने वाला मनुष्य। शिक्षण जिसका पैशन है और लिखना जिसकी अनंतिम चाह।

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