
- October 26, 2025
- आब-ओ-हवा
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हास्य डॉ. मुकेश असीमित की कलम से....
बृज की एयरलाइंस
अभी कुछ दिन पहले हमारे देश के ख्यातिप्राप्त हास्य-व्यंग्यकार कवि डॉ. अशोक चक्रधर जी की एक महत्वपूर्ण हास्य रचना “बृज की मेट्रो रेल” सुन रहा था… मुझे भी एक आइडिया आया कि अगर बृज क्षेत्र की कोई एयरलाइन हो, जिसमें पूरा क्रू यानी पायलट, एयरहोस्टेस और स्टाफ़ सब बृज भाषा बोलने वाले हों, तो वहाँ होने वाले घोषणाएँ (Announcements) कैसी होंगी?
तो लीजिए, प्रस्तुत है एक मज़ेदार झलक– पढ़िए नहीं, पठन करिए, तभी असली आनंद आएगा, क्योंकि बृज की बोली में जो रस है, वो कहीं और नहीं! इसे आप सेव कर लें, और वक़्त, ज़रूरत, मौक़े (होली का विशेष ध्यान रखें) पर हास्य-रस में भीगते रहिए! अब घोषणा शुरू होती है…
बृजबाषा एयरलाइंस में पायलट की उद्घोषणा
“जय श्रीराधे यात्रियो!”
“बृजबाषा एयरलाइंस में आप सबनौ हार्दिक स्वागत ऐ! हमारौ यो जहाज, जाकौ नाम ‘गगनचारी लटपटिया’ ऐ, अबकी बार मथुरा स दिल्ली जाबै कूँ तैयार ऐ। अर्रै जइसे ही हम पंख फैला लईबै, तौ सीधा बादलन मं घुस जैबै।”
“आज मथुरा में तापमान 35 डिग्री ऐ, अर्रै दिल्ली में हल्की ठंडी हवा बहि रही ऐ, बाहर निकरोगे विमान से तो मजा लीजो जइसे कोई बृज का ग्वाला अपनी भैंस नहलाय के बैठौ होय।”
“अब हमरी बृजबाषा क्रूज टीम से मिल ल्यो! जहाज कूँ सँभारन के लिए हमरे मुखिया हैं ‘हवा महल सिंह’ अर्रै उनके सहायक ऐं ‘उड़न खटोला बाबू’। अर्रै थारे सेवा में जो सुदर्शन चक्र जैसो घूम-घूम के सेवा करिबै, उनने हम ‘उड़न परी गैया’ कहिबै।”

(फ्लाइट अटेंडेंट यात्रियों को निर्देश देते हुए बृज भाषा में बोल रही है)
“सबहु कान खोल सुनिलेयो!
यो जहाज, जाकौ नाम ‘गगनचारी लटपटिया ऐसो बड़ो ससुरो जहाज ऐ, जो आज आपनै अटकलपच्चू उड़ान भरिबै को तय कैयौ ऐ। सो सब तनिक ध्यान दइ सुनौ!
अबै तौ यो जहाज पट्टी पै पड़ौ ऐ, पै जब एक बार भौकाल मचाय के उड़ी जैहै, तौ ऐसो उड़ेगो ससुरो कि ठान ली फिर धरा पै आनौ कब्बै कूँ न होई। जो कछू याद करनो ऐ, तौ अबै करि लै, काहे कूँ कि उड़ान पाछे भगवान कूँ न कोऊ दुरूस्त करि सको!”
“सुरक्षा पेटी बाँधन की विध्या!”
“तौ लला, आपन पेटी बाँध ल्यो! अर्रै का कहूं… तौ पेटी नाही, यो सीट बेल्ट! औ नै तो थारी धोती लहराय लहराय, जहाज पै पतंग जैसो फरकत रह जै है। अर्रै पेटी कूँ खोलिबै कूँ तौ बस यो बटन दबाय दइयो! यो बटन जोर स दबाइयो मत, नइ तौ पायजामा पकड़ि कै उतरनो पड़ जै है।”
“ऑक्सीजन मास्क के खेला!”
“अब जइसे कबहूँ जहाज आपन मिजाज खराब करि कै धरती से नाता तोड़ि दे, तौ हवा मं कमतरी आ जैहै। अर्रै तबै आपन साँस की गाड़ी धक्का स्टार्ट करिबै कूँ ई ऑक्सीजन मास्क आप पै टपकै। यो मास्क पहिलौ आप अपनौ मुँह पै ठोक ल्यो, पाछे जाकै पड़ोसी कूँ देखो। नाहीं तौ तिनौ नीला पड़ जैहै अर्रै तुमैं मुफ़्त पै जान देनो पड़ जैहै।”
“आपातकालिन द्वार खोलै की कला!”
“अजी ध्यान दइयो! जहाज में कईक ठौ आपातकालिन द्वार ऐ, पै कबहूँ आप उथल-पुथल करिबै कूँ सोचिबे, तौ तौ पहिले बांके बिहारी कु याद कर ल्यो! फेरौ सोचना कि ई द्वार पै बाहर मं सीधा बादलन को दरबार ऐ, नइ तौ जूता-चप्पल धरती पै ही रह जैहै अर्रै तूफान में उड़तै उड़तै कौनो तोपची कबूतर जैसो दिखबै लगेगो।”
“जल में गिरनौ तो?”
“अरे लला, यो जहाज उड़ेगौ तौ धरती पै, पै कबहूँ लागै कि नहाय कूँ चाहिऐ, तौ घबरायो मत! पानी मं पड़िबै तौ सीधा जल-विहार करिबै कूँ तैयार रओ। आपन सीट के नीचे एकदम शानदार ‘तैरनौ जैकट’ दबाय पड़ा ऐ। जैकेटन कूँ गला में डाल ल्यो, सिटी बजाय दइयो, अर्रै भगवान स प्रार्थना कर ल्यो कि नांव तै जल्दी आवै!”
“अब उड़िबै को तैयारी करो!”
“सबही लोग लुगाई अपनी सीट पै बैठि जैहौ, सिरा पीछे करि ल्यो, अर्रै खिड़की मं झाँकिबै कूँ घबरायो मत! जब जहाज टेको पकड़ि कै उठबै, तौ थोड़ी देर कूँ लागै कि हाथ-पाँव छुटि रए ऐ, पै चिंता कछू नाही, एक बार उड़ गये तौ सब ठीक-ठाक। अब बस, हाथ जोड़ कै इत्ती विनती ऐ कि आपन झगड़ा-फसाद आज न करौ, औ नै तौ हम उड़त जहाज मं तुम्हैं खिड़की तैं बाहर लटका दइबै!”
“चलो जी, जय श्रीराधे!”
“अब हम उड्डान करै कूँ तयार ऐ! बृजराज की कृपा रहै, थारी यात्रा मंगलमय होय! अर्रै जब जहाज धरती पै पाछे उतरै, तौ अपनौ सगरौ सामान लै जैहौ, नइ तौ हमारौ एयरलाइंस बृज का ही कोई जमाई समझ कै लै जैहै! चलो जी, जय श्रीराधे!”
टेक-ऑफ की उद्घोषणा (पायलट की तरफ़ से)
“अब सब ध्यान दइयो! हमारौ जहाज रनवे पै खड़ा ऐ, बिलकुल उस सांड जैसो जइसे होली के दिन कुश्ती करिबै कूँ तैयार होय। अबई हम टेक-ऑफ करिबै, तौ सब अपनी सीट पै सीधा बैठौ, पेटी कस कै बाँध ल्यो, अर्रै भगवान स प्रार्थना कर ल्यो कि जहाज बिना डगमगाय उड़ जै!”
जलपान सेवा (फ्लाइट अटेंडेंट की आवाज़ गूंजती है)
“अब बृजबाषा एयरलाइंस आप सबकूँ शाही जलपान करावै जा रही ऐ! मेन्यू पै ध्यान दइयो– आज की विशेष आइटम है ठार-ठार मठ्ठा, गरमा-गरम बूँदी के लड्डू, अर्रै बृज के भरोसी लाला के आलू के पराँठे मिलिहैं! जिनकूँ गला खखारि रहौ ऐ, उनके लिए हींगवाली कचौरी भी तैयार ऐ!”
“लेकिन याद राखौ, हमारौ जहाज कौ नियम ऐ– जलपान में लड्डू ज्यादा न ल्यो, नइ तौ पेट का बैलेंस बिगड़ि जैहै अर्रै जहाज भी डगमगाय लग जैहै!”
वाशरूम, धूम्रपान और शराबबंदी
“अर्रै जइसे ही पेट भरै, तौ कोई जादे घबरायो मत! जहाज में वाशरूम ऐ, धक्का मुक्की करियो नाही – लाइन में लाग कै जाओ, अर्रै अंदर बैठ कै ही काम करिबै, खड़े हो कै न करिबै, नइ तौ जहाज झूला झूलनो लाग जैहै!”
“एयरलाइंस में बीड़ी-सिगरेट पीबे की तो सोचियो ही मती, तौ कोऊ तम्बाकू चबाइ कै, खिड़की स थूकिबै कूँ सोचै, तौ ध्यान राखे, खिड़की खोलनी सकै, काहे कि यो कोऊ रेलगाड़ी न हो!”
“अर्रै शराब के बारे में तौ कहिबै को जरूरी ही नाही – बृज में जो घी-दूध पै जियै, वो लला शराब से दूर ही रहै!”
इमरजेंसी की उद्घोषणा
“अबै ध्यान स सुनौ! अगर कोऊ मजबूरी आवै, तौ आपातकालीन द्वार ऐं, फ़ोकट में जिनने खोलिबै का सोचना मत! काहे कि बाहर खुला गगन ऐ, अर्रै एक बार गिरा दइयो, तौ बस बादलन स ही टकरावै का मौका मिलिहै! अगर कोऊ जरूरत होय, तौ सीट के नीचे जैकेट ऐ, पै ध्यान राखौ – जैकेट मं हवा भरिबै कूँ पहिले सोच ल्यो, नइ तौ फुग्गा जैसो उड़िबै लगो!”
लैंडिंग उद्घोषणा
“अबै थारे सौभाग्य ऐ कि हमारौ जहाज बिना कछु गड़बड़ किये दिल्ली पहुँचनै कूँ तयार ऐ! अब हम पट्टी पै लैण्ड करिबै, तौ सब अपनी पेटी कस ल्यो, अर्रै अब ना खिड़की स झाँकिबै, ना उछल-कूद करिबै!”
“जैसे ही जहाज रुकी जै, तौ सब अपनौ सामान लै कै बाहर निकरै! अर्रै थारी अटैची, बस्ता, झोला– सब सम्हालि कै लै जैयो, नाही तौ हमारौ क्रूज स्टाफ, थारा सामान नीलामी पै चढ़ाय दइ!”
विदाई और धन्यवाद
“हम बृजबाषा एयरलाइंस की तरफ सुन आप सबनौ हार्दिक धन्यवाद दइते ऐ! हमारौ आशा ऐ कि अगली बार फेर तौ उड़ीबै कूँ हमसे ही आओ!”
“चलो जी, अब उतरो! जय श्रीराधे!”
(कार्टून : मितेश@द फ़ोकस अनलिमिटेड)

डॉ. मुकेश असीमित
हास्य-व्यंग्य, लेख, संस्मरण, कविता आदि विधाओं में लेखन। हिंदी और अंग्रेज़ी में लिखे व्यंग्यों के संग्रह प्रकाशित। कुछ साझा संकलनों में रचनाएं शामिल। देश-विदेश के प्रतिष्ठित दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, पाक्षिक, त्रैमासिक पत्र-पत्रिकाओं एवं साहित्यिक मंचों पर नियमित प्रकाशन।
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