shrimad bhagwad geeta, श्रीमद्भगवद्गीता
(विधाओं, विषयों व भाषाओं की सीमा से परे.. मानवता के संसार की अनमोल किताब -धरोहर- को हस्तांतरित करने की पहल। जीवन को नये अर्थ, नयी दिशा, नयी सोच देने वाली किताबों के लिए कृतज्ञता का एक भाव। हर सोमवार आब-ओ-हवा पर 'शुक्रिया किताब'.. इस बार वैश्विक ख्याति प्राप्त, सर्वकालिक चर्चित ग्रंथ पर एक नोट -संपादक)
विवेक रंजन श्रीवास्तव की कलम से....

श्रीमद्भगवद्गीता: हमेशा उपयोगी ग्रंथ का सुगम अनुवाद

             मेरी सर्वप्रिय सदा प्रेरक पुस्तक श्रीमद्भगवद्गीता का एक हिंदी काव्य अनुवाद है। गीता एक सार्वकालिक वैश्विक ग्रंथ है, इसमें जीवन के मैनेजमेंट की गूढ़ शिक्षा है। आज संस्कृत समझने वाले कम होते जा रहे हैं, पर गीता में सबकी रुचि सदैव बनी रहेगी। अतः संस्कृत न समझने वाले हिन्दी पाठकों को गीता का वही काव्यगत आनन्द यथावत मिल सके, इस उद्देश्य से प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध” ने किया है। मूल संस्कृत श्लोक, फिर उनके द्वारा किये गये काव्यानुवाद तथा श्लोकशः ही हिंदी एवं अंग्रेज़ी शब्दार्थ सहित एक सुगठित जिल्द में यह बहुमूल्य कृति प्रस्तुत की गयी है। अब तक इस काव्यानुवाद के सात संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। अनेक शालेय व विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रमों में गीता के अध्ययन को शामिल किया गया है, उन छात्रों के लिए यह कृति बहुउपयोगी बन पड़ी है।

भगवान कृष्ण ने द्वापर युग के समापन तथा कलियुग आगमन के पूर्व (आज से पांच हज़ार वर्ष पूर्व) कुरुक्षेत्र के रणांगण मे दिग्भ्रमित अर्जुन को, जब महाभारत युद्ध आरंभ होने के समस्त संकेत योद्धाओं को मिल चुके थे, गीता के माध्यम से ये अमर संदेश दिये थे व जीवन के मर्म की व्याख्या की थी। यदि हम भी स्वयं में अर्जुन भाव लेकर श्रीमद्भगवद्गीता का मनोयोग से अध्ययन करें, तो मेरा अनुभूत प्रयोग है कि हमें भी गीता से हमारे मंतव्य में स्पष्ट दृष्टि प्राप्त होती है। गीता का विस्तृत भाष्य वास्तव में ‘महाभारत’ है। गीता को स्पष्टतः समझने के लिए गीता के साथ ही महाभारत को पढ़ना और हृदयंगम करना भी उपयोगी होता है। महाभारत तो भारतवर्ष का क्या! विश्व का इतिहास है। ऐतिहासिक एवं तत्कालीन घटित घटनाओं के संदर्भ मे झांककर ही श्रीमद्भगवद्गीता के विविध दार्शनिक-आध्यात्मिक व धार्मिक पक्षो को व्यवस्थित ढंग से समझा जा सकता है। महाभारत में हर संभव कथानक मिलते हैं।

shrimad bhagwad geeta, श्रीमद्भगवद्गीता

जहां भीषण युद्ध, मारकाट, रक्तपात और चीत्कार का भयानक वातावरण हो, वहां गीत, संगीत-कला-भाव-अपना-पराया सब कुछ विस्मृत हो जाता है, फिर ऐसी विषम परिस्थिति में ज्ञान, शिक्षा, उपदेश, गीत या संगीत की कल्पना बड़ी विसंगति जान पड़ती है। क्या रुदन में संगीत संभव है? एकदम असंभव किंतु यह संभव हुआ है- तभी तो ‘गीता सुगीता कर्तव्य’ यह गीता के माहात्म्य में कहा गया है। अतः संस्कृत मे लिखे गये गीता के श्लोकों का पठन-पाठन भारत मे जन्मे प्रत्येक भारतीय के लिए अनिवार्य है। संस्कृत भाषा का जिन्हें ज्ञान नहीं है, उन्हें भी कम से कम गीता और महाभारत ग्रंथ क्या है? कैसे है? इनके पढ़ने से जीवन मे क्या लाभ है? यही जानने और समझने के लिए भावुक हृदय कवियों साहित्यकारों और मनीषियों ने समय-समय पर साहित्यिक श्रम कर कठिन किंतु जीवनोपयोगी संस्कृत भाषा के सूत्रों (श्लोकों) का पद्यानुवाद किया है, और जीवनोपयोगी ग्रंथों को युगानुकूल सरल करने का प्रयास किया है। गीता पर जाने कितनी टीकाएं हुई हैं और प्रत्येक मनोयोगी अपनी तरह से विवेचना करते रहेंगे।

इसी क्रम में साहित्य मनीषी कविश्रेष्ठ स्व प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव जी ‘विदग्ध’ (जो न केवल भारतीय साहित्य-शास्त्रों, धर्मग्रंथों के अध्येता रहे बल्कि एक कुशल अध्येता भी, स्वभाव से कोमल भावों के भावुक कवि भी हैं) ने निरंतर साहित्य अनुशीलन की प्रवृत्ति के कारण विभिन्न संस्कृत कवियों की साहित्य रचनाओं पर हिंदी पद्यानुवाद भी प्रस्तुत किये। महाकवि कालिदास कृत ‘मेघदूतम्’ व ‘रघुवंशम्’ का आपका पद्यानुवाद दृष्टव्य, पठनीय व मनन योग्य है।

गीता के विभिन्न पक्षों, जिन्हें योग कहा गया है, जैसे विषाद योग जब विषाद स्वगत होता है तो यह जीव के संताप में वृद्धि ही करता है और उसके हृदय मे अशांति की सृष्टि का निर्माण करता है जिससे जीवन मे आकुलता, व्याकुलता और भयाकुलता उत्पन्न होती है, परंतु जब जीव अपने विषाद को परमात्मा के समक्ष प्रकट कर विषाद को ईश्वर से जोड़ता है, तो वह विषाद योग बनकर योग की सृष्टि शृंखला का निर्माण करता है और इस प्रकार ध्यान योग, ज्ञान योग, कर्म योग, भक्तियोग, उपासना योग, ज्ञान कर्म संन्यास योग, विभूति योग, विश्वरूप दर्शन, विराट योग, संन्यास योग, विज्ञान योग, शरणागत योग, आदि मार्गों से होता हुआ मोक्ष संन्यास योग प्रकारातंर से है, तो विषाद योग से प्रसाद योग तक यात्रा संपन्न करता है।

इसी दृष्टि से गीता का स्वाध्याय हम सबके लिए उपयोगी सिद्ध होता है। इस अनुवाद में प्रायः दोहे को छंद के रूप में प्रयोग किया गया है। कुछ अनूदित अंश बानगी के रूप में इस तरह हैं:

अध्याय ५ से..

नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्ववित्‌।
पश्यञ्श्रृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपंश्वसन्‌॥
प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि॥
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन्‌॥
अनुवाद
स्वयं इंद्रियां कर्मरत, करता यह अनुमान
चलते, सुनते, देखते ऐसा करता भान ।।8।।
सोते, हँसते, बोलते, करते कुछ भी काम
भिन्न मानती इंद्रियाँ भिन्न आत्मा राम ।।9।।
———

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्‌।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति॥
अनुवाद
हितकारी संसार का, तप यज्ञों का प्राण
जो मुझको भजते सदा, सच उनका कल्याण ।।29।।
———

अध्याय ९ से..

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌ ।
मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌ ।
अनुवाद
मैं ही कृति हूँ यज्ञ हूँ, स्वधा, मंत्र, घृत अग्नि
औषध भी मैं, हवन मैं, प्रबल जैसे जमदाग्नि ।।16।।

इस तरह प्रो. श्रीवास्तव ने श्रीमदभगवदगीता के श्लोकों का पद्यानुवाद कर हिंदी भाषा के प्रति अपना अनुराग तो व्यक्त किया ही है एवं सर्वसाधारण के लिए गीता के दुरूह श्लोकों को सरल और बोधगम्य बना दिया है। गीता के प्रति गीता प्रेमियों की अभिरुचि का विशेष ध्यान रखा है। गीता के सिद्धांतों को समझने में साधकों को इससे बड़ी सहायता मिलेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

अनुवाद बहुत सुंदर तथा भावप्रधान एवं मूल संस्कृत के नितांत समानांतर है। शब्द या भावगत कोई विसंगति नहीं है। मुझे इस अनुवाद के अध्ययन से गीता के संदेश सहज प्राप्त होते रहने से हमेशा मानसिक संबल मिलता रहा है एवं प्रत्येक परिस्थिति में मार्गदर्शन भी। गीता के अन्य अनुवाद या व्याख्याएं भी अनेक विद्वानों ने की हैं पर इनमें लेखक स्वयं अपनी सम्मति समाहित करते मिलते हैं, जबकि मैंने अनुभव किया है इस अनुवाद की विशेषता है कि ग्रंथ के मूल भावों की पूर्ण रक्षा की गयी है।

(क्या ज़रूरी कि साहित्यकार हों, आप जो भी हैं, बस अगर किसी किताब ने आपको संवारा है तो उसे एक आभार देने का यह मंच आपके ही लिए है। टिप्पणी/समीक्षा/नोट/चिट्ठी.. जब भाषा की सीमा नहीं है तो किताब पर अपने विचार/भाव बयां करने के फ़ॉर्म की भी नहीं है। edit.aabohawa@gmail.com पर लिख भेजिए हमें अपने दिल के क़रीब रही किताब पर अपने महत्वपूर्ण विचार/भाव – संपादक)

विवेक रंजन श्रीवास्तव, vivek ranjan shrivastava

विवेक रंजन श्रीवास्तव

सेवानिवृत मुख्य अभियंता (विद्युत मंडल), प्रतिष्ठित व्यंग्यकार, नाटक लेखक, समीक्षक, ई अभिव्यक्ति पोर्टल के संपादक, तकनीकी विषयों पर हिंदी लेखन। इंस्टीट्यूशन आफ इंजीनियर्स के फैलो, पोस्ट ग्रेजुएट इंजीनियर। 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। हिंदी ब्लॉगर, साहित्यिक अभिरुचि संपन्न, वैश्विक एक्सपोज़र।

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