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एक शानदार सितारा, एक जानदार सितारा यानी अभिनेता धर्मेंद्र (08.12.1935-24.11.2025) का निधन। आब-ओ-हवा की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।​ विभिन्न समाचारों, साक्षात्कारों एवं यादों पर आधारित एक लेख...

अगर देवदास होते धर्मेंद्र..! कुछ और क़िस्से भी

          धर्मेंद्र की छवि हिंदी सिनेमा प्रेमियों के बीच ही-मैन वाली बना दी गयी लेकिन उन्होंने अभिनेता के तौर पर चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं करने से कभी दूरी नहीं बनायी। दिलीप कुमार के प्रशंसक रहे धर्मेंद्र भी देवदास की भूमिका करने वाले थे लेकिन नियति में जो नहीं होता, वह नहीं होता। यह क़िस्सा हमेशा याद आने वाला है, शायद आपने अब तक न सुना हो।

बात शुरू होती है 1955 से, जब बिमल रॉय ने दिलीप कुमार को केंद्रीय भूमिका में लेकर बनायी थी देवदास। शरतचंद्र के इस लोकप्रिय उपन्यास पर 1935 में पी.सी. बरुआ ने के.एल. सहगल को लेकर जब देवदास बनायी थी, तब बिमल दा उस प्रोजेक्ट में पब्लिसिटी फ़ोटोग्राफ़र के तौर पर जुड़े थे। हालांकि इस उपन्यास पर जितनी भी​​ फ़िल्में बनती रहीं, बिमल दा की देवदास को सर्वश्रेष्ठ का दर्जा देने वाले आलोचक कम नहीं रहे। ख़ुद धर्मेंद्र भी इस फ़िल्म के दीवाने रहे।

शुरू से ही दिलीप साहब के बड़े फ़ैन रहे धर्मेंद्र के लिए शायद यह ​किसी सपने के सच होने जैसा था कि वह देवदास की भूमिका करने वाले थे। बिमल रॉय के सहयोगी और एक तरह से शागिर्द रहे गुलज़ार इस उपन्यास पर एक प्रोजेक्ट शुरू कर रहे थे। बात 1975 की है, जब धर्मेंद्र अचानक उत्साह में आ गये थे कि वह देवदास की भूमिका करने वाले हैं।

यह फ़िल्म इसलिए भी दिलचस्प होने वाली थी क्योंकि नृत्य कौशल के बावजूद हेमा मालिनी को चंद्रमुखी नहीं बल्कि पारो की भूमिका में लिया जाने वाला था और अगर यह फ़िल्म बनती तो जिसमें सुचित्रा सेन 1955 की फ़िल्म में नज़र आयी थीं, उस पारो के किरदार में नज़र आतीं शर्मिला टैगोर।

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यह फ़िल्म कभी बन नहीं सकी। धर्मेंद्र को हमेशा अफ़सोस रहा कि काश यह फ़िल्म बनी होती। सुभाष के झा के साथ एक बातचीत में धर्मेंद्र ने यह कहा भी था कि गुलज़ार के साथ उन्होंने किनारा जैसी फ़िल्म में एक छोटा सा रोल किया था, लेकिन देवदास का रोल उनके निर्देशन में करना अपने आप में एक नायाब तजरुबा होता। बहरहाल नियति ने न गुलज़ार का साथ दिया और न धर्मेंद्र का और न उन तमाम कलाकारों का जो ​इस फ़िल्म के साथ जुड़ने वाले थे या जुड़ चुके थे।

इस फ़िल्म के बारे में चर्चा एक दो बरस पहले छिड़ी थी, जब एक फ़िल्म पत्रिका के लिए गुलज़ार ने पूरी न हो सकी इस देवदास को लेकर बातचीत की थी। तब इससे जुड़ी कुछ तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर देखी गयी थीं।

आनंद भी नहीं कर सके धर्मेंद्र

धर्मेंद्र हमेशा मानते रहे कि उन्हें फ़िल्म संसार से और अपने प्रशंसकों से अपार स्नेह मिलता रहा। वह भाग्य, ईश्वर और अपने साथियों के प्रति हमेशा अपना आभार जताते रहे और कहते रहे कि उन्हें नियति से कोई गिला-शिकवा नहीं रहा। लेकिन झा के साथ बातचीत में कुछ एक बार उन्होंने उन भूमिकाओं के बारे में बात की, जो उनसे छूटीं या जिन्हें न निभाने का कुछ मलाल तो उन्हें रहा।

ऋषिकेश मुखर्जी के साथ तक़रीबन आठ फ़िल्मों में साथ काम करने वाले धर्मेंद्र को जब ऋषिदा ने आनंद की स्क्रिप्ट सुनायी थी, तब वह इस रोल के लिए बेहद उत्साहित थे लेकिन होनी को यह मंज़ूर नहीं था क्योंकि ऋषिदा के मन में इस रोल के लिए राजेश खन्ना की छवि अंकित हो चुकी थी। ‘होता है’, कहकर धर्मेंद्र उस याद पर बस आह भरकर रह जाया करते थे।

तो एंग्री यंग मैन भी कहलाते धर्मेंद्र

इसी तरह वह ज़ंजीर के लीड रोल को भी याद करते, जिसके लिए अमिताभ से पहले कई अभिनेताओं से संपर्क किया गया था। देव आनंद, राज कुमार जैसे कलाकारों के बीच धर्मेंद्र का नाम भी शुमार था, जिन्हें यह रोल पहले ऑफ़र किया गया था, लेकिन व्यस्तताओं या अन्य कारणों से इनमें से कोई भी यह रोल नहीं कर सका, जिसने अमिताभ को रातो-रात एक सितारा बना दिया और सिनेमा जगत में ‘एंग्री यंग मैन’ की अवधारणा का उदय हुआ। अगर धर्मेंद्र यह रोल कर पाये होते तो संभव है कि ही-मैन के साथ ही हिंदी सिनेमा के एंग्री यंग मैन का टाइटल भी उनके नाम के साथ ही जुड़ा होता।

बाप का डर और बेटी का वादा

‘किसी बात का रंज नहीं रहा’… अपने एकाधिक साक्षात्कारों में यह जुमला धरम वाक्य की तरह दोहराने वाले धर्मेंद्र अपने मदिरा प्रेम को बयान करने में भी हिचकिचाते नहीं थे। कई बातचीतों और महफ़िलों में उन्होंने इन बातों को रेखांकित किया कि कैसे वह शराब की लत के शिकार रहे, भारी मात्रा में शराब पीते, फ़िल्मों के सेट से लेकर निजी जीवन तक। ‘मिल बैठेंगे तीन यार, आप मैं और बेगपाइपर’ जैसे विज्ञापन को अपनी इमेज से जोड़ने वाले धर्मेंद्र बताते रहे कि उनकी सेहत और अभिनय क्षमता इस लत के कारण बर्बाद हुई।

‘शराब न पी होती, प्यार न किया होता तो यह ज़िंदगी कुछ और होती..’ कहने वाले धर्मेंद्र भले ही फ़िल्मी परदे पर देवदास न कर पाये हों, लेकिन मोहब्बत और शराब की सोहबत उन्हें इस किरदार के रंग की तरफ़ बहुत हद तक ले तो गयी, ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं। ख़ैर, धर्मेंद्र की मानें तो उन्हें अपने पिता से बहुत डर लगता था क्योंकि वह काफ़ी सख़्त मिज़ाज वाले हिंदोस्तानी बाप की भूमिका में ज़ियादा रहा करते थे। एक बार शराब के नशे में धर्मेंद्र को उनके पिता ने धर दबोचा था और अच्छी-ख़ासी फटकार भी लगायी थी। हालांकि यह लत बाप के ग़ुस्से और डर से कब किसकी छूटी है..!

‘ग़ालिब छुटी शराब मगर अब भी…’ की तर्ज़ पर धर्मेंद्र मज़ाक़िया लहजे में कहते रहे कि बीच-बीच में कई बार छोड़ी शराब लेकिन मेरा लिवर इतना मज़बूत था और दिल इतना ज़िद्दी कि कमबख़्त कब शुरू हो जाती, पता ही नहीं चलता। उनकी यह लत 2010-11 में छूटी, जब उनकी सेहत में बुरी तरह गिरावट दर्ज हुई। उन्होंने बताया था कि बेटी ईशा देओल ने उनसे वादा लिया था, कि वह फ़िल्म के सेट पर भी, किसी रोल तक के लिए भी शराब नहीं पिएंगे। और बक़ौल धर्मेंद्र एक बाप ने अपनी बेटी से किया वादा निभाया।

5 comments on “अगर देवदास होते धर्मेंद्र..! कुछ और क़िस्से भी

  1. बहुत सुन्दर धर्मेन्द्रजी पर लेख।कई ऐसे किस्से जिससे अभी तक हम अनजान थे।

  2. बहुत सुन्दर धर्मेन्द्रजी पर लेख।कई ऐसे किस्से जिससे अभी तक हम अनजान थे।

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