
- November 30, 2025
- आब-ओ-हवा
- 1
पाक्षिक ब्लॉग डॉ. आलोक त्रिपाठी की कलम से....
आधे रह गये आपके शुक्राणु, कोई अज्ञात कारण तो नहीं!
आज के समय में जब प्रजनन दर में लगातार कमी हो रही है, तो उसके कारणों की समीक्षा प्रासंगिक हो जाती है। किंतु यह एक व्यापक विषय है और यह मेरा क्षेत्र भी नहीं है, अतः मैं अपने मुद्दे पर सीधे आ जाता हूं। स्टैटिस्टा के एक आंकड़े के अनुसार, पुरुषों में शुक्राणुओं (स्पर्म) की संख्या जो 1973 में 101 थी, वो 2018 में घटकर 49 मिलियन/मिली लीटर हो गयी है, जो कि आधे से भी कम है।
वैसे तो डॉक्टर साहब इसके कई कारण बताएंगे मसलन धूम्रपान, मद्यपान, चिंता आदि। वैसे लोग 1973 के पहले इन सबका सेवन नहीं करते थे? लेकिन मैं इसके मूल कारण पर बात करना चाहता हूं, जो कि प्रकृति के नियम के ही विरुद्ध है। ये है आपका पहनावा और आपके बैठने के तरीक़े तथा अधुनातन जीवन में अपनायी गयी कुछ आधुनिकताएं।
गिरावट के प्रमाण
कई अध्ययनों ने दिखाया है कि भारतीय पुरुषों के वीर्य के मानक समय के साथ घटे हैं, और यह गिरावट बाँझपन वाले समूह में अधिक स्पष्ट है। 1992 में कार्लसन आदि द्वारा किये गये मेटा-विश्लेषण में पाया गया कि 1938 से 1990 के बीच औसत शुक्राणु सांद्रता 113 मिलियन से घटकर 66 मिलियन/ml रह गयी — लगभग 50% की कमी। इसके बाद विश्वभर में अनेक अनुसंधान हुए, जिनमें अधिकांश ने यह प्रवृत्ति दोहरायी।

लेकिन उसके पहले हम इसके वैज्ञानिक पहलू को समझ लेते हैं। शुक्राणुओं का जन्म एक विशेष प्रकार अंग द्वारा किया जाता है और इसे शरीर के बाहर रखा जाता है।
स्क्रोटम (Scrotum) का तापमान नियंत्रण में महत्व
स्क्रोटम का मुख्य कार्य अंडकोष का तापमान नियंत्रित करना है। यह शरीर के तापमान से थोड़ा (3 से 4 डिग्री सेल्सियस) ठंडा रहना आवश्यक है ताकि स्वस्थ शुक्राणु बन सकें। आपको अगर यह तापमान में अंतर कम लग रहा हो तो पुनर्विचार कीजिए। अगर यह आवश्यक नहीं होता तो प्रकृति इतने महत्वपूर्ण अंग को शरीर से बाहर क्यों रखती! क्योंकि उचित मात्रा में और स्वस्थ शुक्राणु बनने के लिए सामान्य से कम तापमान चाहिए।
लंबे समय तक दोनों पैर चिपकाकर बैठने या तंग कपड़े पहनने से स्क्रोटम का तापमान शरीर के तापमान के बराबर हो जाता है, जो कि प्राकृतिक व्यवस्था के प्रतिकूल है, और प्राकृतिक शीतलन प्रक्रिया बाधित होती है और शुक्राणु की गुणवत्ता और मात्रा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
बैठने की आदतें और वस्त्र
पुरुषों के अंडकोष शरीर से बाहर इसलिए स्थित हैं ताकि तापमान कम रह सके। लेकिन जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक बैठता है या तंग कपड़े पहनता है— जैसे जीन्स या ब्रीफ़्स— तो अंडकोष का तापमान शरीर के तापमान के क़रीब पहुँच जाता है। यह शुक्राणु निर्माण को बाधित करता है। अध्ययनों से पता चला है कि जिन पुरुषों का व्यवसाय गर्म वातावरण में होता है, उनमें शुक्राणु की आकृति असामान्य होने की संभावना 1.8 गुना अधिक होती है, और गर्भाधान में कठिनाई का जोखिम भी बढ़ता है।
पारंपरिक भारतीय परिधान और जलवायु
भारत में पारंपरिक वस्त्र — जैसे कश्मीर का फेरन, गंगा-मैदानी इलाकों का धोती और दक्षिण भारत का लुंगी — जलवायु के अनुरूप बने हैं, जो बेहतर वायु संचलन और शीतलन प्रदान करते हैं। इसके विपरीत, आधुनिक कपड़े जैसे जीन्स, जो ठंडे देशों से उत्पन्न हुए, भारत जैसी गर्म जलवायु में स्क्रोटम को अधिक गर्म रखते हैं।
यहां एक बात का और ज़िक्र करते चलें कि परंपरागत प्रचलन के अनुसार जिसकी शादी नहीं हुई होती है, या जिसे ब्रह्मचर्य का निर्वहन करना होता था उसे लंगोट पहने के लिए कहा जाता था। वैसे यह बात एक मज़ाक़ के तौर पर देखी जा सकती है, किंतु विज्ञान द्वारा भी प्रमाणित है। इसी प्रकार, प्राचीन भारतीय बैठने की मुद्राएँ — सुखासन या पद्मासन — में अंडकोष जाँघों से दूर लटकते हैं, जिससे प्राकृतिक वायु संचार बना रहता है।
प्लास्टिक और फ्थेलेट्स
प्लास्टिक और फ्थेलेट्स पुरुष प्रजनन क्षमता पर गहरा असर डालने वाले छुपे हुए कारक हैं। फ्थेलेट्स ऐसे रसायन हैं, जो प्लास्टिक को लचीला बनाने के लिए इस्तेमाल होते हैं और ये पानी की बोतलें, खाने के पैकेजिंग, खिलौने और कॉस्मेटिक्स में मौजूद होते हैं। ये हार्मोन डिसरप्टर की तरह काम करते हैं और पुरुषों के टेस्टोस्टेरोन स्तर तथा शुक्राणु उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं। इसके संपर्क में आने से शुक्राणु की संख्या घटती है, उनकी चलने की क्षमता (motility) कम होती है और DNA क्षति की संभावना बढ़ जाती है, जिससे बांझपन का ख़तरा बढ़ सकता है। लगातार प्लास्टिक में पैक खाना खाने, माइक्रोवेव में प्लास्टिक गर्म करने या औद्योगिक रसायनों के संपर्क में रहने वाले पुरुष विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। इससे बचने के लिए BPA-और फ्री-फ्थेलेट प्लास्टिक, कांच या स्टेनलेस स्टील की बर्तनों का इस्तेमाल और सुरक्षित खिलौनों तथा कॉस्मेटिक्स का चुनाव करना महत्वपूर्ण है।
लैपटॉप
लैपटॉप का गोद में रखकर (जिसके लिए ही बना है) और इंटरनेट से जोड़कर उस पर कार्य करना तो अधिक ख़तरनाक हो सकता है। क्योंकि ये न सिर्फ़ प्रोसेसर की गर्मी से स्क्रोटम को गर्म करेगा वरन इंटरनेट, विशेषतः वाई फाई के ज़रिये आपके शुक्राणुओं में उत्परिवर्तन भी ला सकता है, जिससे होने वाली संतानों में आनुवांशिकी बीमारियों की भी संभावना बढ़ जाती है। और इस समस्या से महिलाएं भी वंचित नहीं रह सकती।

समाधान क्या हैं?
• हम अपने पेशे या समय को नहीं बदल सकते, लेकिन कुछ सरल बदलाव ज़रूर कर सकते हैं:
• तंग जीन्स की जगह ढीले सूती कपड़े और पतलून पहनें।
• ब्रीफ़्स की जगह बॉक्सर पहनें ताकि उचित वेंटिलेशन बना रहे। या जहां आवश्यक न हो वहां इसके उपयोग से बचें।
• योगासन जैसी पारंपरिक मुद्राएँ अपनाएँ — विशेषकर सुखासन या पद्मासन।
• इन छोटे क़दमों से न केवल शुक्राणु निर्माण बेहतर हो सकता है, बल्कि समग्र पुरुष प्रजनन का स्वास्थ्य भी सुधर सकता है।
• ध्यान रहे मैं इस बात का खंडन नहीं कर रहा हूं जो डॉक्टर साहेब ने बताया है या बताएंगे। धूम्रपान, मद्यपान, मोटापा आदि भी महत्वपूर्ण कारण हैं।
प्राचीन भारतीय जीवनशैली — चाहे वह बैठने की मुद्रा हो या पहनावा — जलवायु, शारीरिक संरचना और स्वास्थ्य के बीच संतुलन को ध्यान में रखकर विकसित की गयी थी। आधुनिक जीवनशैली इस संतुलन को बाधित कर रही है। यदि हम अपने कपड़ों और आदतों में थोड़े परिवर्तन करें, तो पुरुष शक्ति की इस गिरावट को काफ़ी हद तक रोका जा सकता है।

डॉ. आलोक त्रिपाठी
2 दशकों से ज्यादा समय से उच्च शिक्षा में अध्यापन व शोध क्षेत्र में संलग्न डॉ. आलोक के दर्जनों शोध पत्र प्रकाशित हैं और अब तक वह 4 किताबें लिख चुके हैं। जीवविज्ञान, वनस्पति शास्त्र और उससे जुड़े क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले डॉ. आलोक वर्तमान में एक स्वास्थ्य एडवोकेसी संस्था फॉर्मोन के संस्थापक हैं।
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बहुत बढ़िया लेख। इस संदर्भ में स्त्रीकाल यूट्यूब चैनल पर भी एक कार्यक्रम हुआ था।