Issue-26

पहलगाम : श्वेत-श्याम... हक़ीक़त@कतरन

ख़बर, ब्यौरे रिपोर्ट करना अलग बात है और मौक़े पर अपनी भावना, संवेदना दर्शाना अलग। कश्मीर के अख़बारों ने 22 अप्रैल 2025 को हुए पहलगाम आतंकी हमले के ब्यौरे छापे तो मुखपृष्ठ काले कर दिये। दिल्ली और आसपास की हिन्दी पट्टी तक आते आते मुखपृष्ठ रोज़ की तरह सफ़ेद दिखे। छत्तीसगढ़ में तो भारतीय जनता पार्टी ने सोशल मीडिया पर जाने किस भावना से आहतों की जिबली इमेज बनाकर पोस्ट कर दी। बहरहाल, एक तरफ़ वह मीडिया रहा जिसने इस हमले के बाद देश में फिर हिन्दू मुसलमान के बीच की खाई को चौड़ाने वाली रिपोर्टिंग की, तो दूसरी तरफ़ एक मीडिया ने संवेदनशीलता दिखायी और प्रश्नाकुलता भी।

आतंकी हमले का एक हफ़्ता होते, द हिंदू के संपादकीय में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बयान की खिंचाई की गयी। हिंदू ने लिखा, इस बयान में पहलगाम आतंकी हमलों की निंदा तो की गयी लेकिन न तो आतंकी संगठन द रेसिस्टेंस फ़्रंट का नाम लिया गया और न ही यह ज़िक्र किया गया कि आतंकियों के निशाने पर हिंदू पर्यटक थे। इधर, प्रमुख उर्दू अख़बारों के संपादकीय भी उल्लेखनीय रहे। हैदराबाद से प्रकाशित ‘सियासत’ में लिखा गया, पहलगाम का दुख समाज के हर तबक़े ने महसूस किया और सब सड़कों पर उतरे। यह ऐसा मौक़ा है जब देश एकता की एक सकारात्मक भावना का साक्षी है लेकिन ऐसे में मीडिया का एक हिस्सा है जो आंतकवाद से सांप्रदायिक डिज़ाइन वाले एजेंडे को ही लक्ष्य कर रहा है। ‘सालार’ के संपादकीय का शीर्षक ‘आर पार की लड़ाई’ रहा, जिसमें पाकिस्तान को आतंकवाद के लिए काफ़ी खरी खोटी सुनायी गयी।

अन्य कुछ स्वतंत्र पत्रकारों ने सरकार के अगले पिछले क़दमों को लेकर ज़रूरी चिंताएं और प्रश्न रखे।

पुन:श्च – एक तरफ़ ख़बरें ये हैं कि कश्मीर प्रशासन ने पर्यटकों से अपील की है कि पर्यटन जारी रखें और वहीं यह भी सूचना है कि कश्मीर में दर्जनों की संख्या में पर्यटन स्थलों को बंद कर दिया गया है।

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