धुन ही नहीं, रहमान के बर्ताव पर भी सवालिया निशान

धुन ही नहीं, रहमान के बर्ताव पर भी सवालिया निशान

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत क्षेत्र में बौद्धिक संपदा अधिकार के लिए लड़ी गयी पहली लड़ाई शास्त्रीय संगीत के घराने के पक्ष में गयी और फ़िल्म उद्योग के दिग्गज कलाकारों पर भारी पड़ी। दो साल से अधिक समय से चल रहे विवाद में अतत: दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस्ताद फ़य्याज़ वसीफ़ुद्दीन डागर के हक़ में फ़ैसला सुनाते हुए आस्कर विजेता संगीतकार एआर रहमान एवं अन्य प्रतिवादियों को 2 करोड़ रुपये की राशि अदा करने का आदेश दिया।

इस महत्वपूर्ण फ़ैसले में उच्च न्यायालय ने अनेक महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। जैसे, भारत में कॉपीराइट कानून पारंपरिक रचनात्मक कार्यों को संरक्षण प्रदान करने के लिए विकसित और अनुकूलित हुआ है, जिसमें हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर आधारित सृजन भी शामिल है। संगीतकार मौलिक रचना के संबंध में नैतिक अधिकारों सहित अधिनियम के तहत सभी अधिकारों का प्रयोग करने और दावा करने का भी हकदार होगा।

न्यायालय ने यह भी कहा, लाखों रचनाएँ हैं, जो विभिन्न रागों और विभिन्न परंपराओं/घरानों में रचित, गायी और प्रस्तुत की जाती हैं। हालाँकि, उक्त रचनाओं में से प्रत्येक तब तक मूल रचनाएँ होंगी जब तक कि वे किसी मौजूदा रचना से कॉपी न की गयी हों… यह भी कि केवल यह तथ्य कि कोई विशेष रचना किसी विशेष राग पर, किसी विशेष परंपरा में एक विशिष्ट शैली से संबंधित है, इसका मतलब यह नहीं कि रचना मूल नहीं हो सकती।

संगीत के जानकार मान रहे हैं कि यह निर्णय कई प्रकार से भविष्य में ऐसे विवादों को निपटाने के लिए महत्वपूर्ण होगा। उल्लेखनीय है कि मद्रास टॉकीज़ निर्मित फ़िल्म पोन्नियन सेल्वन 2 में एक गीत ‘वीरा राजा वीरा’ की कंपोज़िशन पर डागर घराने की ओर से दावा किया गया था कि यह रचना मूल रूप से दिवंगत डागर बंधुओं नासिर फ़य्याज़ुद्दीन डागर एवं ज़हीरुद्दीन डागर की थी, जो शिव स्तुति के रूप में पीढ़ियों से प्रचलित है।

उस्ताद फ़य्याज़ वसीफ़ुद्दीन डागर ने यह भी आरोप लगाया था कि जब फ़िल्म व संगीत निर्माताओं से आपत्ति दर्ज करवायी गयी तो उनका रवैया नकारात्मक था। पहले दावा ख़ारिज करने के कई दिन बाद फ़िल्मी गीत के रिकॉर्ड पर डागर बंधुओं को आधा अधूरा व अटपटी स्पेलिंग लिखकर क्रेडिट दिया गया था। इसके बाद भी विवाद को सुलझाने के बजाय अनर्गल बर्ताव का आरोप भी फ़िल्मी कलाकारों पर था।

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