हर कलाकार इस समय का सामना करे

जनवादी लेखक संघ उ.प्र. का दसवाँ राज्य सम्मेलन लखनऊ स्थित कैफ़ी आज़मी एकेडमी में अप्रैल 2025 में आयोजित किया गया। पहले दिन उद्घाटन सत्र में ‘असहमति और जनतंत्र: हमारे समय की चुनौतियों के बीच साहित्य’ विषय पर गोष्ठी आयोजित की गई।

इस सत्र में स्वागत समिति के अध्यक्ष लेखक और संपादक अखिलेश ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा, इसी प्रदेश की धरती पर कबीर, निराला और प्रेमचंद जैसी साहित्यिक हस्तियों ने जन्म लिया है। इसी धरती को उन्होंने आंदोलन की धरती बताया। जनवादी लेखक संघ की स्थापना के समय को याद करते हुए उनका कहना था कि यहाँ आने वाले हर ज़िले और दूरदराज़ के साथी एक ऐसा नज़रिया लेकर जाएँ जो अपने क्षेत्र में उस मशाल को जलाए रख सकें। उन्होंने अपील की कि इस कठिन समय में हर कलाकार अपने हर संभव प्रयास से इस समय का सामना करे।

जनवादी लेखक संघ के महासचिव संजीव कुमार ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि लोकतंत्र बहुमत का नाम नहीं है। सौ लोगों में एक की बात सुनी जाए या अल्पमत का सुना जाना ही लोकतंत्र है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का मतलब संख्या से नहीं है। अपने भाषण में उन्होंने सावित्री बाई फुले की फिल्म पर सेंसर बोर्ड द्वारा लगाए गए कट्स की बात कही और निर्माता की सहमति के हवाले से लोकतंत्र के नष्ट होने का हवाला दिया। फ़िल्म ‘हाउ डेमोक्रेसी डाई’ के हवाले से उन्होंने कहा कि ब्यूरोक्रेसी को अपनाकर, चुनाव में हस्तक्षेप करके मीडिया हॉउस को काबू करके और मतपत्र को हथिया कर लोकतंत्र नष्ट किया जाता है। कानून हमें असहमति का अधिकार देता है। उमर ख़ालिद जैसे युवकों को सीएए से असहमत होने पर आज भी कारावास में रखा गया है और उन पर केस शीट तक नहीं बन सकी है… हम एक ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में हैं जब महान साहित्य रचा जाना चाहिए मगर जब हम कठिन समय मे हों तो हमारे समय की चीज़ों को सीधा-सीधा कह देना चाहिए। क्या साहित्य रचे जाने की स्थिति में है। अपने समय की चुनौतियों से रूबरू कराने और हस्तक्षेप की भूमिका निभाने की हैसियत रखता है। क्या आज साहित्य का वह प्रभाव क्षेत्र है, मुझे उस पर संदेह है। वह सैकड़ों और कुछ में हज़ारों तक जाता है। मिलियन की संख्या में व्यू के दौर में यह संख्या कम है। साहित्य में कहीं कुछ ऐसा होता है जो सौ साल बाद अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है।

प्रगतिशील लेखक संघ से शकील सिद्दीकी ने अपनी बात रखते हुए प्रतिरोध की परंपरा और चेतना को जिलाये रखने के लिए इसके संस्थापक लेखकों के सहयोग की बात कही। अपने संगठन की ओर से जनवादी लेखक संघ के इस आयोजन की सराहना की और कहा कि यह अधिवेशन रास्ता दिखाने वाला, प्रेरणा देने वाला और रौशनी दिखाने तथा नये लोगों को जोड़ने वाला कार्यक्रम है।

अध्यक्ष मंडल से कवि हरीश चंद्र पाण्डे ने कहा कि आज लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में भी कही हुई बात को स्विच बंद करके रोक दिया जाता है। उन्होंने दक्षिण भारत में इस समय भाषा को लेकर जारी विवाद का हवाला दिया और बताया कि किस प्रकार वहॉं हिंदी थोपी जा रही है।

जनवादी लेखक संघ, उत्तर प्रदेश की पूर्व अध्यक्ष नमिता सिंह ने जलेस की स्थापना से अब तक के सफ़र को याद किया और कहा कि पिछले लम्बे समय से माहौल ऐसा है कि बेबसी ओर बेचैनी बनी रहती है। आज कि स्थितियों को कठिन बताते हुए उन्होंने कहा कि लेखक संघ हमेशा से इस आज़ादी और सत्ता के चरित्र का विरोध कर रहा था। साथ ही, उन्होंने कहा कि हम उन समानांतर चल रही ताक़तों को शायद उस हद तक नहीं समझ सके और उतनी गंभीरता से नहीं लिया। उन्होंने इन हालात के साथ पली-बढ़ी पीढ़ी और पूँजीवाद के ख़तरे का ज़िक्र किया। ऐसे समय में, उन्होंने साहित्य की भूमिका पर बोलते हुए गोर्की का हवाला दिया कि यथार्थ को दर्ज किया जाना चाहिए। इस बात पर उन्होंने अफ़सोस जताया कि आज भी हम वही साहित्य लिखने को मजबूर हैं जो कई दशक पहले लिखा जा रहा था। साथ ही, उन्होंने सोशल मीडिया और आज के माहौल में वर्तमान साहित्यकारों को इस बात पर विचार करने की बात कही कि किस तरह हम जनता के बीच जाएँ। उन्होंने व्यंग्य विधा को सबसे साहस की विधा कहा और कहा कि ख़तरे तो उठाने ही होंगे।

कुँवरपाल सिंह स्मृति सम्मान से नवाज़े गये जनवादी लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष चंचल चौहान ने इस समय सारी दुनिया को संकट का सामना करने की स्थिति में बताया। उन्होंने कहा कि यहाँ शिक्षा का स्तर कम है जबकि अमरीका में अच्छी शिक्षा और जागरूकता के बावजूद वहां की जनता हालात की मार झेल रही है। पूरी दुनिया में हड़कंप का कारण जानने की कोशिश में लगे जानकारों के हवाले से उन्होंने इसे नवफासीवाद कहा। फासीवाद को पूँजीवाद की जड़ बताते हुए उन्होंने ऐसे साहित्य का हवाला दिया जो इन कारणों पर प्रकाश डालता है। आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक और डब्लूटीओ को पूरी दुनिया पर राज करने वाला टूल बताते हुए उन्होंने कहा कि इनकी मदद से हमें ग़ुलाम बना लिया गया है। अपने वक्तव्य में उन्होंने बताया कि मुक्तिबोध अपनी रचना में इंटरनेशनल फाइनेंस कैपिटल का ज़िक्र करते हैं और इसे वह मौजूदा समय में संकट का सबसे बड़ा कारण बताते हैं। धर्मवीर भारती को याद करते हुए चंचल चौहान ने उनकी कही बात को आज के समय से जोड़ते हुए उनकी पंक्ति दोहराई – ‘सत्ता उसकी होगी जिसकी पूँजी होगी।’ उन्होंने कहा कि इस समय यह तो कहा जाता है कि डेमोक्रेसी की आत्मा, आलोचना है जबकि परिस्थितियाँ इसके विपरीत हैं। उन्होंने बताया कि हर दौर में दोनों तरह के लेखक रहे हैं, कुछ लेखक मानसिक रूप से ग़ुलाम बनने के लिए होते हैं जबकि कुछ संवेदना को लेकर रचते हैं।

धन्यवाद ज्ञापन जनवादी लेखक संघ लखनऊ के अध्ययक्ष ज्ञान प्रकाश चौबे ने किया। प्रदेश भर से आने वाले सभी साथियों का आभार प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि अपने साथियों की बदौलत हम इस कार्यक्रम को सफल बना सके। संचालन जलेस लखनऊ की सचिव शालिनी सिंह ने किया।

इस अवसर पर विनोद कुमार दत्ता, नमिता सिंह, नाइश हसन और केशव तिवारी को उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। दूसरे सत्र में सफ़दर हाशमी के नाटक ‘औरत’ की प्रस्तुति इप्टा के कलाकारों द्वारा की गयी। नाटक को शहज़ाद रिज़वी ने निर्देशित किया था। तीसरे सत्र में विभिन्न जनपदों से आये प्रतिनिधियों को स्मृति चिन्ह देते हुए उनका परिचय कराया गया। चौथे सत्र में तीन प्रस्ताव रखे गये। पहला, उत्तर प्रदेश सरकार की उर्दू भाषा नीति के विरुद्ध मुनेश त्यागी ने रखा जिसका समर्थन समीना खान ने किया। दूसरा प्रस्ताव उत्तर प्रदेश में महिला हिंसा के विरुद्ध नाइश हसन द्वारा रखा गया जिसका समर्थन सीमा सिंह ने किया। तीसरा प्रस्ताव लेखकों, पत्रकारों, शिक्षकों और छात्रों की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरों के विरुद्ध विशाल श्रीवास्तव द्वारा रखा गया जिसका समर्थन बसंत त्रिपाठी ने किया। चौथे और अंतिम सत्र में ‘एक कवि-एक कविता’ शीर्षक से काव्य पाठ आयोजित किया गया।

दूसरे दिन सांगठनिक सत्र में विभिन्न ज़िलों से आये प्रतिनिधियों और केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने शिरकत की। सत्र का आरम्भ जनवादी लेखक संघ उत्तर प्रदेश के सचिव नलिन रंजन सिंह ने बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर को याद करते हुए किया। उन्होंने कहा कि आज के समय में भी अंबेडकर के विचार बेहद प्रासंगिक हैं। भारत के संविधान और जनतंत्र को बचाने के लिए जरूरत है कि हम कार्ल मार्क्स, महात्मा गांधी और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के विचारों से प्रेरणा लेकर काम करें। उनके विचारों पर चलकर ही हम धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा कर पाएँगे।

सांगठनिक सत्र में प्रदेश की राज्य समिति के सदस्यों की संख्या 47 से बढ़ाकर 71 करने का निर्णय लिया गया। राज्य समिति में आने वाली कार्यकारिणी, राज्य परिषद, पदाधिकारी मंडल एवं संरक्षक मंडल सभी में सदस्यों की संख्या उचित अनुपात में बढ़ायी गयी। इस दौरान बनारस इकाई के नईम अख्तर, मेरठ के मंगल सिंह ‘मंगल’ और बीना मंगल की किताबों एवं जलवायु पत्रिका का विमोचन किया गया।

तत्पश्चात सचिव की रिपोर्ट पढ़ी गयी। इस रिपोर्ट के माध्यम से मौजूदा हालात पर रौशनी डालते हुए सिलसिलेवार राज्य सरकार की नाकामियों का विस्तार से उल्लेख किया गया। सचिव की रिपोर्ट के माध्यम से प्रदेश की आगामी योजनाओं की जानकारी दी गयी। इसमें लेखक और कवियों पर आधारित कार्यक्रमों की संख्या बढ़ाये जाने के साथ लेखन को और भी माँझने के लिए कार्यशालाएँ आयोजित किये जाने पर चर्चा हुई। इसके बाद मुनेश त्यागी ने अंधविश्वास के विरुद्ध प्रस्ताव रखा जिसे ध्वनिमत से पारित किया गया। प्रतिनिधि-परिचय रिपोर्ट ज्ञान प्रकाश चौबे ने रखी।

— रपट : नलिन रंजन सिंह/समीना खान

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