युद्धविराम के बाद... चुनौतियां और विचार

युद्धविराम के बाद… चुनौतियां और विचार

ऑपरेशन सिंदूर के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम पहले संबोधन में आतंकवाद से निपटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ की बात पुरज़ोर ढंग से कही। मंगलवार की सुबह, यह संबोधन देश के प्रमुख दैनिकों के पहले पन्ने पर हुंकार की तरह परोसा गया। हालांकि टीओआई के अलावा प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिकों के संपादकीयों में यह संबोधन जगह नहीं पा सका। जागरूक पाठक बनने के लिए आप यह ज़रूर जानें कि संपादकीय किन कोणों से लिखे गये।

द हिंदू, द इंडियन एक्सप्रेस, द टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स के साथ ही दैनिक भास्कर, जागरण, जनसत्ता आदि अख़बारों ने पहले पन्ने पर मोदी के भाषण के मुख्य अंशों को प्रमुखता से प्रकाशित किया। इन अंशों में ख़ास यह था कि ऑपरेशन सिंदूर को सिर्फ़ “अल्पविराम” दिया गया है और भविष्य में कोई भी आतंकवादी हमला होने की सूरत में भारत अपनी शर्तों पर जवाब देगा।

इंडियन एक्सप्रेस के संपादकीय में युद्धविराम के आगे की चुनौतियों पर विचार किया गया है, तो द हिंदू ने ट्रोलिंग आर्मी को आड़े हाथों लिया है। वहीं टेलिग्राफ़ ने युद्ध से पैदा होने वाली चुनौतियों के मद्देनज़र यह विचार व्यक्त किया है कि युद्ध हमेशा एक विकल्प ही होना चाहिए, एकमात्र विकल्प नहीं।

आगे और चुनौतियाँ होंगी : इंडियन एक्सप्रेस

अपने संपादकीय में इंडियन एक्सप्रेस ने कहा, ‘सबसे पहले, राजनीतिक नेतृत्व को यह बताने में कोई समय नहीं गंवाना चाहिए कि कैसे और क्यों पाकिस्तान की आतंक को समर्थन देने और राष्ट्र की सुरक्षा करने की नीति की लागत बढ़ाने की दिशा में सुई आगे बढ़ी है। उन निष्क्रिय योद्धाओं के दावों के बारे में भी बताया जाना चाहिए, जो ज़ोर-ज़ोर से शिकायत करते हैं कि युद्ध विराम “समय से पहले” है, या ऐसा लगता है इसे बाहरी तौर पर मध्यस्थता के ज़रिये किया गया है। भारत की व्यापक रक्षा क्षमताओं की समीक्षा शुरू करना महत्वपूर्ण है। कारगिल संघर्ष के बाद, कारगिल समीक्षा समिति (केआरसी) का गठन किया गया था, और इसकी सिफारिशों- जिसमें ख़ुफ़िया जानकारी जुटाना और अंतर-सेवा समन्वय को मज़बूत करना शामिल था- ने सैन्य सुधार पर बातचीत को आगे बढ़ाया। यह लगभग 26 साल पहले की बात है। 2014 से लेकर अब तक भारत ने कम से कम पांच सैन्य संकट देखे हैं — 2016, 2019 और अब पाकिस्तान के साथ, और 2017 और 2020 में चीन के साथ सीमा पर। अब एक बार फिर से जायज़ा लेने का समय आ गया है। पुख़्ता ख़ुफ़िया जानकारी आतंकवाद के ख़िलाफ़ पहला बचाव है और कमियों को दूर किया जाना चाहिए। पाकिस्तान के पास चीन के आधुनिक शस्त्रागार की एक लाइन है और भारत को अपनी बढ़त के लिए और अधिक निवेश करना होगा।’

युद्ध से लाभ किसी को नहीं : टेलिग्राफ़

युद्ध से न तो नयी दिल्ली को कोई लाभ होगा और न ही इस्लामाबाद को। क्योंकि इससे दोनों देशों के लिए कई चुनौतियाँ खड़ी होंगी। फिर भी, इस नयी ‘लाल रेखा’ को सरकार द्वारा ज़मीन पर बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए, अगर कोई आतंकवादी कश्मीर में भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान पर हमला करने की कोशिश करता है, तो क्या भारत पाकिस्तान के साथ युद्ध करेगा? दशकों से, पाकिस्तान ने आतंक का एक उद्योग खड़ा किया है जो भारत पर हमला करने के लिए कश्मीर को एक बहाने के रूप में इस्तेमाल करता है। पाकिस्तान पर दबाव बनाये रखा जाना चाहिए ताकि वह भारत विरोधी हिंसा फैलाने वाली अपनी फ़ैक्ट्रियां बंद कर दे। पाकिस्तान द्वारा पारंपरिक रूप से वित्तपोषित और प्रशिक्षित संगठन और आतंकी, जिन्हें बाद में पाकिस्तान ने छोड़ दिया है, वे भी आतंकवादी हमला करके भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को भड़काने की कोशिश कर सकते हैं। आतंकवाद के ख़िलाफ़ नये निवारक तैयार करते समय, भारत को इन जोखिमों को ध्यान में रखना चाहिए। युद्ध हमेशा एक विकल्प हो, एकमात्र विकल्प ही न हो।

ट्रोलरों ने पार की लक्ष्मण रेखा : द हिंदू

भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण युद्ध भले ही टल गया हो, लेकिन ट्रोल आर्मी शांति भंग करने के लिए पूरी ताक़त से सामने आयी है। 10 मई को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने घोषणा की कि दोनों पक्षों के बीच सभी सैन्य कार्रवाइयों को रोकने के लिए एक समझौता हो गया है, उसके बाद उनके व्यक्तिगत एक्स अकाउंट (पूर्व में ट्विटर) पर अपमानजनक टिप्पणियों की बाढ़ आ गयी, उनकी बेटी को भी ट्रोलरों ने नहीं बख़्शा। मिस्री ने अकाउंट बंद कर दिया, और कई राजनयिकों और राजनेताओं ने स्पष्ट शब्दों में इस ज़हरीली संस्कृति की निंदा की। कहा कि लक्ष्मण रेखाएँ पार की गयीं। मिस्री केवल अपना काम कर रहे थे और राजनीतिक नेतृत्व द्वारा लिये गये निर्णय सूचित कर रहे थे। ऑपरेशन सिंदूर के बारे में ज़मीनी हक़ीक़त के बारे में सोशल मीडिया पर “पूरी तरह से ग़लत सूचना फैलाने” के लिए पाकिस्तान की आलोचना करने वाला सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (आई एंड बी) मिस्री के ख़िलाफ़ क्रूर ट्रोलिंग और उनकी बेटी की डोक्सिंग के बारे में चुप रहा। दुर्भाग्य से, भारत में सोशल मीडिया के अभूतपूर्व उदय के साथ लेकिन इंटरनेट साक्षरता की कमी के कारण, नफ़रत फैलाने वाले भाषण, अपमानजनक टिप्पणियों और तथ्यों को जानबूझकर विकृत करने के लिए नियमित रूप से सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म हथियार की तरह इस्तेमाल किये जा रहे हैं।

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