गणेश बिहारी तर्ज़

ग़ज़ल तब

कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीच
हम भी मुजरिम की तरह ख़ामोश हैं यारों के बीच


क्या कहें किसने बहारों को ख़िज़ाँ-सामाँ किया
देखने में तो सभी गुल-पोश हैं यारों के बीच


ये भी सच है घर के भेदी ने किया घर को तबाह
ये भी लगता है कि सब निर्दोश हैं यारों के बीच


क्या पता कब ख़ून का प्यासा यहाँ हो जाये कौन
यूँ तो कहने को सभी मय-नोश हैं यारों के बीच


हाँ चला अब साक़िया जादू भरी नज़रों के तीर
हम भी देखें किस क़दर ज़ी-होश हैं यारों के बीच


बज़्म-ए-याराँ है ये साक़ी मय नहीं तो ग़म न कर
कितने हैं जो मयकदा बर-दोश हैं यारों के बीच


‘तर्ज़’ पढ़ता है कोई जब झूमकर नज़्म-ओ-ग़ज़ल
ऐसा लगता है ‘फ़िराक़’ ओ ‘जोश’ हैं यारों के बीच

गणेश बिहारी तर्ज़

गणेश बिहारी तर्ज़

18 मई 1928 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में जन्मे गणेश बिहारी तर्ज़ ने उर्दू शायरी में अपना एक स्थान बनाया। 'हिना बन गयी ग़ज़ल' उनका चर्चित ग़ज़ल संग्रह रहा। वह अपने समकालीनों में पारंपरिक शायरी के एक हस्ताक्षर के रूप में पहचाने गये।

1 comment on “ग़ज़ल तब

  1. क्या पता कब ख़ून का प्यासा यहाँ हो जाये कौन
    यूँ तो कहने को सभी मय-नोश हैं यारों के बीच

    बहुत खूब

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *