
- October 14, 2025
- आब-ओ-हवा
- 2
इंद्रधनुष-4 : जंगबहादुर श्रीवास्तव 'बंधु'
8 दिसंबर 1935 को जन्मे बंधु जी का निधन कल 13 अक्टूबर 2025 को भोपाल में हो गया। बंधु जी गीति काव्य में अपने अनूठे स्वर और हस्ताक्षर के लिए सर्वविदित रहे। पिछले कुछ दशकों से वे भोपाल में ही थे और क़रीब दशक भर पहले तक गीतकारों की महफ़िलों की शोभा हुआ करते थे। कमलकांत सक्सेना द्वारा संपादित-प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘साहित्य सागर’ ने उन पर केंद्रित एक विशेषांक दिसंबर 2009 में जारी किया था। साथ ही, साहित्य सागर के आयोजनों में वह निरंतर शिरकत करते रहे। हालांकि पिछले कुछ सालों में स्वास्थ्य ने उनका साथ छोड़ दिया था। उनके गीतों का सुर अपने समकालीनों में अलग से पहचाना जाता रहा। पाठक इन गीतों को पढ़ें, इनके प्रसार के निमित्त बनें, यह एक गीतकार को श्रद्धांजलि होगी, इस विश्वास के साथ श्रद्धांजलिस्वरूप उनके चर्चित और चर्चा योग्य गीतों को प्रकाशित किया जा रहा है।

जंगबहादुर श्रीवास्तव ‘बंधु’ के सात गीत
1. इस पर लिखो निबंध
अब लंका में राम, अवध में प्रकट हुआ दशकंध
बालको! इस पर लिखो निबंध
नंगा जब अस्नान करे तो क्या परिधान निचोड़े
कैसी लीद किया करते हैं प्रजातंत्र के घोड़े
विश्वामित्र मेनका जी के थे कैसे संबंध
बालको! इस पर लिखो निबंध
यशोधरा ने पत्र लिखा है गौतम पिया प्रणाम
कपिलवस्तु की गद्दी कर दी है राहुल के नाम
बोधिवृक्ष तज भवन पधारो, देखो राज्य प्रबंध
बालको! इस पर लिखो निबंध
कुदरत को विज्ञान छेड़ता आविष्कार प्रयोग
पत्तल भर-भर पीपल देगा सबको छप्पन भोग
श्वान नाभि से अब निकलेगी कस्तूरी की गंध
बालको! इस पर लिखो निबंध
बेमतलब अंधी गांधारी पट्टी बांधे नैन
सौ बेटों का बापू अंधा पांचाली के बैन
सुन दुर्योधन अंधों के घर पैदा होते अंध
बालको! इस पर लिखो निबंध
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2. निपट निर्वसन नंगे
जिससे स्वयं ख़ुदा डरता है
वह साधारण व्यक्ति नहीं
कुछ तो ख़ूबी होगी ठाकुर,
निपट निर्वसन नंगे में
संविधान की भग्न ऋचाएं
रोज़ बख़ूबी कहती हैं
निर्लज्जों की पांचों उंगली
घी में डूबी रहती हैं
अनुसंधान किया लंदन के किसी मनोविज्ञानी ने
दुर्गुण मिले दरोगा जी में सद्गुण मिले लफंगे में
कुछ तो ख़ूबी होगी ठाकुर,
निपट निर्वसन नंगे में
छोटे मुख से बड़ी बात का
कहना विषधर को छूना
कभी चीन ने लगा दिया था
पंडित नेहरू को चूना
कानो-कान सुना है मैंने झूठ-सांच भगवन जानें
वैतरणी को बदल रहे हैं कलुषभंजिनी गंगे में
कुछ तो ख़ूबी होगी ठाकुर,
निपट निर्वसन नंगे में
किनके तार कहां जुड़ जाएं
यह अनबूझ पहेली है
कंचन और कामिनी जी की
चाल अजब अलबेली है
राहु-केतु-शनि का गठबंधन लघु-सिद्धांत कौमुदी में
दिल्ली में बैठी नागिन की पूंछ मिली दरभंगे में
कुछ तो ख़ूबी होगी ठाकुर,
निपट निर्वसन नंगे में
पतिव्रता की प्राण प्रतिष्ठा
महिला को मंज़ूर नहीं
अब द्वारे पर सगुन सातिया
रचने का दस्तूर नहीं
दमयंती की हुई दुर्दशा रम्भा के गलियारों में
तबले को तलाक़ दे ढोलक रुचि ले रही मृदंगे में
कुछ तो ख़ूबी होगी ठाकुर,
निपट निर्वसन नंगे में
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3. कैसी राजधानी है!
किसी को चंद्रमा पूरा पुरस्कृत कर दिया तुमने
किसी की आंख में केवल अमावस की कहानी है
यह कैसी राजधानी है
चपलता मांग लाया था कि मैं हिरनों के छौनों से
उनींदें बीन लाया था विकल विरही बिछौनों से
हमारी गांठ का यह धन नज़र में गड़ गया उनकी
कि पैसे की पसीने पर खुलेदम हुक्मरानी है
यह कैसी राजधानी है
पड़ोसी से पड़ोसी तक हज़ारों मील की दूरी
परस्पर की ठसक इतनी कि मिलना भी है दस्तूरी
शहर क्या है महज़ एक ढेर है बढ़िया मकानों का
सभी कुछ है यहां लेकिन नदारद ज़िंदगानी है
यह कैसी राजधानी है
खुलकर बात करते हैं तो बस अख़बार करते हैं
चुनिंदा भाग्यशाली बैठकर दरबार करते हैं
यहां के नागरिक ब्रह्मा सभी हैं चार मुख वाले
वही है श्रेष्ठ जिसके पास जितना माल-पानी है
यह कैसी राजधानी है
सड़क शालीन है लेकिन यहां के पांव पाजी हैं
हक़ीक़त है यहां के नागरिक सत्तानमाज़ी हैं
नगर की रंगशाला में बड़े वृक्षों की शाखाएं
किसी पर केतकी रीझी किसी पर रातरानी है
यह कैसी राजधानी है
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4. संशोधन तो करने दो
तुम क़त्ल करोगे हाथोंं को
ऐतराज़ नहीं है रत्ती भर
पर ताजमहल के रचने का पहले कसूर तो करने दो
पत्ती-पत्ती पर पीड़ा है
दुख लटके डाली-डाली में
इस कल्पवृक्ष ने काटा है
पूरा जीवन कंगाली में
मैं नीलकंठ का वंशज हूं
इनकार नहीं है पीने से
लेकिन मयंक के अधरों से कुछ ज़हर-बिंदु तो झरने दो
पानी क्या पीता बेचारा
आंसू का तांता अधरों तक
सम्मान बेचकर गया नहीं
सोने-चांदी के कमरों तक
यह पत्रकारिता दावा है
बोलेगा, उत्तर भी देगा
जलने से पहले मुर्दे से मुझको सवाल तो करने दो
क्यों बांझ हो गयी कामधेनु
मेरी चौपाल मंझाते ही
चोरी हो जाते हैं सपने
मेरी आंखों में आते ही
मैं निर्वासित हो जाऊंगा इस
पनघट को करके प्रणाम
पहले इस अमल कमंडल में चंचल तरंग तो भरने दो
बेदर्द विधाता सुन तो ले
क्यों आकर तुमको दुख देता
यदि क़िस्मत अपने हाथों से
लिख सकता तो लिख लेता
सारी शर्तें मंज़ूर मुझे,
स्वीकार यथावत जो भी हैं
लेकिन उद्भ्रांत पंक्तियों में कुछ संशोधन तो करने दो
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5. तुम्हीं बताओ
एक घाघरे में दो मोड़ी – ए बी सी डी, क ख ग
तुम्हीं बताओ गंगा रानी, कितना कीचड़ कितना जल
सात सिंधु को लांघ पधारीं
अंगरेजन का सत्यानाश
सोने का शेक्सपियर बतातीं
कूड़ा-करकट कालिदास
पंचामृत कर दिया विषैला धुली वारुणी च छ ज
भंग धतूरे की संगत से हुआ नशीला तुलसीदल
जो हंसिया में धार बची थी
उसे ले गया चंट लुहार
सोने का मृग मार मूरकर
राम रहे हैं खाल उतार
संस्कार का शव ले आये प्रगतिघाट पर ट ठ ड
बची खुची घर की मर्यादा प्रजातंत्र जी गये निगल
सोना चांदी तौल रहे हैं
चार उचक्के धन्नासेठ
कितने दिन तक जी पाएगा
बंधु पसीना ख़ाली पेट
ठकुरसुहाती सबको भाती सत्ता नर्तन त थ द
महालक्ष्मी के पंजे में फंसा हुआ है लाल कमल
यशोधरा नौका में बैठी
खेने वाले गौतम बुद्ध
विजय पराजय के संशय में
एक महाभारत का युद्ध
खरे शिखंडी से अच्छा है खोटा अर्जुन प फ ब
एक आज के आगे पीछे लगे हुए हैं दो-दो कल
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6 थोड़ा-सा जापान
अति श्रद्धेय हस्तिनापुर, सादर चरण स्पर्श
मुझे ज़रूरत कृपया भेजें निम्नलिखित सामान
दो दुर्योधन, छह दुशासन,
सौ शकुनि छल पांसे
धोखेबाज़ी दग़ा भेजिए
पाकिस्तानी झांसे
मुंहमागी कीमत दे दूंगा शपथपत्र संलग्न
कुछ चुकता नकदी कर दूंगा कुछ किश्तें आसान
परमपूज्य श्री मलयागिरि जी
कर दें मेरा काम
अति विनम्र आवेदन प्रस्तुत
करते हुए प्रणाम
चंदन चर्चित विषधर भेजो दंश दक्षता प्राप्त
डसें खेत की खड़ी फसल को मरते रहें किसान
शहंशाह श्री लाल किला जी
समय समय के साथी
राजतंत्र के घोड़े देखे
प्रजातंत्र के हाथी
बड़े खज़ाने के मालिक हो मांग रहा बख्शिश
कुछ राजे महाराजे दे दो कुछ दे दो सुल्तान
कैसे छूटें पांव देश के
बंधे विदेशी छल से
पूरी दिल्ली ढंकी हुई है
मायावी मलमल से
औरों के नक़्शे में सब कुछ, मेरा नक़्शा ख़ाली
थोड़ा-सा लंदन भिजवा दो थोड़ा-सा जापान
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7. आपकी मर्ज़ी
कबिरा खंजली की थाप
मीरा रेणु वंदन है
आप मानें या ना मानें, आपकी मर्ज़ी
कसौटी दो टके की है
मगर कंचन करोड़ों का
रय्यत ने रियासत में
सहा है दर्द कोड़ों का
पढ़ो इतिहास चालीसा
नरेशों का नरकपन है
आप मानें या ना मानें, आपकी मर्ज़ी
कलम ने आपकी जबसे
सृजन की गांठ खोली है
श्रीमदभागवत फीकी
महाभारत ठिठोली है
पंडित शेक्सपियर का शू
खुपड़िया पर दनादन है
आप मानें या ना मानें, आपकी मर्ज़ी
कामुक नाच के टुकड़े
नहीं लाता तो क्या लाता
इन्हें तो रंडियों से रार
करने में मज़ा आता
अभद्रा वारुणि कमसिन
मगर तलवार का तन है
आप मानें या ना मानें, आपकी मर्ज़ी
गरीबी संत जैसी है
करीबी छूट जाते हैं
कुपथगामी पुरंदर के
करमवा फूट जाते हैं
शचि के स्वर्ग से सुंदर
अहिल्या का तपोवन है
आप मानें या ना मानें, आपकी मर्ज़ी
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बहुत ही स्पष्ट ओर तीखे गीत..
बहुत बेबाक़ और धारदार गीत .. जंगबहादुर जी को पहली बार पढ़ा, अफ़सोस है कि उनसे कभी मुलाक़ात नहीं हो सकी