lalit kala academy exhibition
NSD की प्रस्तुति पर... भवेश दिलशाद की कलम से....

'अरे! आप तो रेंगने लगे..'

              समझ में तो आ रहा है। सबकी या कुछ की! बात भी हो रही है। खुलकर न सही पर अपने-अपने ग़ोशे में तो बेशक। ‘यह नाटक हुआ या सरकारी प्रचार’!, ‘ये तो सरकार के एजेंडे में भीष्म साहनी का नाम बर्बाद करना हुआ’… ऐसे और भी जुमले सुनने को मिले इसी 17 की शाम राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अभिमंच से रात 9.30 बजे बाहर निकलते हुए।

lalit kala academy exhibition

हम दोनों 17 की शाम मंडी हाउस की गलियों में बिता रहे थे। ललित कला अकादमी की कला-दीर्घाओं में चक्कर लगाया। कुछ तस्वीरों और इंस्टॉलेशन्स को देखकर मंत्रमुग्ध भी हुए। कुछ देर महाराष्ट्र भवन की कैंटीन में पुरानी यादें ताज़ा कीं। और फिर घूमते-फिरते पहुंचे एनएसडी के दरवाज़े पर, बड़ा बोर्ड लगा था, ‘विभाजन विभीषिका’। बहुत बड़े अक्षरों में लिखा था यह शीर्षक और नीचे छोटे आकार में लिखा था, ‘तमस’। और ध्यान से देखा तो हां, यह भीष्म साहनी वाला तमस ही था।

मुद्दतों पहले यह किताब पढ़ी हुई है, टीवी सीरियल भी देखा हुआ है। कुछ यादें ज़ेह्न में जब गूंजीं तब यही ख़याल आया कि कमाल है एनएसडी में भीष्म साहनी की कृति पर नाटक! यह ग़ज़ब कैसे! ऐसा माहौल कबसे हो गया भई! हमने गेटकीपर से बात की, इत्तेफ़ाक़ से एक पास उपलब्ध था। हम दोनों भीतर दाख़िल हो गये।

जीवंत तस्वीरों का एक मंच सामने था। सेट आकर्षक था। कुछ दृश्य-बंध सुंदर थे। लाइट का खेल भी मनभावन चल रहा था। दर्शक ज़हीन लग रहे थे। ज़्यादातर वहां तालियां बजीं, जहां वाक़ई महसूस हुआ कि यहां दाद ज़रूरी है। कुछ कलाकारों का अभिनय क़ाबिले-दाद था। लेकिन दृश्य-दर-दृश्य आगे बढ़ते हुए कुछ और समझ आने लगा।

दरअसल ‘तमस’ की कहानी के आधार पर मंचन तैयार किया गया था। यह नाटक असल में, उस विस्तृत कहानी में से कुछ हिस्सों का कोलाज ही था। और अंत तक पहुंचते हुए यह साफ़ था कि बस उन्हीं हिस्सों को चुना गया, जिनमें कांग्रेस की आलोचना थी और ज़ियादातर दृश्य ऐसे तैयार किये गये थे, जो बंटवारे के दर्द से अधिक बंटवारे को उकसावा देने वाली भावनाओं को उघाड़ें।

नाटक देखकर हम दोनों कुछ कशमकश के साथ बाहर निकले क्योंकि नाटक के अंतिम दृश्य में एक और चतुराई की गयी। अचानक पीरियड ड्रामा की वेशभूषा के बाहर का एक युवक, मंच के छोर पर आ गया और उसने इस नाटक की प्रासंगिकता साबित करने के लिए पहलगाम के हमले की भर्त्सना की और उसके बाद ‘आपरेशन सिंदूर’ की कथित सफलता का बिगुल बजाया। जैसे ही उसने आपरेशन सिंदूर की तारीफ़ का वाक्य पूरा किया, दर्शकों में से एक आवाज़ आयी ‘यह भीष्म साहनी के नाटक का हिस्सा नहीं है’। एक पल के लिए एक झटके की तरह। युवक जारी रहा और ​पूरे जोश के साथ उसने जब ‘भारत माता की जय’ का घोष किया, तो शायद उसकी उम्मीद के विपरीत दर्शक-दीर्घा से रत्ती भर आवाज़ उसके समर्थन में नहीं आयी। उसने तीन बार यह घोष नितांत अकेले ही किया और फिर वह स्टेज पर मौजूद कलाकारों के साथ घुल-मिल गया।

अभिमंच से बाहर निकलते हुए दर्शकों की बातों पर हमारे कान अपने आप चले गये थे। कुछ लोग वाहनों तक जाते हुए अपने-अपने समूहों में अपनी-अपनी प्रतिक्रिया देते जा रहे थे।

‘इस तरह प्रचार नहीं किया जाना चाहिए, कला की गंभीरता दूषित हो जाती है।’
‘अरे आप, बाहर बोर्ड पर ही देख लीजिए, विभाजन विभीषिका इतना बड़ा लिखा है और तमस इतना छोटा, इसी से आपको सोच का अंदाज़ा लग जाएगा।’
‘केंद्र में विभीषिका से अधिक विभाजन न आ जाये, यह तो ध्यान रखना ही था।’

बहरहाल, अब कभी भीष्म साहनी जैसे लेखकों के पोस्टर ऐसे केंद्रों के बाहर दिखे तो जिज्ञासा यही होगी कि अब यहां क्या खेल कर दिया भाइयों ने। रंगकर्मी पंकज निनाद ने पिछले दिनों एक क़िस्सा सुनाते हुए बताया था, उनका एक मित्र यह कहता है ‘भाई अपन तो परसाई के नक़्शे-क़दम पर चलते हैं, वो भी तो कांग्रेस के आलोचक थे!’ इस पर पंकज भाई ने कैसे फटकार पिलायी! ‘फिर तो रहे तुम टट्टू के टट्टू, यही सीखे परसाई से! सीखना यह था बेटा कि आलोचना सत्ताधारियों की करते हैं।’ …भीष्म साहनी से भी तो यही सीखना था एनएसडी के कर्णधारों को।

चलिए आप परसाई और भीष्म जैसों से न सीखें, कम से कम लालकृष्ण आडवाणी का वह कटाक्ष तो याद रखें जो उन्होंने इमरजेंसी के समय में मीडिया की भूमिका के लिए कहा था, ‘आपसे झुकने के लिए कहा गया था, आप तो रेंगने लगे..’

भवेश दिलशाद, bhavesh dilshaad

भवेश दिलशाद

क़ुदरत से शायर और पेशे से पत्रकार। ग़ज़ल रंग सीरीज़ में तीन संग्रह 'सियाह', 'नील' और 'सुर्ख़' प्रकाशित। रचनात्मक लेखन, संपादन, अनुवाद... में विशेष दक्षता। साहित्य की चार काव्य पुस्तकों का संपादन। पूर्व शौक़िया रंगमंच कलाकार। साहित्य एवं फ़िल्म समालोचना भी एक आयाम। वस्तुत: लेखन और कला की दुनिया का बाशिंदा। अपनी इस दुनिया के मार्फ़त एक और दुनिया को बेहतर करने के लिए बेचैन।

2 comments on “‘अरे! आप तो रेंगने लगे..’ NSD की प्रस्तुति पर प्रतिसाद

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