
बांग्लादेश की अस्थिरता को एक साल हो जाने के बाद अब क्या राजनीतिक स्थिरता का कोई संकेत है? मौजूदा सिस्टम का मूल्यांकन क्या है? क्या कोई उम्मीद की किरन है? आब-ओ-हवा का मुआयना
‘बांग्लाक्लेश’ का एक साल: मो. युनुस उर्फ़ भीड़तंत्र…
8 अगस्त 2024 को मो. युनुस ने बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार के तौर पर एक तरह से मुल्क की कमान अपने हाथ में ली थी। इससे कुछ रोज़ पहले ही शेख़ हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा था और फिर सेना का प्रभाव सत्ता पर काबिज़ हुआ था। ऐसी कई रिपोर्ट्स हैं जो बताती हैं कि पाकिस्तान की आईएसआई और चीन का डीप स्टेट युनुस को सत्ता के केंद्र में लाने के पीछे रहे। इसका मक़सद धर्म की राजनीति को बढ़ावा देकर बांग्लादेश को नेस्तनाबूद करना बताया जाता है।
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित रहे युनुस के सत्ता संभालने के बाद एक वर्ग को उम्मीद थी कि देश में कुछ रचनात्मक होगा, लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उलट। युनुस बस नाम के लिए ही कुर्सी संभाले नज़र आते रहे और बीते एक साल में बांग्लादेश में भीड़ सड़कों पर आतंक मचाती रही।
क़ानून नहीं भीड़तंत्र का राज
बांग्लादेश में एक साल से भीड़ निरंकुश है और अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं। रिपोर्ट्स पर नज़र डालें तो बीते एक साल में 600 से ज़्यादा लोग मॉब लिंचिंग की घटनाओं में मारे गये हैं। इन आंकड़ों में 40 से ज़्यादा पुलिसकर्मी शामिल हैं और 70 फ़ीसदी मक़तूल वो हैं, जिनका संबंध हसीना की अवामी लीग से किसी न किसी तौर पर रहा है।
इसके अलावा, भीड़ ने कई स्मारकों, घरों, भवनों, सार्वजनिक संपत्तियों को ध्वस्त करने में कोई क़सर नहीं छोड़ी है। बांग्लादेश में भीड़तंत्र की हिंसा पर यह आरोप भी है कि एक सिलसिले से अल्पसंख्यकों के नरसंहार और उनकी विरासत को ध्वस्त करने की साज़िश रची जा रही है। मानवाधिकार आयोग गूंगा साबित हो रहा है और अल्पसंख्यकों को आयेदिन ज़ुल्मों का शिकार होना पड़ रहा है।
फ़ासीवाद चरम पर
इस्लाम या धर्म के विषय में की जा रही टिप्पणियों तक पर नज़र रखी जा रही है। अल्पसंख्यकों को इन टिप्पणियों के लिए गिरफ़्तार किया जा रहा है या टॉर्चर किया जा रहा है। एक तरह से बांग्लादेश अपनी संवैधानिक भावना भुलाकर ‘धर्मनिरपेक्ष’ देश के बजाय ‘इस्लामी’ देश बनता नज़र आ रहा है। 1971 में स्वतंत्र देश बनने वाले बांग्लादेश ने धार्मिकता के बजाय धर्मनिरपेक्षता को मूल भावना बनाया था। तब भी जमातएइस्लामी जैसे कुछ सियासी दल थे, जो इसे इस्लामी देश बनाने और पाकिस्तान की विचारधारा के पक्ष में दिखे थे। मज़हब को केंद्र में रखने वाली और नफ़रती की पक्षधर सियासत का अब बांग्लादेश में बोलबाला दिख रहा है।
युनुस तंत्र के फ़ासीवाद पर ये आरोप भी हैं कि जेलों के भीतर भी सियासी विरोधियों की हत्याएं की जा रही हैं। लोकतंत्र को हर तरह से ध्वस्त कर दिया गया है और पूरा देश पल पल ख़ौफ़ और हिंसा की चपेट में है। यहां अदालतें और राजनीतिक प्रक्रियाओं पर भी संशय के बादल छाये हुए हैं।
किसके साथ किसके ख़िलाफ़?
भारत के लिए बांग्लादेश को लेकर बड़ी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। टेलिग्राफ़ ने लिखा है कि बांग्लादेश में अब भारत खलनायक की तरह देखा जा रहा है और पाकिस्तान के साथ उसके संबंध उभरते दिख रहे हैं। बांग्लादेश की विदेश नीति चीन और अमेरिका के पक्ष में इस तरह दिख रही है कि साफ़ साफ़ कुछ भी समझना पेचीदा हो रहा है। एक विशेषज्ञ का कहना है कि बांग्लादेश में कट्टरपंथ का आलम यह हो गया है कि यह देश अफ़गानिस्तान की तरह शक्ल अख़्तियार करता जा रहा है।
पाकिस्तान के साथ दोस्ताना रिश्तों के कारण चीन के डीप स्टेट की मौजूदगी बांग्लादेश में बनी हुई है। एक तरह से चीन ही बांग्लादेश की अस्थिरता के पीछे है। दूसरी तरफ़ हसीना का आरोप है कि जिस सेंट मार्टिन द्वीप को बचाने के लिए उनके पिता शेख़ मुजीब जीवन भर अमेरिका से रिश्तों को लेकर क़ीमत चुकाते रहे और उन्होंने भी देश की इस संपत्ति को बचाये रखा, उसे युनुस तंत्र ने अमेरिका के सामने समर्पित कर दिया है। हसीना ने युनुस पर बांग्लादेश को विदेशों के हाथ बेच देने के इल्ज़ाम लगाये हैं। इस द्वीप को सामरिक दृष्टि से बंगाल की खाड़ी में महत्वपूर्ण ठिकाना समझा जाता है।
अब क्या?
कुल मिलाकर बांग्लादेश जिस मोड़ पर खड़ा है, वहां धूप कम कोहरा ज़्यादा दिख रहा है। कुछ लेखों और रिपोर्ट्स के शीर्षक यह तस्वीर दिखाते हैं। एक नज़र देखें: ‘क़त्लेआम कर रही युनुस बाहिनी, अमेरिका को बेच रही देश’, ‘हसीना के तख़्तापलट के बाद बांग्लादेश में भीड़ का राज’, ‘बांग्लादेश में लोकतंत्र को भीड़तंत्र ने कैसे खदेड़ा’, एक साल बाद भी ‘अस्थिरता’, ‘बांग्लादेश राजनीतिक स्थिरता से बहुत दूर’, ‘युनुस के कार्यकाल में एक साल में अफ़गानिस्तान की परछाईं बना बांग्लादेश’…
ग़ौरतलब है कि 5 अगस्त 2024 को शेख़ हसीना को बांग्लादेश छोड़कर भारत में शरण लेना पड़ी थी। इसके महीने भर पहले से पुलिस और अधिकतर छात्र संगठनों के बीच हिंसक झड़पें चल रही थीं, जिसमें सैकड़ों मौतें हो चुकी थीं। हसीना सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी तेज़ थे और उन पर इस्तीफ़े का दबाव बढ़ता जा रहा था। हालात बेक़ाबू हुए तो उन्हें रातोरात सेना के हेलीकॉप्टरों से अपना मुल्क छोड़ना पड़ा था। इसके बाद से ही बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता, सड़कों पर भीड़ की हिंसा और बढ़ते आपराधिक माहौल से दो चार होना पड़ा।