कुमार रवींद्र

गीत तब

कुमार रवींद्र

अपराधी देव हुए
ऎसे में क्या करें मंदिर की घंटियाँ

उनको तो बजना है बजती हैं
कई बार आपा भी तजती हैं
धूप मरी भोर-हुए
कैसे फिर धीर धरें मंदिर की घंटियाँ

भक्तों की श्रद्धा वे झेल रहीं
आंगन में अप्सराएँ खेल रहीं
उनके संग राजा भी
देख-देख उन्हें तरें मंदिर की घंटियाँ

एक नहीं कई लोग भूखे हैं
आँखों के कोये तक रूखे हैं
दर्द सभी के इतने
किस-किस की पीर हरें मंदिर की घंटियाँ

कुमार रवींद्र

कुमार रवींद्र

10 जून 1940 को लखनऊ में जन्मे कुमार रवींद्र की प्रमुख कृतियों में आहत हैं वन, चेहरों के अन्तरीप, पंख बिखरे रेत पर, सुनो तथागत, हमने संधियाँ कीं (सभी नवगीत-संग्रह), लौटा दो पगडंडियाँ (कविता-संग्रह), दी सैप इज़ स्टिल ग्रीन (अंग्रेज़ी में प्रकाशित कविता-संग्रह), एक और कौन्तेय, गाथा आहत संकल्पों की, अंगुलिमाल, कटे अंगूठे का पर्व, कहियत भिन्न न भिन्न (सभी काव्य-नाटक) आदि शामिल हैं। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान तथा हरियाणा साहित्य अकादमी से सम्मानित। निधन 1 जनवरी 2019।

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