सुलक्षणा पंडित, sulakshana pandit, sanjeev kumar
पाक्षिक ब्लॉग विवेक सावरीकर मृदुल की कलम से....

सुलक्षणा पंडित ने आख़िर बांधी रे काहे प्रीत?

            अपने समय की ख़ूबसूरत अदाकारा और गायिका सुलक्षणा पंडित (12.07.1954-06.11.2025) का हाल में निधन हुआ। विगत कई दशकों से वह पार्श्व गायन और सुनहरे पर्दे की रंगीनियों से दूर अपनी बहन और पूर्व अभिनेत्री विजेयता पंडित श्रीवास्तव के घर एकाकी जीवन व्यतीत कर रही थीं। शारीरिक व्याधियों के साथ में मानसिक अवसाद से भी पीड़ित थीं। कहते हैं यह अवसाद उन्हें मशहूर अभिनेता संजीव कुमार द्वारा उनके प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार करने से शुरू हुआ था, जो संजीव कुमार के असामयिक निधन से गहराता चला गया।

सुलक्षणा पंडित की गिरती सेहत के बारे में दशकों तक मीडिया ने कोई सुध नहीं ली। लेकिन 6 नवंबर 2025 को उनकी मृत्यु के पश्चात सोशल मीडिया और फ़िल्मी पत्रिकाओं में सुलक्षणा पंडित के बारे में श्रद्धांजलि लेखों की जैसे बाढ़ आ गयी। उनके गाये लगभग सभी प्रसिद्ध गीतों पर समीक्षात्मक टिप्पणियां इधर-उधर शाया हो चुकी हैं। शायद यही दस्तूर है ज़माने का। ख़ैर, इन कुछ दिनों में विविध भारती पर भी उनके गाने ख़ूब बजे हैं। इसलिए इस बार मैंने कुछ लीक से हटकर गाये गानों पर क़लम चलाने का सोचा।

सच तो यह है कि सुलक्षणा जी हम साठ के दशक में जन्मे लोगों के समय की बड़ी महत्वपूर्ण गायिका थीं। इसलिए उनके बारे में बिना नॉस्टैल्जिक हुए कुछ लिखना कठिन है। विविध भारती के “रंग तरंग” और “सांध्य गीत” कार्यक्रमों में उनके भजन बहुत बजते थे। एक था- ‘प्रभु तुम अंतर्यामी, दया करो, दया करो हे स्वामी’। ख़ैयाम के संगीत से सजी इस रचना को सुनकर उनके साथ जो रूहानी रिश्ता जुड़ा, वो हमेशा के लिए बन गया।फिर “संकोच” फ़िल्म में उनका गाया गीत- ‘बांधी रे काहे प्रीत पिया के संग अनजाने में’ सुना। यह फ़िल्म शरद बाबू के उपन्यास ‘परिणीता’ पर आधारित थी, यह बात बहुत बाद में पता चली। फ़िल्म भी मैंने नहीं देखी लेकिन एक कमसिन आयु की विरहा नायिका के प्रेम की वेदना सुलक्षणा की विलक्षण आवाज से समझ में आ जाती है। किशोर कुमार के साथ उनका गाया गीत “बेक़रार दिल तू गाये जा” में आशावादिता का जोश भरा हुआ है। उनके गले में मिठास के साथ कच्ची कैरी सा खट्टा-मीठापन बरबस मोह लेता है। जैसे- ‘घड़ी मिलन की आई, आई तू छुट्टी लेकर आ जा’ सुनिएगा। फ़िल्म “एक बाप छह बेटे” के लिए राजेश रोशन की धुन पर रफ़ी साहब और सुलक्षणाजी ने कमाल की जुगलबंदी की है। पर्दे पर इस गाने पर मेहमूद और योगिता बाली ने भी बड़े शोख़ अंदाज़ से अभिनय किया है।

सुलक्षणा पंडित, sulakshana pandit, sanjeev kumar

ऐसा ही दोगाना याद आ रहा है फ़िल्म “साजन की सहेली” का। इत्तेफ़ाक से यह भी रफ़ी जी के साथ है और विनोद मेहरा-रेखा गाने पर होंठ हिलाते हैं, यूं साथ में राजेंद्र कुमार और नूतनजी भी दिखायी देते हैं। गाना है- ‘जिसके लिए सबको छोड़ा, उसी ने मेरे दिल को तोड़ा’। इस गाने की क्रॉस लाइन में जब सुलक्षणा जी गाती हैं- ‘तुझसे प्यारा कोई मिला, छोड़ा तुझे तो क्यों है गिला’ में रेखा की क़ातिलाना मुस्कान को सुलक्षणा की नटखटपन भरी आवाज़ पूरा न्याय देती है। फ़िल्म “चलते-चलते” में बप्पी लहरी के संगीत में उन्हीं के साथ गाये गीत- ‘जाना कहां है, प्यार यहां है’ को सुनिएगा। इसमें उन्होंने स्थाई में ‘तुरूरूरूरू’ के साथ ‘दिलकश समां, दिलकश समां’ गाते हुए जैसी हारमनी की है, उससे गाने का मज़ा बढ़ गया है। …एक गाना और याद आता है। फ़िल्म ‘आंखिन देखी’। यह फ़िल्म तो नहीं चली पर विविध भारती ने रफ़ी साहब के साथ सुलक्षणा पंडित का ये युगल गीत बड़े ही प्रेम से बजाया- ‘सोना रे तुझे कैसे मिलूं, ओ हो हो’। संगीतकार जे.पी. कौशिक की यह मधुर और मासूमियत से भरी धुन फ़िल्म पिट जाने के चलते गर्दिश में चली गयी। ऐसे ही कुछ और कर्णप्रिय गानों में- ‘सोमवार को हम मिले’, ‘देखो कान्हा नहीं मानत बतिया…’ आदि गिनाये जा सकते हैं।

अंत में यही कहना चाहता हूं कि प्रतिभा ही अकेले हमारा भविष्य तय नहीं करती। वरना क्या नहीं था सुलक्षणा पंडित में? एक नायिका का सर्वांग सुंदर सलोना रूप, अभिनय क्षमता जिसका प्रमाण उनकी पहली ही फ़िल्म ‘उलझन’ में उन्होंने दे दिया था। गायकी की गहरी और खानदानी विरासत से मिली समझ और बेहतरीन फ़िल्मी पारिवारिक पार्श्व। कभी-कभी लगता है कि संजीव कुमार के साथ उन्होंने अगर ‘प्रीत न बांधी’ होती तो अभिनय न सही पर क्या उनकी गायकी का सफ़र और भी कुछ दशकों तक रोशन नहीं रह सकता था? अफ़सोस जतिन-ललित जैसे होनहार संगीतकार भाई भी उन्हें दोबारा गवाने के लिए माइक्रोफ़ोन तक न ला सके।

(तस्वीर टीओआई से साभार)

विवेक सावरीकर मृदुल

सांस्कृतिक और कला पत्रकारिता से अपने कैरियर का आगाज़ करने वाले विवेक मृदुल यूं तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्ववियालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं,पर दिल से एक ऐसे सृजनधर्मी हैं, जिनका मन अभिनय, लेखन, कविता, गीत, संगीत और एंकरिंग में बसता है। दो कविता संग्रह सृजनपथ और समकालीन सप्तक में इनकी कविता के ताप को महसूसा जा सकता है।मराठी में लयवलये काव्य संग्रह में कुछ अन्य कवियों के साथ इन्हें भी स्थान मिला है। दर्जनों नाटकों में अभिनय और निर्देशन के लिए सराहना मिली तो कुछ के लिए पुरस्कृत भी हुए। प्रमुख नाटक पुरूष, तिकड़म तिकड़म धा, सूखे दरख्त, सविता दामोदर परांजपे, डॉ आप भी! आदि। अनेक फिल्मों, वेबसीरीज, दूरदर्शन के नाटकों में काम। लापता लेडीज़ में स्टेशन मास्टर के अपने किरदार के लिए काफी सराहे गये।

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