
- October 27, 2025
- आब-ओ-हवा
- 8
विज्ञापनों में हिंदी की गरिमामय काव्यात्मक उपस्थिति के लिए हमेशा याद किये जाएंगे पीयूष पांडे (05.09.1955-24.10.2025)। ऐड गुरु से एक मुलाक़ात के बहाने एक याद...
सोनू यशराज की कलम से....
पीयूष पांडे... वेल डन कैप्टन
ज़रूर कभी नंदी के कान में बोला होगा, ऐड गुरु पीयूष सर से मिलना है! आख़िर उनके ऐड्स देख-सुन-पढ़कर ही तो एकलव्य की तरह सीखा था। केवल मेरे ही क्यों, वे कितनों के द्रोणाचार्य थे। जिनसे नहीं मिले, उनके भी गुरु। और सच में अप्रत्याशित रूप से एक बार उनसे मिलने का सौभाग्य मिला।
वर्ष 2004 में जयपुर में उनसे हुई वह मुलाक़ात नहीं भूलती। वे ओ&एम के क्रिएटिव हेड थे और मैं दिल्ली की एक विज्ञापन कंपनी की जयपुर ब्रांच की क्रिएटिव कंसल्टेंट। सौभाग्य से हम दोनों की कंपनियों को खादी विज्ञापन अभियान की प्रेज़ेंटेशन देनी थी। उस दिन ऐड गुरु के दो रूप देखे मैंने, एक अनौपचारिक, साधारण मुच्छड़ हंसोड़ शख़्सियत और दूसरा निहायत प्रोफ़ेशनल गंभीर व्यक्तित्व।
पहले विज्ञापन के लिए कंटेंट निर्माण, फिर सूचना, शिक्षा, संचार सलाहकार, कवि और लेखक के रूप में इतने बरसों से रचनात्मकता के क्षेत्र में रहने के कारण जान गयी हूं कि रचनात्मक ऊर्जा के लिए बालसुलभ सहजता और खुलापन एक ईंधन का काम करती है। पीयूष पांडे सर से दस मिनट की वह बातचीत, वह सौम्यता, सहजता और ज़ोर से हंसने की उनकी आदत हमेशा याद रहेगी। बिना किसी औपचारिकता और दिखावे के वे जयपुर की हस्तकला और गलियों में मिलने वाली मिठाइयों का ज़िक्र करते रहे। अपने शहर जयपुर से उनका लगाव हमेशा बना रहा। यहां उनका बचपन बीता। विख्यात स्कूल में पढ़ाई और क्रिकेट का जुनून परवान चढ़ा। रणजी खेले। विज्ञापन की दुनिया में महज़ 27 साल की उम्र में गये और उसी के हो गये।

कैडबरी के एक विज्ञापन में वे रचनात्मकता की पराकाष्ठा तक पहुंचते हैं। विशाल खेल मैदान में क्रिकेट मैच चल रहा है, बल्लेबाज़ की फ्रेंड सामने दर्शकों की कतार में बैठी है।मैच में तनाव के क्षण हैं, जो पसीना पोंछते क्रिकेटर और दर्शकों की आंखों में महसूस किया जा सकता है। बल्लेबाज़ अप्रत्याशित रूप से बॉल उछालता है। जो कुछ देर पहले एक आसान कैच लग रहा था वह बॉल छक्के में बदल जाती है। बैकग्राउंड में संगीत के साथ बोल उभरते हैं-
कुछ बात है हम सभी में..
बात है..क्या बात है.. हम सभी में..
फ्रेंड खुशी से झूमती, उन्मुक्त नृत्य करती हुई हाथ में कैडबरी लेकर आती है और बल्लेबाज़ के पास जा पहुंचती है। दर्शक ताली बजा रहे हैं, नायक मुस्कुराते हुए शरमा रहा है… 30 सेकेंड का यह विज्ञापन अभियान समाज की बदलती मार्डन सोच, लड़कियों के आज़ाद ख़याल और ज़ाहिर बेबाकी और युवाओं में कैडबरी चॉकलेट को लोकप्रिय करने का सफल प्रयास था।
एशियन पेंट का विज्ञापन भारतीय इमोशन्स और घर और परिवार के प्रति हमारे लगाव को बख़ूबी निभाता है-
हर घर
कुछ कहता है
हर घर चुपचाप से.. यह कहता है
कि अंदर इसमें ..कौन रहता है
छत बताती है ..ये किसका आसमां है
रंग कहते हैं.. किसका ये जहाँ है
कमरों में किसकी कल्पना झलकती है
फर्श पर नंगे पैर किसके बच्चे चलते हैं
कौन चुन चुन कर इसे प्यार से सजाता है
कौन इस मकान में अपना घर सजाता है
हर घर चुपचाप से.. यह कहता है
कि अंदर इसमें ..कौन रहता है
क्योंकि हर घर
कुछ कहता है
फ़ेविकोल के विज्ञापनों ने तो अलग ही इतिहास रच दिया। याद कीजिए फ़ेविकोल के ट्रक में लकदक भरकर बैठे राजस्थानी पगड़ी बांधे युवक, बच्चे, बूढ़े जो तमाम ऊंचे नीचे रास्तों पर बिना हिले-डुले बैठे हैं क्योंकि ये फेविकोल का जोड़ है।
यह विज्ञापन दृश्यात्मक था, इसमें बोल नहीं थे। विज्ञापन में मौन का ये अनूठा प्रयोग अप्रतिम पीयूष पांडे ही कर सकते थे। उन्होंने विज्ञापनों में जादुई रहस्य और कथानकों से उन्हें ज़िंदादिल बना दिया। शुक्रिया पीयूष पांडे सर, आप याद रहेंगे हर इंसानी भावना वाले दिल में। इन शब्दों में भी, और इनके अर्थों में भी-
— गूगली वूगली वूश
— मिले सुर मेरा तुम्हारा
— कुछ बात है हम सभी में
बात है..क्या बात है..हम सभी में..

सोनू यशराज
साहित्यकार और सूचना शिक्षा संचार सलाहकार। 'पहली बूंद नीली थी' चर्चित काव्य संग्रह है। कविताओं का आधा दर्जन से अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। ग्वालियर सेंट्रल लाइब्रेरी की डॉक्युमेंट्री में आपकी कविता शामिल हुई। 'साहित्य तक' में आपकी कविताओं का वाचन। अनेक पत्र पत्रिकाओं, ब्लॉग, चैनलों, आकाशवाणी आदि माध्यमों से कविता, कहानी, लेख, डायरी आदि का प्रसारण। और प्रतिष्ठित सम्मान भी आपके खाते में हैं।
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उन creative advertisement का जादू हमने भी अनुभव किया था। आपकी प्रभावपूर्ण लेखनी ने उन्हें रोचकता के साथ प्रस्तुत किया है …. ऐसे ही आपके और संस्मरणों की प्रतीक्षा रहेगी।
बेहतरीन लिखा सोनू ।
विज्ञापन में भावुकता का समावेश बढ़िया प्रयोग किया पीयूष जी ने ।
सबके प्रिय श्री पीयूष जी का संस्मरण और उनका विज्ञापन जगत में योगदान पर आपका लेख अच्छा लगा।
इस क्षेत्र में आने वाले नए लोगों के लिए भी उन्होंने एक लक्ष्य तथा स्तर निर्धारित किया है। वह सदा जीवित रहेंगे। उनको सादर नमन।
आभार मधु सक्सेना जी
She is such a pure hearted and think tank writer.
एक प्रभावी व्यक्तित्व से मुलाकात का प्रभावी विवरण। इसे पढ़कर पीयूष पांडे सर की कमी और भी खली।
यादों का सुंदर ताना बाना पिरोया आपने सारी स्मृतियां जीवंत हो उठी।विज्ञापन के क्षेत्र में सर सदा अविस्मरणीय रहेंगे।
बहुत खूबसूरत लिखा है सोनू! वाकई ये विज्ञापन हमेशा याद रहते हैं।