
कौन किस पाले में? दक्षिण एशिया में जंग का गणित
छह साल बाद फिर एक बार भारत और पाकिस्तान मुठभेड़ की स्थिति में पहुंच गये हैं। वजह कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर आतंकियों का नृशंस हमला। और जवाब में भारत का ऑपरेशन सिंदूर। 2019 में जब जंग जैसे हालात बने थे, तब तो शुरूआती संघर्ष के बाद टल गये थे लेकिन इस बार भू-राजनीतिक समीकरण बदले हुए हैं। आब-ओ-हवा पर आप पढ़ सकते हैं कि इसे किस तरह समझा जाना चाहिए। एक दूसरा कोण हथियारों की ख़रीद-फ़रोख़्त से भी जुड़ा हुआ है। भारत और पाकिस्तान ने पिछले कुछ सालों में जिस तरह हथियार ख़रीदने का ट्रेंड दर्शाया है, उससे भी ताज़ा हालात और निकट भविष्य के समीकरणों को समझा जाना चाहिए।
दक्षिण एशिया का यह हिस्सा इसलिए बेहद नाज़ुक है क्योंकि यहां भारत, पाकिस्तान और चीन तीन परमाणु हथियार संपन्न देश हैं, जिनमें से पाकिस्तान को छोड़कर शेष दोनों विश्व शक्तियों में भी शुमार हैं। ख़बरें बताती हैं कि अभी गणित यह है कि पाकिस्तान रक्षा पर जितना फ़ंड खर्च करता है, भारत उसका नौ गुना जबकि चीन भारत के मुक़ाबले चार गुना और ज़्यादा। इसे अगर राशि में जानना चाहें तो रक्षा पर सबसे ज़्यादा ख़र्च करने वाले शीर्ष पांच देशों का चार्ट कुछ इस तरह है:
अमेरिका – तक़रीबन 1000 अरब डॉलर
चीन – 300 अरब डॉलर से अधिक
रूस – क़रीब डेढ़ सौ अरब डॉलर
जर्मनी – लगभग 88 अरब डॉलर
भारत – लगभग 86 अरब डॉलर
पाकिस्तान इस सूची में 29वें नंबर पर है, जिसका रक्षा बजट क़रीब 10 अरब डॉलर का होता है। हालांकि हाल ही ख़बरें हैं कि वह इसमें 18 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी कर सकता है। इस बजट से इतर हथियारों का आयात जिस तरह से हुआ है, वह भी काफ़ी अहमियत रखता है और दर्शाता है कि तीन पड़ोसी किस तरह आपस में एक बेचैनी के धागे में बिंधे हुए हैं।
किसके पीछे कौन?
एनवायटी ने यह ग्राफ़िक दिया है और पूरी रिपोर्ट भी कि किस तरह पिछले कुछ दशकों में हथियारों की ख़रीद-फ़रोख़्त को लेकर विश्व शक्तियों पर भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की निर्भरता में बदलाव आया है।
यह जगज़ाहिर रहा है कि आज़ादी के बाद भारत विश्व शक्तियों के बरअक्स एक तटस्थ देश रहा। तबसे काफ़ी अरसे तक भारत ने हथियारों और रक्षा सौदों के लिए अमेरिका के प्रति एक हिचक ही दिखायी और शीत-युद्धकालीन रूस के साथ उसके रक्षा संबंध बेहतर रहे, लेकिन पिछले कुछ समय में अमेरिका व पश्चिम के साथ अरबों-खरबों के सौदे हुए।
दूसरी तरफ़ पाकिस्तान.. हथियारों के आयात या सप्लाई के लिए पहले जो अमेरिका की कठपुतली बना रहा, 9/11 के बाद से हालात बदले। पाकिस्तान को अमेरिका ने अपनी गोद से उतारा तो वह चीन की सरपरस्ती में चला गया। अब वह एक तरह से चीन का मोहरा बनकर रह गया है। इस पूरे गणित की रोशनी में दक्षिण एशिया में सुपर-पावर राजनीति को इंगित करने वाला लेख जो मुजीब मशल ने लिखा है, वह पढ़ने योग्य है।
यह भी विचार करने योग्य है कि ताज़ा हालात में क्या अमेरिका भारत का साथ पूरे दिल से देगा? क्योंकि पिछले कुछ समय से अमेरिका ने भारत के साथ सौतेला और अपमानजनक बर्ताव कई मौक़ों पर दर्शाया है जैसे ग़ैर-क़ानूनी प्रवासियों को बेड़ियों में भारत भेजना, भारत के टैरिफ़ बेतहाशा बढ़ाना और भारत की पोल खोल देने जैसी शब्दावली और ऑपरेशन सिंदूर के लिए प्रतिक्रिया में ‘शर्मनाक’ जैसी टिप्पणी करना। इस तरह के तमाम उदाहरण यह तो बताते हैं कि अमेरिका और भारत के बीच कोई असहजता, कोई मनमुटाव तो चल रहा है। ऐसे में भारत के पास रूस और कुछ पश्चिमी शक्तियों से समर्थन जुटाने के विकल्प हैं किंतु क्या यह चीन के विरुद्ध एक कारगर रणनीति हो सकेगी?
— आब-ओ-हवा डेस्क