
- November 14, 2025
- आब-ओ-हवा
- 0
पाक्षिक ब्लॉग डॉ. आलोक त्रिपाठी की कलम से....
क्यों गिरता जा रहा है रक्तचाप का रक्तचाप?
ब्लड प्रेशर की सीमा घटती रही, मरीज बढ़ते गये — मुनाफ़ा होता रहा…
उच्च रक्तचाप अर्थात हाइपरटेंशन या हाई बीपी, जिसमें व्यक्ति की रक्त वाहिकाओं में रक्त का दबाव सामान्य से अधिक हो जाता है। लेकिन मूल बात, जो डॉक्टर आपको बताएंगे वो ये कि इसका कोई लक्षण सुनिश्चित नहीं है, अर्थात एक लक्षणहीन बीमारी है। जैसा कि हमने कोविड के केस में देखा। जिसे कुछ भी नहीं महसूस हो रहा है, उसे भी कोविड है। वैसे चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में यह एक लतीफ़ा बनकर रह जाएगा।
2022 के एक अध्ययन ने, भारत में 15 वर्ष से ऊपर के लगभग 22.6% लोग इसके शिकार होने का दावा किया है। अब आगे बढ़ने से पहले अपने साथ ही घटी घटना का उल्लेख करता हूं। बात 1995 के आसपास को होगी, मुझे भ्रम हुआ कि मुझे कहीं हाई बीपी तो नहीं है, मैं 1 रु. की पर्ची कटवाकर डॉ. के पास गया और अपना शक ज़ाहिर किया, तो डॉ. ने कहा कि “तुम मूर्ख हो”। 30 साल के पहले अगर किसी का भी बीपी ज़्यादा आ रहा है तो या तो मशीन ख़राब है या कोई बहुत ही बड़ी बीमारी है।
लेकिन आप फिर मुझे कोसेंगे, कि यह अकड़ा मैं 15 साल से ऊपर का बता रहा हूं क्योंकि अभी के आकड़ों के अनुसार 15 वर्ष से ही बीपी शुरू हो जा रहा है। तो यही कहीं छुपा है इस लेख का उद्देश्य।
वास्तव में सामान्य बीपी को ही कुछ बीमारी-सी हो गयी और यह घटते-घटते 80/120 पर आ गया है। यह अपने आप में एक शोध का विषय है। ज़रा इन आंकड़ों पर ध्यान दीजिए। सन 1940 में सामान्य बीपी 100+ (उम्र/95), जबकि 1970 में 160/90, और 2000 में यह घटकर 140/90।
उच्च रक्तचाप को आज “साइलेंट किलर” कहा जाता है, परंतु पिछले पाँच दशकों की “तीव्र शोध-क्रांति” और नीति निर्माण के बावजूद इसकी मृत्यु-दर घटने के बजाय बढ़ी ही है। 1970 के बाद से, चिकित्सा जगत में इसे ऐसा प्रस्तुत किया गया, मानो हर वृद्ध व्यक्ति को आजीवन एंटीहाइपरटेंसिव (AHT) दवाओं की आवश्यकता हो। “सामान्य रक्तचाप” की परिभाषा बार-बार घटायी गयी, जिससे करोड़ों स्वस्थ लोग भी रोगी घोषित कर दिये गये।
यहां, वैसे तो विज्ञान के छात्र होने के नाते मुझे बीपी के इतिहास पर प्रकाश डालना चाहिए था, लेकिन मैं यह बीपी के गिरते स्वास्य पर थोड़ा प्रकाश डालूंगा। USA की एक स्वास्थ्य संस्था NIH ने 1973 ज्वाइंट नेशनल कमेटी गठित की, जिसका उद्देश्य बीपी के न्यूनतम मानक का पुनः परीक्षण करना था। वैसे यह बात पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पायी कि इस गठन की प्रेरणा क्या थी, लेकिन कमेटी की रिपोर्ट 1976 में आयी। और आशानुरूप बीपी के स्वास्थ्य में पहली गिरावट हुई। और अभी तक 8 JNC गठित हो चुकी हैं, 8वीं की रिपोर्ट 2006 में आयी। इसी में एक चिकित्सा शास्त्र में नया शब्द आया “प्रीहाइपरटेंसिव”।
सनद रहे वैसे इस क्षेत्र में हाइपोटेंसिव शब्द पहले से ही था। लेकिन यह “प्री हाइपरटेंसिव” अब एक दवा लेने योग्य एक बीमारी हो गयी। इन दवाओं के दुष्प्रभाव गंभीर हैं- हाइपोटेंशन, इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन, हृदय गति अवरोध, यकृत विषाक्तता और हृदय विफलता तक। शोध बताते हैं इन दवाओं से जीवनरक्षा में कोई उल्लेखनीय लाभ नहीं हुआ।
दिलचस्प यह है कि जॉइंट नैशनल कमिटी (JNC) की स्थापना, जिसने विश्वभर में रक्तचाप मानक तय किये, अमेरिकी NIH और उससे जुड़े फार्मा-प्रायोजित अनुसंधानों से प्रभावित रही। “प्री-हाइपरटेंशन” जैसी श्रेणियाँ जोड़कर स्वस्थ जनसंख्या को औषधि-निर्भर बना दिया गया। यह प्रश्न अब पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है- क्या उच्च रक्तचाप वास्तव में महामारी है, या यह फार्मा उद्योग, दिशा-निर्देश समितियों और बाज़ारीकृत चिकित्सा नीति की सम्मिलित रचना है?

डॉ. सुज़ैन ओपैरिल (Dr. Suzanne Oparil) ने गढ़ा था ‘प्री-हाइपरटेंशन’ जब वो JNC-7 (Joint National Committee-7) की सदस्य थीं। इसे रिपोर्ट में परिभाषित किया था- “120-130 mmHg सिस्टोलिक और 80-89 mmHg डायस्टोलिक रक्तचाप को ‘प्री-हाइपरटेंशन’ कहा जाएगा।”
“प्री-हाइपरटेंशन” शब्द जिसकी रचना JNC-7 की प्रमुख सदस्य डॉ. सुज़ैन ओपरिल (Suzanne Oparil) ने की थी, जिनके अनेक संबंध बड़ी दवा कंपनियों जैसे Abbott, Merck, Pfizer, Novartis, Sanofi, Wyeth-Ayerst, Bristol-Myers Squibb, AstraZeneca आदि से रहे। वे इन कंपनियों से शोध अनुदान, सलाहकार पद और पारिश्रमिक प्राप्त करती थीं। इसी प्रकार अन्य प्रमुख JNC विशेषज्ञ- डॉ. अराम चोबेनियन, डॉ. एडवर्ड फ्रोहलिक, डॉ. नॉर्मन कपलान, डॉ. जॉन लाराघ और डॉ. विलियम कुशमैन भी Merck, Pfizer, Novartis, Sanofi, और AstraZeneca जैसी कंपनियों से किसी न किसी रूप में जुड़े रहे। इन सभी ने ऐसे मानक तय किये, जिनसे सामान्य या सीमा पर स्थित रक्तचाप को भी “जोखिमपूर्ण” श्रेणी में शामिल कर दिया गया।
JNC समितियाँ, जो मूलतः NIH (NHLBI) के अधीन गठित थीं, धीरे-धीरे फ़ार्मा-प्रायोजित शोधों से प्रभावित होने लगीं। Framingham और ALLHAT जैसे अध्ययनों में निजी दवा कंपनियों की गहरी भागीदारी रही, जिनका सीधा आर्थिक हित रक्तचाप-नियंत्रक दवाओं (ACE inhibitors, ARBs, β-blockers, CCBs, diuretics) के बढ़ते प्रयोग से जुड़ा था। इस प्रक्रिया में चिकित्सा दिशा-निर्देश “सार्वजनिक स्वास्थ्य” से आगे बढ़कर “फार्मा-व्यापार रणनीति” का साधन बन गये, जहाँ सामान्य जनसंख्या का बड़ा हिस्सा धीरे-धीरे औषधि-निर्भर घोषित कर दिया गया।
लेकिन इसमें कई समस्याएं हैं। पहली तो यह कि ये बीपी की दवा आपकी शादी जैसी है, एक बार लेना शुरू किया तो उम्र भर निभाना पड़ेगा। आप इसे बीच में नहीं छोड़ सकते। इसके अलावा अन्य साइड इफेक्ट भी हैं। अर्थात आपको उन दुष्प्रभावों के साथ जीना पड़ता है। वैसे यह बता दें और डॉक्टर साहब भी बताएंगे, कि बीपी का बढ़ना-घटना कोई स्थाई घटना नहीं होता है और यह हर समय बदलता राहता है। बीपी की दवा बीपी न बढ़ने की गारंटी भी नहीं है। एक एथलीट जब खेलता है, तो उसका बीपी सामान्य से कई गुना बढ़ जाता है। हालंकि अब इसे भी काफ़ी काम कर दिया गया है।
मैं कोई बीपी ठीक करने का नुस्ख़ा नहीं बता रहा हूं, लेकिन किसी डॉक्टर की निगरानी में आप इसे कर सकते हैं। अगर आपकी आहारनाल साफ़-सुथरी है, अर्थात आपका पाचन और मल निष्कासन सुचारू रूप से चल रहा है और आपकी किडनी ठीक से काम कर रही है तो आपको बीपी को समस्या नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा अगर आप पानी घूंट-घूंट कर पीते रहेंगे, जैसा कि प्रधानमंत्री जी ने सिखाया था, तब भी आप इससे बच सकते हैं।
ध्यान रहे मैं यह कोई दवा कि पर्ची नहीं लिख रहा हूँ, और यह भी सत्य है कि बीपी समस्या है, जिसका मूल कारण हमारी दिनचर्या और खान पान है। लेकिन हर बुज़ुर्ग को बीपी है ही है, यह भी ग़लत है। यह केवल मैंने विमर्श के लिए कुछ तथ्य दिये हैं। आप ये नहीं कह सकते कि हाई बीपी के नुक़सान मैंने नहीं बताये। वो आप फ़ीस देकर किसी भी डॉक्टर साहब से जान सकते हैं।

डॉ. आलोक त्रिपाठी
2 दशकों से ज्यादा समय से उच्च शिक्षा में अध्यापन व शोध क्षेत्र में संलग्न डॉ. आलोक के दर्जनों शोध पत्र प्रकाशित हैं और अब तक वह 4 किताबें लिख चुके हैं। जीवविज्ञान, वनस्पति शास्त्र और उससे जुड़े क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले डॉ. आलोक वर्तमान में एक स्वास्थ्य एडवोकेसी संस्था फॉर्मोन के संस्थापक हैं।
Share this:
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Reddit (Opens in new window) Reddit
- Click to share on Pinterest (Opens in new window) Pinterest
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Bluesky (Opens in new window) Bluesky
