तह-दर-तह (विश्व साहित्य पर दृष्टि) शिकारी व गौरैया निशांत कौशिक तुर्की में गेय लोक-कविता (Türkü) और परिकथा (Masallar)की एक समृद्ध परंपरा है। प्रस्तुत ‘गौरैया और शिकारी’ कहानी भी...
उर्दू के शाहकार फ़साना-ए-आज़ाद डॉक्टर मो. आज़म “आपने ‘फ़साना-ए-अज़ाद’ क्या लिखा, ज़बान-ए-उर्दू के हक़ में मसीहाई की है।”-अब्दुल हलीम शरर “उर्दू ज़बान समझने के लिए ‘फ़साना-ए-आज़ाद’ पढ़ना चाहिए।”– बेगम...
बातचीत अच्छी शायरी ही चलती है, टिकती है ‘जितनी बंटनी थी बंट चुकी ये ज़मीं/अब तो बस आसमान बाक़ी है’, ऐसे शेरों से देश व दुनिया में शिनाख़्त रखने वाले...
गूंजती आवाज़ें आभासी दुनिया और इलियास राहत सलीम सरमद नसीरुद्दीन शाह के किसी इंटरव्यू में सुना था- “अगर आप थिअटर आर्टिस्ट हैं और कोई बड़ा प्लेटफ़ॉर्म नहीं मिल रहा...
शेरगोई “थोड़ा है, थोड़े की ज़रूरत है” विजय कुमार स्वर्णकार जिस तरह शे’र में भर्ती के शब्द जाने-अनजाने अपनी जगह बना लेते हैं, उसी तरह कभी-कभी कुछ ज़रूरी शब्द...
तख़्तीसरोकार ‘बोलने’ के पक्ष में शीर्ष न्यायालय, बड़े काम के बोल आब-ओ-हवा प्रस्तुति “कहे या लिखित शब्दों का असर उन लोगों के मानकों से नहीं आंका जा सकता जिनमें...
तख़्ती बच्चे कोरे कागज़ नहीं आलोक कुमार मिश्रा शिक्षाविदों ने ऐसी मान्यताओं को तार्किक आधार पर सिरे से ख़ारिज किया है जो बच्चों को महज कोरा कागज़ समझती...