patras bokhari book
पाक्षिक ब्लॉग डॉ. आज़म की कलम से....

पीटर वॉटकिन्स बने पतरस बुखारी और उर्दू हुई मालामाल

               प्रथम प्रकाशन 1930 में “मज़ामीन-ए-पतरस”। अहमद शाह बुख़ारी (क़लमी नाम पतरस बुख़ारी) के हास्य-व्यंग्य का संकलन है। “मज़ामीन-ए-पतरस” में 11 लेख हैं। अंग्रेज़ी के साहित्य का अध्ययन उनके अनोखे व्यंग्य लेखों के मुआमले में बहुत काम आया। दिलचस्प बात ये है पतरस अपने लेखों में स्वयं का उपहास उड़ाते हैं और कुशलता से घटनाओं को ऐसे बयान करते हैं जैसे वह ख़ुद गवाह रहे हों। इस संकलन में सम्मिलित “कुत्ते” और “मरहूम की याद में” उनके शाहकार लेख माने जाते हैं। किताब की संक्षिप्त प्रस्तावना पूरी किताब से ज़्यादा दिलचस्प है। जो यूं है:

“आपके लिए…
चलिए ज़रा पढ़िए तो
अगर ये किताब आपको किसी ने मुफ़्त भेजी है तो मुझ पर एहसान किया है। अगर आपने कहीं से चुरायी है तो मैं आपके ज़ौक़ (सुरुचि) की दाद देता हूँ। आपने पैसों से ख़रीदी तो मुझे आपसे हमदर्दी है, अब बेहतर यही है कि इस किताब को अच्छा समझकर अपनी हिमाक़त को हक़बजानिब (न्यायसंगत) साबित करें। इन मज़ामीन के अफ़राद (लोग) सब ख़याली (काल्पनिक) हैं। हत्ता कि (यहां तक कि) जिनके लिए वक़्तन फ़ौक़तन (यदा कदा) वाहिद मुतकल्लिम का सीग़ा (एक वचन) इस्तिमाल किया गया है वो भी हर-चंद कहें कि है, नहीं है, आप तो इस नुक़्ते (बारीक बात) को अच्छी तरह समझते हैं। लेकिन पढ़ने वाले ऐसे भी हैं जिन्होंने इससे पहले कोई किताब नहीं पढ़ी उनकी ग़लतफ़हमी दूर हो जाये तो क्या हर्ज है। जो साहिब इस किताब को किसी ग़ैर मुल्की ज़बान में तर्जुमा करना चाहें वो पहले इस मुल्क के लोगों से इजाज़त हासिल करें- पतरस”

पतरस के मज़ामीन में सबसे मशहूर मज़मून “कुत्ते” है, जिसको उत्कृष्ट साहित्य में स्थान प्राप्त है।

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पतरस बुख़ारी: नाम ही काफ़ी है

असल नाम सय्यद अहमद शाह था, बतौर लेखक पतरस बुख़ारी नाम से प्रसिद्ध। 1 अक्तूबर 1898 को पेशावर में पैदा हुए। पिता का नाम सय्यद असदुल्लाह शाह बुख़ारी था। देहांत पाँच दिसंबर 1958 में 60 साल की उम्र में न्यूयॉर्क अमरीका में हुआ। वहीं दफ़्न हैं।

उच्च शिक्षा गर्वनमैंट कॉलेज यूनिवर्सिटी लाहौर से हासिल की। उर्दू और अंग्रेज़ी दोनों में महारत थी। गर्वनमैंट कॉलेज लाहौर के प्रिंसिपल का पद भी सँभाला। आपके शागिर्दों में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, नून मीम राशिद, कन्हैया लाल कपूर, हफ़ीज़ होशयारपुरी वग़ैरा शामिल थे। ‘हिलाल-ए-इमतियाज़’, ‘कैंपेनियन ऑफ़ दी आर्डर ऑफ़ दी इंडियन एम्पायर’ से सम्मानित किये गये।

पढ़ाने के लिए अमरीका की यूनीवर्सिटियों में जाते थे और वहीं वफ़ात पायी। दिल का रोग पैदाइशी था और यही मौत का कारण बना।

उन्होंने ऑल इंडिया ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का नाम ऑल इंडिया रेडियो मंज़ूर करवाया, जिसको संक्षेप में AIR कहा जाता है और इसकी पहचान बन जाने वाला नग़मा भी चुना जो अब भी बजाया जाता है। ऑल इंडिया रेडियो के वो डायरेक्टर जनरल बने।

पतरस बुख़ारी आलोचना Peter Watkins के क़लमी नाम से लिखते थे। यही पीटर लफ़्ज़ पतरस बना। बाक़ौल प्रोफ़ैसर रशीद अहमद सिद्दीक़ी “अगर हम ज़ेह्न में किसी ऐसी महफ़िल का नक़्शा जमाएँ जहां तमाम मुल्कों के मशाहीर (प्रसिद्ध साहित्यकार) अपने-अपने शे’र-ओ-अदब का तआरुफ़ (परिचय) कराने के लिए जमा हों तो उर्दू की तरफ़ से बिलइत्तिफ़ाक़ (सर्वसम्मति) किसको अपना नुमाइंदा मुंतख़ब (चुनाव) करेंगे? यक़ीनन बुख़ारी को। बुख़ारी ने इस क़िस्म के इंतिख़ाब के मयार (स्तर) को इतना ऊंचा कर दिया है कि नुमाइंदों का हलक़ा (घेरा) मुख़्तसर होते हुए मादूम (विलुप्त) होने लगा है। ये बात किसी वसूक़ (विश्वास) से ऐसे शख़्स के बारे में कह रहा हूँ जिसने उर्दू अदब में सबसे कम सरमाया छोड़ा है लेकिन कितना ऊंचा मुक़ाम पाया।”

azam

डॉक्टर मो. आज़म

बीयूएमएस में गोल्ड मे​डलिस्ट, एम.ए. (उर्दू) के बाद से ही शासकीय सेवा में। चिकित्सकीय विभाग में सेवा के साथ ही अदबी सफ़र भी लगातार जारी रहा। ग़ज़ल संग्रह, उपन्यास व चिकित्सकी पद्धतियों पर किताबों के साथ ही ग़ज़ल के छन्द शास्त्र पर महत्पपूर्ण किताबें और रेख्ता से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग़ज़ल विधा का शिक्षण। दो किताबों का संपादन भी। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी सहित अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं से सम्मानित, पुरस्कृत। आकाशवाणी, दूरदर्शन से अनेक बार प्रसारित और अनेक मुशायरों व साहित्य मंचों पर शिरकत।

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