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स्मरणांजलि विवेक सावरीकर मृदुल की कलम से....

असरानी: हास्य अभिनेता के छिपे दर्द को कौन समझा!

            अब असरानी जी के आगे स्वर्गीय लिखना होगा। लेकिन क्या उनकी स्मृतियां कभी दिवंगत हो सकेंगी! ‘शोले’ का अंग्रेज़ों के ज़माने का जेलर हम जितनी बार परदे पर देखेंगे, वो पूरी ज़िंदादिली से ताउम्र हमसे रूबरू होता रहेगा। असरानीजी की कॉमेडी टाइमिंग, उनके पंच और उनकी नासाग्र हल्की हाय पिच आवाज़ उन्हें हममें ज़िंदा रखेगी। विगत वर्ष संयोग से नीतू सिंह और सनी कौशल की निर्माणाधीन फ़िल्म “लैटर्स टू मिस्टर खन्ना” में इंदौर और गोरेगांव फ़िल्मसिटी में उनके साथ अभिनय का सुयोग मिला था। पता नहीं वो फ़िल्म रिलीज़ कब हो, लेकिन उस एक-डेढ़ घंटे की शॉट टेकिंग के दौरान मुझे उनसे बातचीत करने का बढ़िया मौका मिला। उनके साथ की पूरी बातचीत में वे बहुत सौम्य और विनयशील नज़र आये। ब्रेक में जब उनके लिए स्पॉट दादा बड़े से मग में चाय लेकर आये, तो वे तुरंत मेरी ओर इंगित कर बोले- ‘अरे इनके लिए भी लाइए’। शूटिंग के बाद हम उनको उनकी कार तक विदा करने पहुंचे थे। इस ‘हम’ में भोपाल के मशहूर अभिनेता व रंग निर्देशक बालेंद्र सिंह बालू और कुछ साथी और भी थे। शानदार मर्सिडीज़ में बैठकर भी बाक़ायदा कार का शीशा नीचे कर उन्होंने हमारा अभिवादन स्वीकार किया और सदा के लिए हमें अपने मोहक व्यक्तित्व के पाश में बांध कर चले गये।

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गोवर्धन असरानी पर हास्य अभिनेता का टैग ज़रूर लगा और “शोले” के अंग्रेज़ीदां जेलर ने उनको एक कॉमेडियन के तौर पर जग मान्यता दिलवायी। फिर भी देखा जाये तो असरानी एक संपूर्ण चरित्र अभिनेता थे। अनेक फ़िल्मों में उनकी अभिनय क्षमता उनके सह-कलाकारों और नायकों पर भी भारी पड़ी है। मसलन फ़िल्म ‘अभिमान’ में अमिताभ बच्चन (गायक सुबीर कुमार) के मित्र सह मैनेजर चंद्रू के रोल में असरानी का अभिनय देखने लायक़ है। जब सुबीर कुमार अपनी पत्नी उमा (जया बच्चन) से गायकी में कमतर रहने की खीझ उसे अपमानित कर निकालता है, तो असरानी का उसे लताड़ने का अंदाज़ बेहद सहज लगता है। वे इन दृश्यों में अपने व्यक्तित्व को इतना बड़ा बना देते हैं कि नायक अपने बड़े क़द के बावजूद बहुत बौना लगता है। इसी तरह बासु चटर्जी की फ़िल्म “छोटी-सी बात” में प्रभा (विद्या सिन्हा) पर इंप्रेशन मारकर अरुण याने अमोल पालेकर को नर्वस कर देने वाले नागेश्वर के अतरंगी किरदार को भी असरानी ने इतना प्रभावी बनाया है कि वो गुदगुदाते हुए भी कहीं भी ओवर द टॉप नहीं लगते।

इसी तरह फ़िल्म “चुपके-चुपके” और “कोशिश” के असरानी याद रह जाते हैं। असरानी की अभिनय शैली का विश्लेषण करें तो संवाद को कुछ ज़ोर देकर और ऊपर की पट्टी में बोलने से उनके किरदार में एक चुटीलापन भरता है। मगर आंगिक अभिनय में वे हर चरित्र के हिसाब से ही चाल-ढाल गढ़ते रहे। इसीलिए उनके हर फ़िल्म के निभाये चरित्र में नयापन है। वो अपने समकालीन हास्य अभिनेताओं की तरह जमे-जमाये जुमले नहीं उछालते या अंगविक्षेप नहीं करते।

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असरानी ने हास्य अभिनेता के रूप में नाम कमाने के साथ गुजराती फ़िल्मों में भी काफ़ी काम किया। उन्होंने अनेक व्यवसाय भी किये। कुछ चले, कुछ नहीं मगर 1977 की अपनी ही बनायी फ़िल्म ‘चला मुरारी हीरो बनने’ की नाकामयाबी ने उन्हें विषाद से भर दिया। इस फ़िल्म के लिए वे अपने समय के बड़े अभिनेताओं को लेना चाहते थे। लेकिन एक कॉमेडियन के निर्देशन में कोई भी काम करने को राज़ी नहीं हुआ। आख़िर असरानी ने ही फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभायी। असरानी ने इस फ़िल्म में बहुत स्वाभाविक अभिनय के साथ एक दृश्य में दिलीप कुमार, देवानंद आदि की बेहतरीन मिमिक्री भी की है। मगर अफ़सोस फ़िल्म नहीं चल सकी और ये बात उनके मन में घर कर गयी कि अगर अमिताभ, धर्मेंद्र, जितेंद्र जैसा कोई मशहूर नायक होता तो फ़िल्म न पिटती। शायद यही वजह रही कि अपनी अंतिम यात्रा के लिए उन्होंने किसी भी फ़िल्मी हस्ती को न बुलाने की इच्छा ज़ाहिर की थी। उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान हुआ और बॉलीवुड की स्वार्थपरकता एक बार फिर उजागर हो गयी। मगर यह मायानगरी इस हास्य अभिनेता के भीतर छिपे दर्द को कितना समझ पायी, यह कहना मुश्किल है।

(तस्वीरें: असरानी के साथ लेखक और दूसरे चित्र में असरानी के कुछ यादगार किरदारों की झांकी)

विवेक सावरीकर मृदुल

सांस्कृतिक और कला पत्रकारिता से अपने कैरियर का आगाज़ करने वाले विवेक मृदुल यूं तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्ववियालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं,पर दिल से एक ऐसे सृजनधर्मी हैं, जिनका मन अभिनय, लेखन, कविता, गीत, संगीत और एंकरिंग में बसता है। दो कविता संग्रह सृजनपथ और समकालीन सप्तक में इनकी कविता के ताप को महसूसा जा सकता है।मराठी में लयवलये काव्य संग्रह में कुछ अन्य कवियों के साथ इन्हें भी स्थान मिला है। दर्जनों नाटकों में अभिनय और निर्देशन के लिए सराहना मिली तो कुछ के लिए पुरस्कृत भी हुए। प्रमुख नाटक पुरूष, तिकड़म तिकड़म धा, सूखे दरख्त, सविता दामोदर परांजपे, डॉ आप भी! आदि। अनेक फिल्मों, वेबसीरीज, दूरदर्शन के नाटकों में काम। लापता लेडीज़ में स्टेशन मास्टर के अपने किरदार के लिए काफी सराहे गये।

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