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मध्य प्रदेश के 70वें स्थापना के अवसर पर मप्र गौरव गान की चयन प्रक्रिया, इन गीतों की परंपरा और औचित्य को लेकर एक अध्ययन...
भवेश दिलशाद की कलम से....

मध्य प्रदेश गौरव गीत - परंपरा, प्रश्न और निहितार्थ

             कविता का प्रमुख तेवर व्यंजनार्थ या लक्षणार्थ में माना गया है। ऐसा भी नहीं है कि अभिधा में कविता संभव नहीं। लेकिन मुश्किल तो है। अब अगर भक्ति गीतों, वंदना या गुणगान की परंपरा भारत में देखें तो अभिधा में बहुधा रचनाएं मिलती हैं। इनमें पौराणिक संदर्भों को विशेष अर्थों में ज़रूर पिरोया जाता रहा। यशगान संबंधी रचनाएं जो आधुनिक समय में रची जा रही हैं, उनमें काव्य तत्व कितना मिल पा रहा है, यह विचारणीय है।

देश के प्रति भक्तिभाव या देश के गुणगान करते गीतों की एक सुदीर्घ परंपरा रही है। इसी परंपरा में राज्यों के गुणगान, जयगानों का भी एक चलन दिखायी देता है। असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा जैसे राज्यों की उस फ़े​हरिस्त में मध्य प्रदेश का नाम भी प्रमुख है, जिन्होंने अपने आधिकारिक राज्य गौरव गीत घोषित किये हुए हैं।

कैसे बना मप्र का गौरव गान?

मध्य प्रदेश का आधिकारिक गीत अक्टूबर 2010 में घोषित किया गया था। यह गीत किसका हो, किस प्रक्रिया से चुना जाये जैसे कुछ सवाल पेश आये ही थे। शुरू से बात करें तो पहला सवाल है कि यह विचार कैसे शुरू हुआ। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग में उन दिनों ब्यूरोक्रैट मनोज श्रीवास्तव थे, जो ​अभी जापान प्रवास पर हैं इसलिए संक्षिप्त चर्चा ही हो सकी। वह बताते हैं चूंकि मध्यप्रदेश के समक्ष विशिष्ट और अद्वितीय पहचान का सवाल रहा और इसे लेकर एक आत्मीय भाव रचा जा सके, इस ख़याल से मध्यप्रदेश गीत का विचार उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समक्ष रखा। मुख्यमंत्री को विचार जंचा, तब मध्यप्रदेश पर केंद्रित एक संस्कृत गीत उज्जैन के श्रीनिवास रथ जी का संगीतबद्ध करवाया गया। उस संक्षिप्त गीत पर एक लघु फ़िल्म भी शासन स्तर से तैयार करवाकर प्रसारित की गयी। तब मुख्यमंत्री ने इच्छा रखी कि प्रदेश का गीत हिन्दी में होना चाहिए।

भोपाल के गीतकार वर्ग में शामिल रहने से यह पता चलता रहा है कि तब यह प्रक्रिया क्या थी। मध्य प्रदेश गीत के लिए एक विज्ञापन शासन स्तर से जारी किया गया था और प्रविष्टियां मंगवायी गयी थीं। बताया जाता है प्रविष्टियों में से जब कोई आशानुरूप न मिली, तब संस्कृति विभाग ने बालकवि बैरागी एवं विट्ठलभाई पटेल से गीत भेजने का निवेदन किया था। दोनों महानुभावों ने यह कहकर मना कर दिया कि वे प्रतियोगिता की प्रविष्टि के रूप में गीत नहीं भेजते। तब भोपाल ही नहीं, प्रदेश के स्थापित पत्रकार श्री महेश श्रीवास्तव जी से अनुरोध कर गीत लिखवाया गया था।

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हालांकि इस बारे में मनोज श्रीवास्तव के शब्द ये हैं “प्रतियोगिता में महेश श्रीवास्तव जी का गीत प्राप्त हुआ था और सबसे अच्छा पाया गया था। चूंकि उसमें लाड़ली लक्ष्मी आदि सरकारी योजनाओं का भी समावेश था इसलिए उन पंक्तियों को हटाने (ताकि गीत शाश्वत गौरव गान रहे तात्कालिकता से मुक्त) और उनके स्थान पर तीन पंक्तियां जोड़ने की अनुमति मैंने माँगी थी, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकृति दी थी। फिर इसे संगीतबद्ध कर स्थापना दिवस कार्यक्रम में प्रसिद्ध गायक शान की आवाज़ में जारी करवाया गया था।”

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मध्य प्रदेश के तीन गौरव गीत

हालांकि यहां विचारणीय यह है कि प्रतियोगिता से पहले जब शासन ने संस्कृत के एक गीत को प्रमोट किया था, तब हिंदी के लिए प्रतियोगिता से पहले पूर्व लिखित गीतों की ओर क्यों नहीं निहारा गया। राजेंद्र अनुरागी जी भोपाल निवासी कवि थे, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर के मंचों पर ख्याति प्राप्त रही। अनुरागी जी ने मध्य प्रदेश का एक जयगान​ लिखा था, जो कक्षा पांचवी की पाठ्यपुस्तक सरस हिंदी काव्य नवाचार पुस्तक में संकलित रहा। इस गीत में मध्य प्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्य, भौगोलिक विशेषताओं, धार्मिक प्रतीकों, पौराणिक गाथाओं, लोकराग के साथ ही उद्योगों, हिंदी, महात्मा गांधी का ज़िक्र विशिष्ट रूप से है। छह अंतरों के इस गीत में से मंशानुसार अंश चुना भी जा सकता था। लेकिन इस गीत का रुख़ शासन ने किया कि नहीं, नहीं तो क्यों, हां तो चुनने में क्या बाधा रही जैसे सवाल बने हुए हैं।

क्या यह भी संभव था?

प्रतियोगिता से पहले क्या मध्य प्रदेश के गीतकारों से शासन व्यक्तिगत संपर्क कर सकता था? यह एक प्रक्रिया हो सकती थी। शासन स्तर पर ऐसे किसी विचार को मूर्त रूप देने के लिए नये सिरे से गीत लिखवाने की कवायद से पूर्व यह संभव था कि पहले से ही रची गयी किसी रचना को विचाराधीन लिया जाये।

भोपाल निवासी डॉ. रामवल्लभ आचार्य का कहना है, “मध्य प्रदेश पर केंद्रित मेरा गीत बहुत पहले रचा जा चुका था। हुआ यह कि मध्यप्रदेश गीत के चयन हेतु जारी विज्ञापन में रचनाकार से गीत की पांडुलिपि भेजने के साथ शर्त थी कि गीत को संगीतबद्ध करवाकर सीडी भी भेजी जाये। चूँकि आवश्यक धन की व्यवस्था नहीं थी, अतः मैं प्रविष्टि नहीं भेज सका था।”

प्रदेश ही क्या देश भर का सच क्या यह नहीं है कि यहां कवि या लेखक आर्थिक रूप से बहुत समर्थ न हैं और न रहे हैं। हिंदी के कवियों की और तिस पर छन्द के कवियों की बात हो तो और भी दयनीय हालत सामने आती है। यह माहौल है ही नहीं कि कविता के भरोसे आप जीवन जी सकें। ऐसे में शासन की ऐसी खर्चीली शर्त ने आचार्य जी जैसे कितने ही गीतकारों की उपेक्षा करने का कथित ‘लोकतांत्रिक’ तरीक़ा अपनाया।

बहरहाल, मनोज श्रीवास्तव जी की कवायद के बाद महेश श्रीवास्तव जी के गीत को आधिकारिक मध्य प्रदेश गान के रूप में घोषित किया गया, जिसे आदेश श्रीवास्तव द्वारा संगीतबद्ध किया गया था। यह पर्याप्त ख्यात भी हो चुका है। अब मैं यह विचार भी करना चाहता हूं कि ऐसे तमाम उपलब्ध गीतों में ‘अच्छा’, ‘बुरा’ का आधार क्या हो सकता है?

गौरव गानों का काव्य पक्ष

मध्य प्रदेश को केंद्र में रखकर रची गयी इन रचनाओं में मूलत: संगीत, तुक और विवरण प्रधान लक्षण दिखायी देते हैं। काव्योचित अर्थवत्ता, समकालीनता या तेवर से इनका वास्ता समझना समय व्यर्थ करना है। एक तरह से ये विज्ञापन की तरह हैं। इन गीतों का प्रमुख उद्देश्य सरकारी या ग़ैर सरकारी समारोहों की सांगीतिक भव्यता में इज़ाफ़ा करना ही है। ऐसे गीतों का और कोई औचित्य यदि ढूंढ़ा जाये तो बच्चों को प्राथमिक कक्षाओं में राज्य के गुणों से परिचित करवाना एक मंतव्य संभव है।

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मध्य प्रदेश के तीन गौरव गीत

अब जिन तीन गीतों पर हमने चर्चा की है, उन पर एक संक्षिप्त चर्चा की जाये तो हम देखते हैं कि नर्मदा, महाकाल, खजुराहो जैसे प्रतीक सभी में हैं। अनुरागी जी के गीत में दंडक, मालवा माटी, लोपामुद्रा जैसे प्रतीक आये हैं, जो बाक़ी दो गीतों में नहीं मिलते। महेश जी के गीत में भीमबैठका, अमरकंटक जैसे प्रतीक हैं, जो बाक़ी दो गीतों में नहीं है और महेश जी ने “कविता, न्याय, वीरता, गायन, सब कुछ यहां विशेष है” जैसी पंक्ति देकर बहुत कुछ समेटने की चेष्टा दिखायी है। वहीं आचार्य जी का गीत इन दोनों गीतों की तुलना में ​अधिक विस्तार लिये हुए है। इसमें मेकल, क्षिप्रा, चंबल, बेतवा, ओरछा, मांडू, बुंदेले, अहिल्या, दुर्गावती, अवंतिबाई, कोल, किरात, सहरिया, भील, कोरकू, गौंड जैसे अनेक संदर्भ और प्रतीक हैं जो शेष दो गीतों में अनुपलब्ध हैं।

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कुल मिलाकर सार यह है कि मध्य प्रदेश गुणगानों में बड़े स्तर पर समानता है क्योंकि प्रकृति, इतिहास, पौराणिकता और लोक के संदर्भों को ही इसमें बखाना जाना ध्येय रहा है। तो यह पुनरावृत्ति तो विडंबना है ही। आलोक श्रीवास्तव समेत इस समय में भी जो गीतकार इस तरह के गीत लिखे जा रहे हैं, उनमें भी इसी तरह का दोहराव है। अशेष, विशेष के साथ प्रदेश की तुकबंदी भी सुनने या पढ़ने वाले को खिन्न करने लगती है।

सुख का दाता सब का साथी शुभ का यह संदेश है
माँ की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेश है

महेश जी रचित गीत में मां की गोद और पिता का आश्रय जैसे शब्दों ने इसे एक अलग सुर दिया है। जैसे विज्ञापनों में प्रॉडक्ट को भावनाओं के साथ जोड़े जाने का एक चलन शुरू हुआ, यह ठीक उसी तरह का प्रयास है। हालांकि यह किसे कितना जंचता है? सबका व्यक्तिगत अनुभव हो सकता है। तो अनुरागी जी के गीत में “भारत भर के लोग यहां हैं” और “हृदय देश में बसा हुआ है और हृदय में देश” जैसी पंक्ति एक ध्रुव भाव देती है। अंतत: इन सभी गीतों में तुकबंदी वाली कविता का आनंद है, बस। बच्चों को अगर कविताई के ढंग से मध्य प्रदेश का पूरा सामान्य ज्ञान दिया जाना हो, तो यहां चर्चा में लायी गयीं तीन-चार रचनाओं में से, मैं जो श्रेष्ठता क्रम तय करना चाहूंगा, वह होगा आचार्य जी, अनुरागी जी, महेश जी और फिर अन्य द्वारा रचित गीत।

लेख को समाप्त करते हुए कहना चाहता हूं कि इस तरह की रचनाओं में चूंकि कविता के प्रमुख तेवर होते नहीं हैं इसलिए मैं इन्हें ज़रूरी समझता ही नहीं हूं। फ़िल्मी गीत ‘ऐ मेरे प्यारे वतन’ याद कीजिए। कहानी के अनुसार यह एक अफ़गानी पात्र हिंदोस्तान में रहते हुए अपनी मातृभूमि को याद करते हुए गा रहा है। यहां ‘वतन’ शब्द अपनी मिट्टी के लिए चुना गया ताकि यह हर मनुष्य का गीत बन सके। इस शब्द से न केवल सरहदों में बंटे अपने देश बल्कि आप अपने गांव, अपने शहर तक को आवाज़ दे रहे हैं। तो यह है कविता का विचार। इधर, हम इस तरह के गीतों से अपनी पहचान को छोटे स्तर पर क्यों स्थापित करने पर आमादा हैं। एक मनुष्य का अपने आप को किसी देश का निवासी/नागरिक कहना वैसे ही लघुतर पहचान है, तिस पर उस देश के भीतर किसी प्रदेश का कहना, (धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, वर्ग आदि में तो हम और भी बंटे हुए हैं ही) ख़ुद को और घटाना है। गली, मोहल्ले के आधिकारिक गान घोषित करने की तरफ़ जाना क्यों? विज्ञापन की सरकारी कवायद को हम अपने विचार और कला बोध तक क्यों ले जाएं, मैं यह सोचना चाहता हूं।

भवेश दिलशाद, bhavesh dilshaad

भवेश दिलशाद

क़ुदरत से शायर और पेशे से पत्रकार। ग़ज़ल रंग सीरीज़ में तीन संग्रह 'सियाह', 'नील' और 'सुर्ख़' प्रकाशित। रचनात्मक लेखन, संपादन, अनुवाद... में विशेष दक्षता। साहित्य की चार काव्य पुस्तकों का संपादन। पूर्व शौक़िया रंगमंच कलाकार। साहित्य एवं फ़िल्म समालोचना भी एक आयाम। वस्तुत: लेखन और कला की दुनिया का बाशिंदा। अपनी इस दुनिया के मार्फ़त एक और दुनिया को बेहतर करने के लिए बेचैन।

2 comments on “मध्य प्रदेश गौरव गीत – परंपरा, प्रश्न और निहितार्थ

  1. बहुत बढ़िया लिखा है आपने। अभी तक इस तरह प्रदेश के गौरव गान या किसी विख्यात व्यक्तित्व के गौरव गान पर ऐसी बारीकी से अध्ययन नहीं किया गया होगा।
    विशेष तौर पर काव्यात्मकता के दृष्टिकोण से तो ध्यान नहीं दिया जाता क्योंकि भावपक्ष प्रबल रखा जाता है।

  2. बहुत बढ़िया नीर क्षीर विवेचन किया है…तुकबंदी से कोई गीत महान नहीं बन जाता..!!

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