गीत तब

गीत तब बहुत दिन से नहीं आये घरकहो अनवर क्या हुआ आ गया क्या बीच अपने भीछः दिसम्बर क्या हुआ मैं कहाँ हिन्दू, मुसलमां तू कहाँ थासच मोहब्बत के...

ग़ज़ल अब

ग़ज़ल अब आपकी चौखट से होकर जो भी दीवाना गयाशाइर-ए-आज़म हुआ दुनिया में पहचाना गया हाय वो रस्ता कि जिससे छिन गये बूढ़े दरख़्तहाय को राही जो इस पर...

ग़ज़ल तब

ग़ज़ल तब कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीचहम भी मुजरिम की तरह ख़ामोश हैं यारों के बीच क्या कहें किसने बहारों को ख़िज़ाँ-सामाँ कियादेखने में...

समय से परे टैगोर की संगीत रचनाएं

समय से परे टैगोर की संगीत रचनाएं           स्पॉटिफ़ाइ एल्गोरिदम और टिकटॉक ट्रेंड के युग में, असंभव लग सकता है कि एक सदी से भी पहले रचे गये संगीत...

द्वंद्व के वैभव की कथा चेखव का ‘द डुएल’

द्वंद्व के वैभव की कथा चेखव का ‘द डुएल’ एक उपन्यास मैंने कभी पढ़ा था, जिसकी शुरूआती पंक्तियों में ही यह कह दिया जाता है कि हमारा किरदार      चेखव...

तुम अपना रंजो-ग़म.. मुझे दे दो

तुम अपना रंजो-ग़म.. मुझे दे दो फ़िल्म के पर्दे पर तो नायक की भूमिका कई निभाते हैं पर असल जीवन में नायक बहुत कम लोग हो पाते हैं। प्रेम...

डिप्टी नज़ीर अहमद का तौबतुन्नसूह

डिप्टी नज़ीर अहमद का तौबतुन्नसूह           “मुझको तुम्हारे माँ-बाप होने से इनकार नहीं। गुफ़्तगू इस बात में है कि तुमको मेरे अफ़आल में ज़बरदस्ती दख़ल देने का इख़्तियार है...

ओरिजनल ‘एक चतुर नार’ एक गीत क़िस्से बेशुमार

ओरिजनल ‘एक चतुर नार’ एक गीत क़िस्से बेशुमार          आज जैसे ही कोई गुनगुनाता है- ‘एक चतुर नार करके सिंगार’, हमारी आँखों के आगे फिल्म पड़ोसन का मज़ेदार दृश्य...

भाषा : राजनीति, लोक और एआई युग के मुद्दे

भाषा : राजनीति, लोक और एआई युग के मुद्दे भारत के पीपल्स लिंंग्विस्टिक सर्वे के माध्यम से 780 भाषाओं का दस्तावेज़ीकरण करने वाले गणेश नारायणदास देवी सांस्कृतिक कार्यकर्ता, साहित्य...

ज़ालिम को रुसवा हम भी देखेंगे

ज़ालिम को रुसवा हम भी देखेंगे         तरक़्क़ी-पसंद तहरीक के इब्तिदाई दौर का अध्ययन करें, तो यह बात सामने आती है कि तरक़्क़ी-पसंद शायर और आलोचक ग़ज़ल विधा से...