भाषाओं के साथ ही साहित्य, कला और परिवेश के बीच पुल बनाने की इस कड़ी में विशेष नज़र है अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़ी कुछ प्रमुख घटनाओं पर। नियमित स्तंभों की अपनी रौनक़ है, जो नये कोण और नयी दृष्टियां देते हैं। इसके साथ ही मक़बूल शायर राजेश रेड्डी से एक ख़ास बातचीत, शाहनाज़ इमरानी की याद और बीते कल की कुछ महत्वपूर्ण आवाज़ों का स्मरण इस अंक को समृद्ध करता है…