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संविधान दिवस पर प्रमोद दीक्षित मलय की कलम से....

संविधान ही है देश का मार्गदर्शक

            परिवार देश की लघुतम इकाई होती है। परिवार से मिलकर ही एक वृहत् समाज की रचना सम्भव होती है। प्रत्येक घर-परिवार एवं समाज में सदस्यों के कार्य व्यवहार एवं आचरण हेतु एक अलिखित नियमावली या संहिता होती है। परिवार एवं समाज अपने सदस्यों से अपेक्षा रखता है कि समाज की बेहतरी के लिए सभी जन इन नियमों का पालन करते हुए तालमेल एवं संगति से ही कार्य संपादन करेंगे। नियमानुकूल आचरण कर समाज की विकास धारा को गतिशील रखते हुए उसे समृद्धि प्रदान करेंगे। नियमों में आबद्ध लोक अपनी कार्य संस्कृति से सतत् ऊर्ध्वगामी यात्रा करता है। नियमानुशासित लोकाचरण से समाज में सद्वृत्ति, सद्नीति, शुचिता, सत्यान्वेषण, सहकार, समन्वय, सख्यभाव एवं सद्संस्कारों का बीजवपन, पल्लवन एवं फलन होता है और अराजकता, अनैतिकता, अशौच, अनीति के लिए कोई स्थान शेष नहीं होता। इन नियमों के परिनिष्ठित, परिमार्जित, प्रांजल लिखित स्वरूप को देश के संदर्भ में संविधान संज्ञा से अभिहित किया जाता है, जिसमें लोक की शक्ति निहित होती है और जो विधायिका से अनुमोदित होता है।

हम कह सकते हैं कि संविधान व्यष्टि से समष्टि की एक सुखाकांक्षी यात्रा है जिसमें लोक कल्याणकारी एवं समतामूलक समाज रचना के सूत्र आधार रूप में विद्यमान होते हैं। संविधान लोकमंगल, लोक सुख-समृद्धि एवं लोकचेतना का उद्घोष करता है। भारत में हम 26 नवम्बर को संविधान दिवस के रूप में मनाकर न केवल संविधान बनाने वाले डाॅ. भीमराव आम्बेडकर एवं अन्य विधिवेत्ताओं के योगदान एवं प्रयासों को स्मरण कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं बल्कि देश में एकता एवं अखंडता के लिए परस्पर बंधुत्व भाव के प्रसार के लिए भी संकल्पित हो कटिबद्ध होते हैं।

संविधान दिवस को राष्ट्रीय विधि दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। भारत का संविधान विश्व में सबसे बड़ा संविधान है। मूल संविधान में 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां थीं। वर्तमान में 448 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियां हैं, जो 25 भागों में विभाजित हैं। समिति ने भारतीय संविधान को पूर्ण करने में 2 वर्ष, 11 महीने, 18 दिन समय लिया और 166 दिन बैठक कर 114 दिन बहस की थी। संविधान सभा की पहली बैठक दिसम्बर 1946 में हुई थी। भारत का संविधान लचीला है और कठोर भी। लचीला इस संदर्भ में कि संसद कुछ क़ानूनों में सामान्य बहुमत से संशोधन कर सकती है लेकिन कुछ प्रावधानों में संशोधन हेतु राज्य सरकारों की सहमति एवं दो-तिहाई बहुमत आवश्यक है। संविधान में पहला संशोधन 1951 में हुआ था और अब तक 100 से अधिक संशोधन हो चुके हैं।

अपने संविधान को जानिए

संविधान की प्रस्तावना न केवल संविधान का परिचयात्मक खंड है बल्कि दार्शनिक आधार भी। प्रस्तावना का आरंभ वाक्यांश ‘हम भारत के लोग’ से होता है अर्थात संविधान लोक की शक्ति का प्रतिबिंब है। भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया है। समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्राप्त है। संविधान सभी नागरिकों को प्रतिष्ठा और अवसर की समता भी देता है। व्यक्ति की गरिमा एवं राष्ट्र की अखंडता हेतु वह बंधुत्वभाव को महत्वपूर्ण मानते हुए तदनुकूल आचरण की अपेक्षा करता है। नीति निर्देशक तत्व को संविधान की आत्मा कहा गया है।

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भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को, मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् 2006 विक्रमी को अंगीकृत किया गया था। इस दिन को स्मरण रखने और डॉ. भीमराव आंबेडकर के योगदान के प्रचार प्रसार हेतु भारत सरकार द्वारा 2015 में डॉ. आंबेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर मुंबई में उनकी स्टैच्यू आफ इक्वलिटी मेमोरियल की आधारशिला रखने के दौरान घोषणा की गयी थी। और तबसे प्रत्येक वर्ष 26 नवंबर को संपूर्ण देश में सरकारी और ग़ैर-सरकारी स्तर पर संविधान दिवस मनाकर देश भीमराव अंबेडकर को स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है। हालांकि आंबेडकर के प्रयासों को सामान्य जनमानस तक पहुंचाना एवं देश में भाईचारे की भावना बढ़ाने के उद्देश्य से यह दिवस हम पहले भी मनाते रहे हैं।

संविधान बनाने हेतु संविधान सभा की मांग सर्वप्रथम 1934 में की गयी थी, जिसे ब्रिटिश सरकार ने 1940 में मान लिया था। 29 अगस्त, 1947 को भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने की समिति की स्थापना की गयी थी और प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर चुने गये थे। संविधान सभा में विभिन्न रियासतों से 389 सदस्य थे लेकिन देश विभाजन के बाद 299 सदस्य ही बचे। उल्लेखनीय है कि हैदराबाद रियासत का कोई भी प्रतिनिधि संविधान सभा का सदस्य नहीं था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। संविधान निर्माण हेतु पहली बैठक संसद भवन में 9 दिसंबर, 1946 को हुई थी, जिसमें 207 सदस्य शामिल हुए थे। भारत का संविधान हस्तलिखित है, जिसे प्रेम बिहारी ने अंग्रेज़ी एवं हिंदी में विशेष शैली एवं तकनीक से लिखा है। मूल प्रति में 284 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं जिसके प्रत्येक पृष्ठ पर देश के प्रसिद्ध चित्रकारों के बनाये हुए आकर्षक मनोहारी पारम्परिक चित्र दृष्टव्य हैं।

हमारा संविधान लोक के लिए स्वतंत्रता, न्याय, समानता, बंधुत्व एवं सह-अस्तित्व का लक्ष्य लेकर चल रहा है, जिसे प्राप्त करने का उपाय लोकतांत्रिक समाजवादी राज्य रचना है। राजनीतिक न्याय के लिए एक व्यक्ति के एक वोट निश्चित है। उसका एक वोट सरकार के निर्माण में सहायक है और देश के विकास में भी। एक वोट का क्या महत्व है, यह हम प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की सरकार का 1 वोट से गिर जाने से समझ सकते हैं। लोक की समृद्धि में ही राष्ट्र की समृद्धि है और समृद्धि के लिए आवश्यक है परस्पर प्रेम, सद्भाव, माधुर्य; जहां ग़ैर-बराबरी के लिए कोई जगह न हो, जहां एक धरातल पर अवस्थित हो सभी अपनी पात्रता, क्षमता एवं रुचि-सुविधानुसार कार्य कर सकें। जहां मानव मानव में कोई भेदभाव की दीवार न हो। इसीलिए अस्पृश्यता एवं उपाधियों का उन्मूलन किया गया है। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को पूर्ण स्वतंत्रता देता है। लेकिन एक नागरिक की स्वतंत्रता एवं अधिकार दूसरे नागरिक की स्वतंत्रता एवं अधिकार के उल्लंघन का निषेध करता है। हमारी स्वतंत्रता अन्य की स्वतंत्रता में बाधक नहीं बन सकती। हम कल्याणकारी समतामूलक समाज रचते हुए देश को संपूर्ण विश्व में प्रेम, सद्भाव, अहिंसा, शांति, समृद्धि का ध्वजवाहक सिद्ध कर सकने में यथासामर्थ्य कटिबद्ध होकर कर्मरत होंगे, यही हम सबका शुभ-संकल्प होगा।

प्रमोद दीक्षित मलय

प्रमोद दीक्षित मलय

प्रमोद दीक्षित मलय की दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं जबकि वह क़रीब एक दर्जन पुस्तकों का संपादन कर चुके हैं। इनमें प्रमुख रूप से अनुभूति के स्वर, पहला दिन, महकते गीत, हाशिए पर धूप, कोरोना काल में कविता, विद्यालय में एक दिन, यात्री हुए हम आदि शामिल हैं। कविता, गीत, कहानी, लेख, संस्मरण, समीक्षा और यात्रावृत्त लिखते रहे मलय ने रचनाधर्मी शिक्षकों के स्वैच्छिक मैत्री समूह 'शैक्षिक संवाद मंच' स्थापना भी 2012 में की।

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