
- November 5, 2025
- आब-ओ-हवा
- 3
शख़्सियत को जानिए ख़ुदेजा ख़ान की कलम से....
दिल हूम हूम करे... भूपेन हज़ारिका की याद
भूपेन हज़ारिका उन कलाकारों में शुमार हैं, जिनके व्यक्तित्व व कृतित्व से लोक संस्कृति की एक अलग ख़ुशबू महकती है। उनके गीत सुनिए तो लगता है कोई ख़ुशबूदार लोबान धीरे-धीरे जलकर अपने धुएं और सुगंध से पूरे वातावरण को सुगंधित कर रहा है। ये अपने अंदर रूहानियत का अहसास है। उनका गीत-संगीत लोक संस्कृति, लोकजीवन, सभ्यता, इतिहास, मानवता और समूची प्रकृति की परिधि को स्पर्श करता है। इसीलिए उन्हें असमिया में ‘सुधा कोंथो’ यानी ‘मधुर कंठ’ कहा जाता है।
डॉक्टर भूपेन हज़ारिका का जन्म असम के तिनसुकिया ज़िले में सदिया नामक स्थान पर 8 सितंबर 1926 को हुआ था। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न गायक, गीतकार, संगीतकार, फ़िल्म निर्माता, कवि, लेखक के जीवन के बारे में आज उनकी पुण्यतिथि पर स्मृतियों के झरोखों से कुछ महत्वपूर्ण बातें पाठकों के साथ साझा कर रही हूं।
दस भाई-बहनों में सबसे बड़े थे भूपेन हज़ारिका। मां को देख-सुनकर गाने की प्रेरणा मिली। बचपन गुवाहाटी में बीता और 10 साल की उम्र से ही वह असमिया भाषा में गीत गाने लगे थे। मां गायिका थीं तथा उन्हें पारम्परिक असमिया संगीत की अच्छी जानकारी थी। फ़िल्म निर्माता ज्योतिप्रसाद अग्रवाल को उनकी आवाज़ पसंद आयी। 1939 में आयी फ़िल्म ‘इंद्र मालती’ में दो गाने बालक भूपेन की आवाज़ में गवाये गये। कोलकाता में पहला गाना रिकॉर्ड किया गया था। असमिया और भारतीय संस्कृति के गायक ने 13 वर्ष की उम्र में पहला गाना लिखा। यहीं से बालक भूपेन का गायक, संगीतकार और गीतकार बनने का सफ़र शुरू हुआ। नया ज्ञानोदय की साहित्यिक वार्षिकी (2015) के अंक में दिनकर कुमार के एक लेख के अनुसार 13 वर्ष की उम्र में ‘अग्नि युगर फिरंगति’ गाना लिखा था। इसी गाने को ज्योति प्रसाद ने 1946 में अपनी फ़िल्म में लिया था।

उन्होंने हिंदी सिने जगत में रुदाली, मिल गयी मंज़िल मुझे, साज़, दरमियां, गजगामिनी (शीर्षक गीत), दमन, क्यों जैसी कामयाब फ़िल्मों को गीत-संगीत से संवारा। अपने जीवन में 1000 गीत गाये और 15 किताबें लिखीं। स्टार टीवी के सीरियल डाॅन को प्रोड्यूस किया।
भूपेन दा के यादगार गानों में फ़िल्म रुदाली (1993) के ‘दिल हूम हूम करे’, ‘समय ओ धीरे चलो’, ‘झूठी-मूठी मितवा’ तो संगीत प्रेमियों की यादों में हैं ही, इनके अलावा भूपेन दा की प्रभावशाली आवाज़ को ‘गंगा तुम बहती हो क्यों’ गीत में महसूस किया जा सकता है। पंडित नरेंद्र शर्मा ने इस गीत का अनुवाद किया था। भूपेन दा ने अपनी आवाज़, क़लम और संगीत से संवारा तो देश दुनिया में इस गीत के प्रशंसक मिले। असमिया के साथ अन्य भाषाओं में भी इस गीत को प्रस्तुत किया गया। असम से आकर हिंदी में नाम कमाने वाले भूपेन हज़ारिका को फ़िल्म ‘गांधी टू हिटलर’ में महात्मा गांधी के पसंदीदा भजन ‘वैष्णव जन’ गाने के लिए भी याद किया जाता रहेगा।
व्यक्तिगत जीवन
भूपेन दा के पिताजी का नाम नीलकंठ और माता का नाम शांतिप्रिया था। जापान के वर्ल्ड एक्सपो में दिग्गज गायक, गीतकार, संगीतकार की संगीत यात्रा और उनकी कृतियों को भी प्रदर्शित किया गया था। वैश्विक पटल पर यह भारत की उपलब्धि कही जाएगी।
वर्ष 1942 में आर्ट्स विषय से इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने 1946 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति में एम.ए. किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद गुवाहाटी में ऑल इंडिया रेडियो में गाना शुरू कर दिया। असमिया और बांग्ला गानों का हिंदी में अनुवाद कर उसे अपनी आवाज़ दिया करते थे। गायकी और कविता के शौक़ के कारण कई भाषाओं का ज्ञान था। समय बीतने के साथ स्टेज परफॉर्मेंस भी देने लगे फिर पी.एच.डी. करने के लिए कोलंबिया यूनिवर्सिटी चले गये। वहां भूपेन दा की मुलाक़ात प्रियंवदा पटेल से हुई। दोनों में प्रेम हुआ और अमेरिका में ही साल 1950 में दोनों ने शादी कर ली। 1952 में पुत्र तेज हज़ारिका का जन्म हुआ और 1953 में हज़ारिका अपने परिवार के साथ भारत लौट आये। गुवाहाटी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने की जॉब की लेकिन बहुत समय तक नौकरी नहीं कर पाये, सो त्यागपत्र दे दिया। पैसों की तंगी के कारण प्रियंवदा ने इन्हें छोड़ दिया। इसके पश्चात हज़ारिका ने संगीत को ही अपना साथी बना लिया।
अभिनेत्री कल्पना लाजमी के साथ भूपेन दा के प्रेम संबंध 40 साल तक रहे। इसका ख़ुलासा लाजमी लिखित पुस्तक में हुआ, जो लाजमी की मृत्योपरांत चर्चा में आयी। उम्र में 23 साल बड़े भूपेन हज़ारिका पर लिखी जीवनी ‘भूपेन हज़ारिका-एज़ आई न्यू हिम’ के प्रकाशित होने के बाद इन संबंधों का रहस्योद्घाटन हुआ था।
सम्मानित कलाकार
संगीत में अद्भुत योगदान के लिए 1975 में इन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार, 1992 में सिनेमा जगत का सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के सम्मान, 2009 में असोम रत्न संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, 2011 में पद्मभूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों/सम्मानों से नवाज़ा गया। मरणोपरांत 2019 में भूपेन हज़ारिका को ‘भारत रत्न’ यानी देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाज़ा गया था। वह एक ऐसे दुर्लभ व्यक्तित्व रहे हैं, जिन्हें चारों सर्वोच्च नागरिक सम्मान यानी पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण भी प्राप्त हुए।
असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाला एक पुल भी है, इसे भूपेन हज़ारिका सेतु या ढोला-सदिया पुल कहते हैं। यह ब्रह्मपुत्र की सहायक लोहित नदी पर बनाया गया है। लोक संगीत को विश्व संगीत से जोड़ने वाले, मानवता और प्रेम का संदेश देने वाले भूपेन हज़ारिका (निधन 5 नवंबर 2011) को याद करते हुए हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ अपनी स्मृतियों में भी सदा के लिए संजोकर रखे हुए हैं।

ख़ुदेजा ख़ान
हिंदी-उर्दू की कवयित्री, समीक्षक और एकाधिक पुस्तकों की संपादक। अब तक पांच पुस्तकें अपने नाम कर चुकीं ख़ुदेजा साहित्यिक व सामाजिक संस्थाओं से सम्बद्ध हैं और समकालीन चिंताओं पर लेखन हेतु प्रतिबद्ध भी। एक त्रैमासिक पत्रिका 'वनप्रिया' की और कुछ साहित्यिक पुस्तकों सह संपादक भी रही हैं।
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शानदार लेख। जानकारी इस तरह से दी गई है कि अब लग रहा है कि मैं व्यक्तिगत रूप से हजारिका जी को जानती हूं। धन्यवाद। बहुत-बहुत बधाई।
भूपेन जी पर महत्वपूर्ण और आवश्यक जानकारीपरक प्रस्तुति।
साधुवाद!
दिल हूम हूम करे ने कितनों के दिल धड़का दिए हैं
भावपूर्ण ,जानकारीपरक, दिलचस्प आलेख।भूपेन दा का संगीत आज भी भाषा की दीवार तोड़ता है और हम सभी के बीच लोकप्रिय है।
खुदेगा जी को इस सुंदर आलेख के लिए साधुवाद।