
- September 14, 2025
- आब-ओ-हवा
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आब-ओ-हवा – अंक - 35
भाषाओं के साथ ही साहित्य, कला और परिवेश के बीच पुल बनाने की इस कड़ी में हिंदी दिवस पर कुछ विशेष चिंतन। इधर प्रख्यात लेखक अरुंधति रॉय की तस्वीर को लेकर जो विवाद है, उसके बहाने एक विशेष पड़ताल। साहित्य, कला, शिक्षा आदि से संबद्ध नियमित ब्लॉग्स अपने रंग, तेवर के समावेश के साथ हैं। एकाधिक पुरखे रचनाकारों को याद करने का प्रयास। ग़ज़ल की क्लास भी और किताबों की चर्चाएं भी और ‘तब’ की कुछ ग़ज़लों का जायज़ा भी…
प्रसंगवश
वैश्विक भाषाई परिदृश्य: हिंदी तथा विविध विदेशी भाषाएं : विवेक रंजन श्रीवास्तव
सिगरेट… बदनाम औरतें और बाज़ार मालामाल : भवेश दिलशाद
मुआयना
ब्लॉग : हम बोलेंगे (संपादकीय)
हिंदी, भाषा, आवाज़ और अपने सवाल : भवेश दिलशाद
ब्लॉग : तख़्ती
शिक्षक दिवस तुम फिर आना : आलोक कुमार मिश्रा
गुनगुनाहट
ब्लॉग : पोइट्री थेरेपी
अथर्ववेद और औषधीय विज्ञान : रति सक्सेना
ब्लॉग : समकाल का गीत विमर्श
कविता अपने समय को व्यक्त कर पा रही है? : राजा अवस्थी
ब्लॉग : गूंजती आवाज़ें
हिन्दोस्तानी भाषा और डॉ. अख़्तर नज़्मी : सलीम सरमद
ब्लॉग : तरक़्क़ीपसंद तहरीक की कहकशां
राजेंद्र कृष्ण का कारनामा—13 मिनिट में गांधी का ज़िन्दगी—नामा : जाहिद ख़ान
ग़ज़ल रंग
ब्लॉग : शेरगोई
ग़ज़ल का वज़्न निकालिए: सिर्फ़ एक मिनिट में : विजय स्वर्णकार
ब्लॉग : ग़ज़ल: लौ और धुआं
शहर के जिस्म में गांव की मिट्टी की महक : आशीष दशोत्तर
किताब कौतुक
ब्लॉग : क़िस्सागोई
वर्तमान की विडंबना का आईना है उपन्यास ‘दहन’ : नमिता सिंह
ब्लॉग : उर्दू के शाहकार
पीटर वॉटकिन्स बने पतरस बुखारी और उर्दू हुई मालामाल : डॉ. आज़म
सदरंग
ब्लॉग : उड़ जाएगा हंस अकेला
छाया गांगुली की आवाज़ के साथ थोड़ा-सा रूमानी हो जाएं : विवेक सावरीकर ‘मृदुल’
ब्लॉग : पक्का चिट्ठा
सभी सत्ताओं पर भारी डिजिटल सत्ता : अरुण अर्णव खरे
ब्लॉग : कला चर्चा
नीता पहाड़िया… निरंतर कुछ अलग खोजती कलाकार : प्रीति निगोसकर
ब्लॉग : कुछ फ़िल्म कुछ इल्म
बड़ी अनोखी थी प्लेबैक गायकी की पहली-पहली आवाज़ : मिथलेश रॉय
काव्य
ग़ज़ल तब : महेश अनघ
