अक़्ल ले आयी ज़िंदगी को कहाँ इश्क़-ए-नादाँ तिरी दुहाई है
है उफ़ुक़-दर-उफ़ुक़ रह-ए-हस्ती हर रसाई में ना-रसाई है
हो गयी गुम कहाँ सहर अपनी रात जा कर भी रात आई है
कारवाँ है ख़ुद अपनी गर्द में गुम पाँव की ख़ाक सर पे आई है
बन गयी है वो इल्तिजा आँसू जो नज़र में समा न पाई है
वो भी चुप हैं ख़मोश हूँ मैं भी एक नाज़ुक सी बात आई है
आनंद नारायण मुल्ला
1901 में जन्मे इस उर्दू कवि को 1964 में साहित्य अकादमी अवॉर्ड से नवाज़ा गया था। मुल्ला राज्य सभा और लोकसभा दोनों के सदस्य रहे। इससे पहले वह अपने पिता जगत नारायण मुल्ला की तरह ही वकील और जज भी रहे थे। 13 जून 1997 को आपका निधन हुआ।