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अरुण अर्णव खरे की कलम से....

भारतीय क्रिकेट: लड़कियों ने लिखा इतिहास, अब मुट्ठी में आसमान

              भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वह कर दिखाया, जिसकी झलक उसने सेमीफाइनल में ही दिखा दी थी। उनके चेहरों पर न फ़ाइनल का ख़ौफ़ था, न बॉडी लैंग्वेज में दबाव की कोई छाया। चेहरों पर थी तो केवल संकल्प की चमक, क़दमों में कुछ हासिल करने का दमखम और हर हाव-भाव में झलकता आत्मविश्वास। जब जज़्बा ऐसा हो, तो जीत भला मुँह कैसे मोड़ सकती थी! भारत जीत गया, दक्षिण अफ्रीका की एक न चली। अब भारतीय लड़कियाँ भी विश्व विजेता हैं, और उन्होंने यह गौरव डंके की चोट पर हासिल किया है।

भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने आईसीसी महिला वनडे विश्व कप 2025 का खिताब जीतकर सिर्फ़ एक ट्रॉफ़ी नहीं उठायी है, अपितु वर्षों की अनदेखी, संघर्ष और एक अधूरे सपने को साकार किया है। यह जीत 21वीं सदी में भारतीय नारी शक्ति के निरंतर प्रगति की गूँज है। इसने साबित किया है कि इच्छाशक्ति और संकल्प के सामने इतिहास को भी झुकना पड़ता है और नयी इबारत लिखने के लिए राह देनी पड़ती है। यह जीत उस अटूट विश्वास की भी कहानी है, जिसने हर बाधा को पार करते हुए टीम को ‘फ़ाइनल में हारने वाली टीम’ के टैग से बाहर निकाला और एक ऐसे मुकाम पर पहुँचाया जहाँ से आसमान भी मुट्ठी में नज़र आता है।

भारतीय लड़कियों की यह जीत 52 साल के इंतज़ार के बाद आयी है। इस जीत ने 2005 और 2017 के फ़ाइनल में मिली हार के दर्द को कम किया है। इसका एक सबक़ यह भी है कि कोई भी असफलता अंतिम नहीं होती, वह किसी ऐतिहासिक जीत की बुलंद इमारत की नींव भी हो सकती है। विश्वकप जीत कर भारत अब ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड जैसे दिग्गजों के साथ खड़ा है जिनके नाम अब तक विश्वकप विजेताओं के रूप में ‘रोल ऑफ ऑनर’ में अंकित थे।

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भारत की यह जीत सामूहिक प्रयासों का नतीजा है, बिल्कुल एक सच्चे टीम गेम की तरह। जब समूह चरण में भारत लगातार तीन मैच हार गया था और टूर्नामेंट से बाहर होने का ख़तरा मंडरा रहा था, तब भी भारतीय लड़कियों ने अपने आत्मविश्वास को टूटने नहीं दिया। उन्होंने अगले मैचों में “करो या मरो” की भावना के साथ खेला और परिणाम आज सबके सामने है।

हरमनप्रीत कौर का नाम अब विश्वकप जीतने वाले कप्तानों की सूची में दर्ज हो गया है। उन्होंने टीम में एक ऐसा अटूट आत्मविश्वास भरा जिसने बड़े मुकाबलों में भी टीम को दबाव में नहीं आने दिया। उनका नेतृत्व आत्मविश्वास और संयम का अद्भुत मिश्रण था। उनका नाम अब कपिल देव और महेंद्र सिंह धोनी के साथ लिया जाएगा।

वर्षों तक पुरुष क्रिकेट की छाया में अपनी पहचान तलाशती भारतीय महिलाएँ आज उस मुकाम पर खड़ी हैं, जहाँ वे स्वयं प्रेरणा बन गयी हैं। सीमित सुविधाओं, उपेक्षा और आर्थिक असमानताओं के बावजूद इन खिलाड़ियों ने मेहनत, अनुशासन और आत्मबल से पूरी दुनिया को झुका दिया। यह जीत न केवल खेल की जीत है, बल्कि मानसिक मज़बूती, रणनीति और टीम भावना का सशक्त उदाहरण भी है। इससे वैश्विक मंच पर भारतीय महिला क्रिकेट का नया युग आरंभ हुआ है, जो आने वाले वर्षों में और ऊँचाइयाँ छुएगा। पुरस्कारस्वरूप उन्हें जितनी बड़ी राशि मिली है, उतनी राशि गत पुरुष विश्वकप के विजेता को भी नहीं मिली थी। यह विशेष रूप से रेखांकित करने योग्य है। आगे चलकर यह खेल जगत में लैंगिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम सिद्ध होगा।

एक नज़र में मैच का जायज़ा

नवी मुम्बई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में खेले गये फ़ाइनल में भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराया और पहली बार विश्व विजेता बनने का गौरव हासिल किया। सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया पर मिली धमाकेदार जीत से उत्साहित भारतीय टीम ने फाइनल मैच की शुरुआत वहीं से की जहाँ पर उसने पिछला मैच छोड़ा था। शानदार बल्लेबाज़ी करते हुए भारतीय टीम ने 50 ओवर में 7 विकेट के नुकसान पर 298 रन बनाए। सलामी बल्लेबाज़ स्मृति मंधाना और शेफाली वर्मा ने पहले विकेट के लिए 104 रनों की महत्वपूर्ण साझेदारी की। शेफाली वर्मा ने मात्र 78 गेंदों पर 87 रनों की विस्फोटक पारी खेली, जिसमें 2 छक्के और 7 चौके शामिल थे। बाद में दीप्ति शर्मा ने 58 रन बनाए और स्कोर को मैच विजयी मुकाम तक पहुँचाया। जवाब में दक्षिण अफ्रीका की पूरी टीम 246 रनों पर सिमट गई। दीप्ति शर्मा ने गेंदबाजी में भी कमाल किया और 5 विकेट झटके। इसके साथ ही वह विश्वकप के एक मैच में अर्द्धशतक ठोंकने और पाँच विकेट चटकाने वाली एकमात्र खिलाड़ी बन गईं।

लगातार दो कमाल के प्रदर्शन
नॉकआउट चरण के लिए क्वालीफाई करने की जद्दोजहद में भारत ने न्यूज़ीलैंड को 53 रनों से हराकर सेमीफाइनल में जगह पक्की की। उस मैच में भारत ने 3 विकेट पर 340 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया था। उद्घाटक बल्लेबाज़ प्रतिका रावल (122) और स्मृति मंधाना (109) ने शतक जमाए और पहले विकेट के लिए 212 रनों की साझेदारी की। सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के 338 रनों के पहाड़ जैसे लक्ष्य का पीछा करते हुए भारत ने जेमिमा रोड्रिग्ज (127 रन) और कप्तान हरमनप्रीत कौर (89 रन) की बेहतरीन पारियों की बदौलत शानदार जीत दर्ज की। फाइनल में भी शेफाली वर्मा (87) और दीप्ति शर्मा (58) ने आकर्षक बल्लेबाज़ी की, वहीं गेंदबाज़ी में दीप्ति (5/39) और शेफाली (2/36) ने दक्षिण अफ्रीका को टिकने नहीं दिया। अफ्रीकी कप्तान लॉरा वोल्वार्ट का शतक (101 रन) भी टीम को बचा नहीं सका।

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विश्व कप 2025 के प्रमुख भारतीय चेहरे
व्यक्तिगत रूप से स्मृति मंधाना भारत की सबसे सफल बल्लेबाज़ रहीं। उन्होंने 9 मैचों में 54.25 की औसत से 434 रन बनाए। प्रतिका रावल जो चोट की वजह से फाइनल नहीं खेल सकीं, 7 मैचों में 307 रन स्कोर कर दूसरे स्थान पर रहीं। जेमिमा रोड्रिग्ज (8 मैच, 292 रन) और हरमनप्रीत कौर (9 मैच, 260 रन) ने भी बल्ले से शानदार योगदान दिया। तीन बल्लेबाज़ों ने शतक जमाए, जबकि अकेली दीप्ति शर्मा ने तीन अर्धशतक लगाए। रिचा घोष ने 12 छक्के जड़कर टूर्नामेंट की सबसे आक्रामक बल्लेबाज़ का तमगा पाया। गेंदबाज़ी में दीप्ति शर्मा सर्वाधिक 21 विकेट लेकर शीर्ष पर रहीं, जबकि एना चरणी ने 14 विकेट झटके।

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अरुण अर्णव खरे

अभियांत्रिकीय क्षेत्र में वरिष्ठ पद से सेवानिवृत्त। कथा एवं व्यंग्य साहित्य में चर्चित हस्ताक्षर। बीस से अधिक प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त। अपने माता-पिता की स्मृति में 'शांति-गया' साहित्यिक सम्मान समारोह आयोजित करते हैं। दो उपन्यास, पांच कथा संग्रह, चार व्यंग्य संग्रह और दो काव्य संग्रह के साथ ही अनेक समवेत संकलनों में शामिल तथा देश भर में पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन। खेलों से संबंधित लेखन में विशेष रुचि, इसकी भी नौ पुस्तकें आपके नाम। दो ​विश्व हिंदी सम्मेलनों में शिरकत के साथ ही मॉरिशस में 'हिंदी की सांस्कृतिक विरासत' विषय पर व्याख्यान भी।

2 comments on “भारतीय क्रिकेट: लड़कियों ने लिखा इतिहास, अब मुट्ठी में आसमान

  1. बेबाक और सटीक। शुरू के 3 मैच हारकर फाइनल में पहुंचना और जीतना लाजवाब है। खोने को कुछ था नहीं तो बिंदास खेले और जीते।

  2. इस जीत ने बता दिया कि भारत मे क्रिकेट की किस हद तक दीवानगी है। इसमे बड़े शहरों से कम और देहात,अनजाने जगहों से आई लड़कियों ने ज्यादा कमाल धमाल किया है। उन्होंने एक नया इतिहास लिखा है।

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