सफ़र बड़ा है सोच से..
  • May 2, 2025
  • आब-ओ-हवा
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सफ़र बड़ा है सोच से..

आब-ओ-हवा – अंक - 25

भाषाओं के साथ ही साहित्य, कला और परिवेश के बीच पुल बनाने की इस कड़ी में विशेष नज़र है आब-ओ-हवा के एक साल के सफ़र पर। साहित्य, कला और समाज के प्रतिष्ठित हस्ताक्षरों ने आब-ओ-हवा की यात्रा को अपने शब्दों में बयान किया है। नियमित स्तंभों की अपनी रौनक़ है, जो नये कोण और नयी दृष्टियां देते हैं। इसके साथ ही दिवंगत फ़िल्मकार मनोज कुमार और साहित्य की दुनिया में ज्ञानपीठ पुरस्कार से चर्चा में विनोद कुमार शुक्ल के बयानों के अंश भी इस अंक में…

गद्य

फ़्रंट स्टोरी

आब-ओ-हवा सफ़र एक साल कासाहित्य, कला व समाज के प्रतिष्ठित हस्ताक्षरों की डेढ़ दर्जन सम्मतियां

मुआयना

ब्लॉग : हम बोलेंगे (संपादकीय)
सफ़र बड़ा है सोच से.. : भवेश दिलशाद

ब्लॉग : तख़्ती
छड़ी रे छड़ी! : आलोक कुमार मिश्रा

ग़ज़ल रंग

ब्लॉग : शेरगोई
शाइरी की रेल-शब्दों के पुल : विजय स्वर्णकार

ब्लॉग : गूंजती आवाज़ें
आसेब, ख़ाली हाथ और ज़ुबैर रिज़वी : सलीम सरमद

गुनगुनाहट

ब्लॉग : समकाल का गीत विमर्श
नयी सदी की चुनौतियांँ और नवगीत कविता-5 : राजा अवस्थी

ब्लॉग : जिया सो गाया
पर्दा नहीं जब कोई ख़ुदा से, बंदों से पर्दा करना क्या : मनस्वी अपर्णा

किताब कौतुक

ब्लॉग : क़िस्सागोई
विविधता और ताज़गी का अहसास : नमिता सिंह

ब्लॉग : उर्दू के शाहकार
मीर अम्मन का ‘बाग़-ओ-बहार’ : डॉ. आज़म

सदरंग

ब्लॉग : वरधन की कला चर्चा
कला से आशय आख़िर है क्या? : धृतिवर्धन गुप्त

ब्लॉग : उड़ जाएगा हंस अकेला
ललिता-रफ़ी के सुरों की देसी मिठास : विवेक सावरीकर ‘मृदुल’

ब्लॉग : तरक़्क़ीपसंद तहरीक़ कहकशां
रस उन आँखों में है, कहने को ज़रा-सा पानी.. : जाहिद ख़ान

“मेरा प्रारब्ध था डायरेक्टर बनना” : मनोज कुमार का एक क़िस्सा

“मैंने ऐसे बनायी मन की छन्नी” : विनोद कुमार शुक्ल का एक क़िस्सा

पूर्व पाठ…
‘कैकेयी अब बोलती’… एक कृति धारावाहिक-7

पद्य

ग़ज़ल और गीत

गीत तब : देवेंद्र शर्मा ‘इंद्र’

गीत अब : रंजना गुप्ता

ग़ज़ल तब : उदय प्रताप सिंह

ग़ज़ल अब : अशोक मिज़ाज बद्र

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