भाषाओं के साथ ही साहित्य, कला और परिवेश के बीच पुल बनाने की इस कड़ी में विशेष नज़र है भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सरहदी संघर्ष और संघर्ष विराम पर। पत्रकारिता के पतन के समय की चिंताएं भी ज़रूरी हैं। नियमित स्तंभों का अपना अपना तेवर है, जो नये कोण और अंदाज़ प्रस्तुत करता है। विश्व साहित्य पर दृष्टि संबंधी ब्लॉग कुछ अंकों से स्थगित था, इस अंक से फिर शुरू हो रहा है। आब-ओ-हवा के लिए एक और नियमित ब्लॉग ‘वनप्रिया’ के संपादक मिथलेश रॉय लेकर आ रहे हैं। इसमें वह फ़िल्मी कलाकारों से जुड़े कुछ कलात्मक/मानवीय पक्षों पर चर्चा करेंगे। पूरे देश में क्या एक भाषा हो? हिंदी के वर्चस्व और उसके इर्द गिर्द के प्रश्नों पर आधारित बातचीत में भाषाविद जी.एन. देवी के विचारोत्तेजक चिंतन भी पाठकों के लिए है। ‘द किंग्स बुलट्स’ शीर्षक का यह व्यंग्य चित्र ‘ओसामा हज्जाज’ एक्स हैंडल से लिया गया है।