pratibha wagh, प्रतिभा वाघ, pratibha wagh paintings
पाक्षिक ब्लॉग प्रीति निगोसकर की कलम से....

लोककला और सरोकारों से जुड़ी कलाकार प्रतिभा वाघ

             चर्चित व्यंग्यकार स्व. बाल राणे जी की बेटी प्रतिभा वाघ, जिनकी ज़िंदगी में पिता ने गुरु की भूमिका भी निभायी। परवरिश कैसे कला के बीज रोप देती है, यह प्रतिभा जी की कहानी से समझ आता है। अपने बचपन से ही कला का साथ मिला। मुंबई की ज़िंदगी और शहर की लोकल ट्रेन-सी दौड़ती ज़िंदगी ने बहुत कुछ अनुभव और अहसास निशान के तौर पर छोड़े। छुट्टियों में कोंकण जैसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण अपने गांव जाना और साथ में पिताश्री का साथ, जो अपने साथ उन दिनों उपलब्ध बहुत सारे रंग, रंगीन पेन्सिल और ढेर-सा कागज़ ले जाते थे। इस वातावरण में खेलकूद, वाद-विवाद स्पर्धा आदि में कूदती-फांदती प्रतिभा जी ये सारे अहसास लिये बड़ी होती रहीं। अनजाने ही इनके अंदर एक कलाकार रूप ले रहा था।

प्रतिभा जी के भीतर का कलाकार अपनी शिक्षा के दौरान लोककला की तरफ आकर्षित हुआ। अपनी कला की शिक्षा सुप्रसिद्ध मुंबई के जे.जे. (जमशेदजी जेजीभोई) स्कूल आफ़ आर्ट्स से और रहेजा स्कूल आफ़ आर्ट्स से शिक्षा ग्रहण की। आप इतिहास में स्नातकोत्तर भी हैं। डिप्लोमा इन हायर एजुकेशन से शिक्षित आपने कला का गहन अध्ययन कर आज अपनी कला से कलाक्षेत्र में विशेष स्थान महाराष्ट्र कला जगत में हासिल किया है। कला शिक्षण के दौरान आप लोककला की तरफ़ आकर्षित हुईं और अपने इस विषय का गहन अध्ययन किया। किताबों के अलावा आप उन प्रदेशों में जाकर, लोककला और लोक कलाकारों से भी मिलीं और उनसे बातचीत भी की। इस अध्ययन पर आधारित आपके पच्चीस लेखों की सीरीज़ महाराष्ट्र की प्रसिद्ध पत्रिका लोकसत्ता में छपी और काफ़ी पसंद भी की गयी।

लोककला का अध्ययन करते समय प्रतिभा जी ने देखा कि जो धार्मिक और उत्सव के दौरान चित्र मिट्टी से लीपी गयी दीवारों पर और फ़र्श पर बनाये जाते हैं, उनको बनाते समय कलाकार किस तरह स्वतंत्रता लेते हैं, जिससे एक ही स्वरूप को हर व्यक्ति अपने ढंग से बना पाता है। जहां एक ही स्वरूप हमें अलग-अलग आकार में दिखायी देता है, जिससे देखने वाले को हमेशा नयापन दिखता है और वो हरेक को आकर्षित करता है। मिट्टी पर बनकर लुभाते चित्रों को उकेरने के लिए प्रतिभा जी ने कागज़ और कैनवास का चयन किया। यहां आपने महसूस किया कि इस माध्यम में मिट्टी के ऊपर के आकारों जैसी सॉफ़्टनेस नहीं है।

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इसी अभ्यास से उन्होंने अपना तरीक़ा ढूंढ ही निकाला। कैनवास पर चित्र बनाने में कम्फ़र्टेबल न होने से आप कागज़ पर ही अपने चित्र बनाती हैं। टेक्स्चर के लिए राइस पेपर का उपयोग करती हैं। लोककला की तरह ही अपने चित्र को चारों ओर बॉर्डर से बांध देती हैं। पारंपरिक मधुबनी, वर्ली, चित्रकथी से प्रभावित चित्र बनाने वाली यह कलाकार के विषय पौराणिक कथाओं पर आधारित होते हैं। गांव के दृश्यचित्रों के साथ रोज़मर्रा की ज़िंदगी के क्षणों का चित्रण अपनी विशिष्ट कलाशैली से, कलात्मक अनोखी स्टाइल में चित्रित करती हैं।

अनेक कलाकारों की तरह प्रतिभा जी का भी प्रकृति से लगाव चित्रों में दिखायी देता है। आप भड़कीले रंगों के साथ अपने चित्रों में बहुत ख़ूबसूरती से डिटेलिंग करती हैं। बहुत-सी शैलियों में काम करने के साथ उसमें एब्स्ट्रैक्ट और आधुनिक शैली का भी प्रभाव भी दिखायी देता है। आपने परंपरागत कला के दस्तावेज़ीकरण का काम भी किया है। पारंपरिक कला के आकार और चित्रकारी को संरक्षित कर रही हैं, साथ ही वर्कशॉप से उन कलाओं को प्रचारित करने का महत्वपूर्ण काम भी। बच्चे, बुज़ुर्ग, कॉरपोरेट्स में वर्कशॉप लेती हैं।
आधुनिक कला शिक्षण पॉलिसी बनाने में भी प्रतिभा जी की अग्रणी भूमिका है।

उपलब्धियों की बात

  • दूरदर्शन पर देश के मूर्धन्य कलाकारों की शृंखला में आपका भी एक एपिसोड शामिल रहा।
  • महाराष्ट्र स्टेट अवॉर्ड, कालिदास अवॉर्ड आपके हिस्से में है। अवॉर्ड्स की भी लंबी कतार आपके बायोडाटा में देखने को मिलती है।
  • जहांगीर आर्ट गैलरी, नैशनल आर्ट गैलरी आफ़ मॉडर्न आर्ट मुंबई में आप सफल एकल प्रदर्शनियां लगा चुकी हैं। दर्जनों समूह प्रदर्शनियों में हिस्सेदारी कर चुकी हैं।

प्रतिभा का वह विशेष चित्र

यहां विशेष रूप से इनके एक चित्र का ज़िक्र करना चाहूंगी। कोरोना काल में अंतरराष्ट्रीय आनलाइन प्रतियोगिता एक मेक्सिकन संस्था द्वारा आयोजित की गयी थी। उसमें आपका चित्र आठवें नंबर पर रहा।

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चित्र में आपने बेहद कठिन विषय को आसानी से उकेरा। चित्र की चारों ओर की बॉर्डर में मास्क और सेनिटाइज़र की बोतलों के आकार बनाये, जिससे जटिल विषय से बचने का मार्ग भी बताया। पिंजरे में बंद पक्षियों के रूप मे मानव है, जिनके चेहरे मास्क लगाये हुए हैं। पिंजरे के पक्षी बाहर उड़ रहे पक्षियों को अपने हाथ में मास्क ले, हाथों को पिंजरे से निकालकर बाहर उड़ते पक्षियों को दे रहे हैं। कोरोना समय में रेड लाइट एरिया में बहुत मौतें हुई थीं, इसलिए चित्र के एक कोने में लाल रंग कर उस पर कोरोना के जीवाश्म चित्रित किये। जटिल विषय पर बना यह चित्र बताता है कि कलाकार सामाजिक रूप से कितना जागृत होता है और समाज से कितना जुड़ा होता है। इस चित्र का नाम “न्यू नॉर्मल” रखा। प्रतिभा जी के चित्रों को देखकर आप आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी महसूस करेंगे। उन्हें हमारी बहुत शुभकामनाएं।

प्रीति निगोसकर, preeti nigoskar

प्रीति निगोसकर

पिछले चार दशक से अधिक समय से प्रोफ़ेशनल चित्रकार। आपकी एकल प्रदर्शनियां दिल्ली, भोपाल, इंदौर, उज्जैन, पुणे, बेंगलुरु आदि शहरों में लग चुकी हैं और लंदन के अलावा भारत में अनेक स्थानों पर साझा प्रदर्शनियों में आपकी कला प्रदर्शित हुई है। लैंडस्केप से एब्स्ट्रैक्शन तक की यात्रा आपकी चित्रकारी में रही है। प्रख्यात कलागुरु वि.श्री. वाकणकर की शिष्या के रूप में उनके जीवन पर आधारित एक पुस्तक का संपादन, प्रकाशन भी आपने किया है। इन दिनों कला आधारित लेखन में भी आप मुब्तिला हैं।

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